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प्रोत्साहन पैकेज सोच समझकर वापस लिए जाएं: मनमोहन

संकट के समय उद्योगों को दिये गये प्रोत्साहन पैकेजों को वापस लेने के मुद्दे पर जी-20 देशों के बीच मतभेद के बीच भारत ने रविवार को विकसित देशों को आगाह किया कि वे यूरोपीय संकट के परिप्रेक्ष्य में सार्वजनिक खर्च में कटौती का कदम उठाने में सावधानी बरतें क्योंकि इससे विश्व अर्थव्यवस्था के दूसरी बार मंदी में डूबने का खतरा पैदा हो सकता है.

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संकट के समय उद्योगों को दिये गये प्रोत्साहन पैकेजों को वापस लेने के मुद्दे पर जी-20 देशों के बीच मतभेद के बीच भारत ने रविवार को विकसित देशों को आगाह किया कि वे यूरोपीय संकट के परिप्रेक्ष्य में सार्वजनिक खर्च में कटौती का कदम उठाने में सावधानी बरतें क्योंकि इससे विश्व अर्थव्यवस्था के दूसरी बार मंदी में डूबने का खतरा पैदा हो सकता है.

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वैश्विक प्रोत्साहन पैकेज को अधिक नपे तुले ढंग से वापस लेने की वकालत करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जी-20 शिखर सम्मेलन में कहा कि दुनिया के मंदी से उबरने की प्रक्रिया अभी भी काफी कमजोर है और इसीलिए इस प्रक्रिया को मजबूत करने पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है और सरकारी कर्ज की समस्या से निपटने के लिए सावधानी से कदम उठाने चाहिए.

अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री ने औद्योगिक देशों में नये संरक्षणवादी उपायों से बचने और व्यापार की मौजूदा बाधाओं विशेषकर विकासशील देशों को प्रभावित करने वाली बाधाओं को दूर करने की अपील की. दुनिया के मंदी से उबरने के लिए प्रोत्साहन पैकेज को कब और कैसे हटाया जाए, इस बारे में अभी जी-20 देशों में सहमति नहीं है. लंदन में पिछले साल हुए शिखर सम्मेलन में प्रोत्साहन देने के बारे में आम राय बनी थी. {mospagebreak}

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यूरो क्षेत्र के कुछ देशों में सरकारी कर्ज की गंभीर समस्या के कारण ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी जैसे देश प्रोत्साहन पैकेज को जल्द समाप्त करना चाहते हैं ताकि सरकारों का घाटा कम किया जा सके लेकिन भारत और अमेरिका जैसे देश नपे तुले ढंग से इसे वापस लेने के पक्षधर हैं. बैंकों को संकट से उबारने के लिए धन जुटाने के उद्देश्य से विश्व स्तर पर बैंकिंग कर लगाने के प्रस्ताव पर भी आम सहमति नहीं बन पायी है. इस प्रस्ताव का भारत ने विरोध किया है.

वैसे ब्रिटेन अपने यहां इस तरह का कर पहले ही लगा चुका है जबकि फ्रांस और जर्मनी भी ऐसा करने की प्रक्रिया में हैं. प्रोत्साहन पैकेज को सोच समझकर वापस लेने की अपील करते हुए सिंह ने सतर्कतापूर्वक विभिन्न तरह के रुख अपनाने का समर्थन किया, जो देश विशेष के हालात से जुडे हों. उन्होंने कहा, ‘हमारे समक्ष मुद्रास्फीति की बजाय मंदी का अधिक जोखिम है.’

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज हम जिस मुख्य समस्या का सामना कर रहे हैं, वह यह है कि ऐसे हालात में वैश्विक विकास का संरक्षण कैसे सुनिश्चित किया जाए, जब बाजार कर्ज के मामले में काफी ‘नर्वस’ हो चुके हैं. विशेषकर कई यूरोपीय देशों में ऐसी ही हालत है. उन्होंने कहा कि हालात सामान्य नहीं हैं और विश्व अर्थव्यवस्था के मंदी से उबरने की प्रक्रिया अब भी नाजुक दौर में है और औद्योगिक देशों में निजी मांग में गिरावट से दोबारा मंदी की स्थिति पैदा हो सकती है. {mospagebreak}

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सम्मेलन में मनमोहन के भाषण को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सार्कोजी जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरून और चीन के राष्ट्रपति हू चिन्ताओ सहित दुनिया के कई नेताओं ने काफी ध्यान से सुना. सिंह के साथ सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल यहां आया है, जिसमें योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिव शंकर मेनन, वित्त सचिव अशोक चावला और विदेश सचिव निरूपमा राव शामिल हैं.

यूरोप के देशों द्वारा अपेक्षा से अधिक सतर्कता बरते जाने के परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री की यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है. यूरोप के देशों ने अपने सार्वजनिक खर्च के बजट में कटौती शुरू कर दी है क्योंकि उन्हें आशंका है कि सरकारी कर्ज बढ़ सकता है. फ्रांस और जर्मनी जैसे देश बैंकों को संकट से उबारने के लिए आवश्यक धनराशि जुटाने के उद्देश्य से कर लगाने पर जोर दे रहे हैं. उधर अमेरिका अभी भी पर्याप्त संख्या में रोजगार के अवसर सृजित नहीं कर पाया है. वह पिछले साल लंदन में बनी सहमति के अनुरूप प्रोत्साहन पैकेज जारी रखने का पक्षधर है. {mospagebreak}

भारत भी बैंकों को संकट से उबारने के लिए आवश्यक धन जुटाने के उद्देश्य से कर लगाने का विरोधी है और वह प्रोत्साहन पैकेज से नपे तुले ढंग से बाहर हटने का पक्षधर है. प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि भारत को उम्मीद है कि वह 2011-12 तक नौ प्रतिशत की महात्वाकांक्षी विकास दर हासिल करेगा और अगले तीन साल में उसका राजकोषीय घाटा आधा हो जाएगा.

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उन्होंने विश्व नेताओं से कहा कि उनकी सरकार राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज को वापस लेने के कदम उठा रही है. 2008 के वित्तीय संकट से निपटने के लिए ये पैकेज दिये गये थे. उन्होंने दुनिया के नेताओं को समझाया कि भारत मौजूदा आर्थिक हालात से कैसे निपट रहा है.

शिखर सम्मेलन पर एक अरब डालर खर्च करने का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों के उग्र आंदोलन के एक दिन बाद आयोजक देश के प्रधानमंत्री स्टीफेन हार्पर ने सम्मेलन की शुरूआत दुनिया के नेताओं से इस आग्रह के साथ की कि वे 2013 तक अपना घाटा आधा करें. जी-20 विरोधी प्रदर्शनकारियों ने कई दुकानों और बैंकों के शीशे तोड दिये और पुलिस की कारों को आग लगा दी. उनका पुलिस से संघर्ष भी हुआ.

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