वैज्ञानिक भी अब यह मानने लगे हैं कि बीते सुखद लम्हों को याद करना और बुरे वक्त को भुलाना ही असली खुशी का राज है.
सान फ्रांसिस्को स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पाया कि जो लोग खुशी में गुजारे बीते लम्हों को याद करते हैं, उनके जीवन में संतोष उनसे अधिक होता है, जो अपनी विफलताओं की याद में ही घिरे रहते हैं.
डेली टेलीग्राफ के अनुसार उन्होंने पाया कि बहिर्मुखी व्यक्तियों में खुशी पाने का यह लक्षण अधिक होता है और वे खुशियों के पल को याद करते रहते हैं, जबकि अवसाद से ग्रस्त लोग ऐसा नहीं कर पाते.
अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार शोध से पता लगता है कि अनुभव और सौभाग्य से अधिक किसी व्यक्ति का दृष्टिकोण उसकी खुशी के लिये अधिक मायने रखता है. उनके अनुसार पूरा व्यक्तित्व बदलने के बजाय कुछ आदतों में बदलाव खुशी के स्तर में इजाफा करता है.
अध्ययन का नेतृत्व करने वाले मनोवैज्ञानिक प्रोफेसर रियान होवेल के अनुसार, ‘‘हमने पाया कि बहिर्मुखी लोग अपने अतीत के खुशनुमा पलों पर सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं और उनमें नकरात्मक भावना कम पायी जाती है और वे असफलताओं पर कम अफसोस करते हैं.
होवेल के अनुसार, ‘‘ इसी तरह अवसादग्रस्त लोगों में विगत के बारे में ठीक इसके विपरीत भाव पाया जाता है और नतीजनत वे कम खुश रह पाते हैं.’’ शोधकर्ताओं ने 750 लोगों के व्यक्तित्व के गुणों और उनकी खुशी के स्तर का अध्ययन किया. उन्होंने एक मानक व्यक्तित्व परीक्षा लेकर उनके दृष्टिकोण और जीवन के प्रति उनकी सोच का पता लगाया.
पिछले अध्ययनों में पाया गया था कि किसी व्यक्ति के जीवन के प्रति संतोष के लिये व्यक्तित्व निर्भर करता है. प्रोफेसर हावेल का कहना है, ‘‘अपने व्यक्तित्व को बदल पाना काफी कठिन होता है, लेकिन आप समय के बारे में अपने विचार बदल सकते हैं और इस तरह खुश रह सकते हैं.’’