उच्चतम न्यायालय ने विदेशों में जमा काले धन के मामले की जांच और इसे वापस लाने की दिशा में उठाए जा रहे कदमों पर निगरानी रखने के लिए एक उच्च स्तरीय विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित किया है.
इस दल की अध्यक्षता न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी पी जीवन रेड्डी करेंगे.
न्यायमूर्ति रेड्डी के अलावा इस दल के उपाध्यक्ष के तौर पर न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम बी शाह को नियुक्त किया गया है.
न्यायमूर्ति बी सुदर्शन रेड्डी और न्यायमूर्ति एस एस निज्जर की पीठ ने निर्देश दिया कि इस मामले में सरकार द्वारा गठित की गई उच्च स्तरीय समिति तुरंत एसआईटी से जुड़ जाए.
पीठ ने सरकार को निर्देश दिया कि वह उन सभी लोगों के नामों का खुलासा करे, जिन्हें काले धन से जुड़े मामले की जांच के तहत अधिकारियों ने कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं. अदालत ने हालांकि स्पष्ट किया कि अधिकारी उन लोगों के नामों का खुलासा नहीं करें, जिनसे लिचटेंस्टीन बैंक समेत विदेशी बैंकों में धन जमा करने के मामले में पूछताछ नहीं की गई है.
न्यायालय ने यह फैसला जाने-माने वकील राम जेठमलानी और अन्य लोगों की याचिका पर दिया है . याचिका में न्यायालय से मांग की गई थी कि वह सरकार को विदेशों में जमा काला धन वापस लाने का आदेश दे.
शीर्ष अदालत ने सरकार को आदेश दिया कि वह एसआईटी के गठन के बारे में फौरन अधिसूचना जारी करे और सरकारी अधिकारी इस दल के साथ सहयोग करें.
पीठ ने फैसला देते समय विदेशों में अवैध रूप से काला धन जमा करने वाले लोगों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने में ‘विफल’ रहने पर केंद्र सरकार के खिलाफ कई तीखी टिप्पणियां दीं.
काले धन को ‘देश के लिए बहुत ज्यादा खतरनाक’ बताते हुए अदालत ने कहा कि विदेशी बैंकों में जितनी मात्रा में काला धन जमा होता है, वह किसी देश की ‘कमजोरी’ या ‘नरमी ’ का मोटे तौर पर पैमाना माना जा सकता है.
पीठ ने कहा कि यह सरकार की ओर से की गई गंभीर चूक है, जिसका देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा पर प्रभाव पड़ता
पीठ ने कहा, ‘सरकार ने जो कदम उठाए हैं, हम उन पर गंभीर आपत्ति व्यक्त करते हैं.. यह हमारे सामने स्पष्ट है कि जांच पूरी तरह रुकी हुई थी और अदालत के हस्तक्षेप के बाद ही इसमें तेजी आई.’ पीठ ने पुणे के घोड़ा व्यापारी हसन अली खान के मामले का संदर्भ देते हुए कहा, ‘इसी अदालत की ओर से जोर दिये जाने के बाद मामले की उचित तरीके से जांच की गई.’ अदालत ने कहा, ‘और भी कदम उठाए जाने की जरूरत थी.’ अदालत ने यह भी कहा कि उसके इस मामले में शामिल होने की जरूरत थी.
पीठ ने कहा, ‘हमने कहा था कि इस अदालत का लगातार इस मामले में शामिल रहना जरूरी है.’ इसके साथ ही उन्होंने एसआईटी को आदेश दिया कि वह काले धन से जुड़े सभी मामले अपने हाथ में ले ले और न्यायालय में इस बारे में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करे.
अदालत ने एसआईटी से कहा कि वह काले धन से जुड़े मामलों से किस तरह निपटेगी, इस बारे में एक व्यापक कार्ययोजना भी तैयार करके पीठ के समक्ष जमा करे.
एसआईटी गठित करने के अपने फैसले को न्यायसंगत ठहराते हुए पीठ ने कहा कि कई पुराने मामलों में भी अदालतें अपने संवैधानिक दायित्व पूरे करने के लिए ऐसे फैसले देती आई हैं.
अदालत ने कहा कि उसके लिए मामले की दिन-प्रतिदिन की जांच में शामिल होना संभव नहीं है क्योंकि उसके पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं.
पीठ ने कहा कि काले धन के मुद्दे को गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है और यह सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी बनती है कि वह ऐसी संपदा देश में वापस लाने के लिए हरसंभव प्रयास करे और विदेशी बैंकों में काला धन जमा करने वाले लोगों को दंड दे. अदालत ने कहा कि देश से विदेशी बैंकों में जा रहा बेहिसाब धन देश और उसके अधिकारियों की कर एकत्रित न कर पाने की क्षमता को जाहिर करता है, जो उनका संवैधानिक दायित्व है.
पीठ ने कहा कि विदेशी बैंकों में जा रहा धन देश को नुकसान भी पहुंचा सकता है क्योंकि इसका इस्तेमाल अवैध गतिविधियों में हो सकता है.
इसके पहले की सुनवाई में सरकार ने अदालत को बताया था कि उसने राजस्व सचिव की अगुवाई में एक उच्च स्तरीय समिति बनाई है. इसमें सीबीआई, खुफिया ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय के निदेशकों, सीबीडीटी के अध्यक्ष, राजस्व खुफिया विभाग के महानिदेशक, मादक पदार्थ नियंत्रण महानिदेशक, विदेशी खुफिया कार्यालय के निदेशक और विदेशी व्यापार के संयुक्त सचिव को शामिल किया गया था.
इस समिति की कार्यविधि पर न्यायालय ने 12 मई की सुनवाई में सवाल उठाए थे.
एसआईटी के अध्यक्ष बनाए गए न्यायमूर्ति रेड्डी को 1997 में सेवानिवृत्ति के बाद 15वें विधि आयोग का अध्यक्ष बनाया गया. उन्हें 16वें विधि आयोग का भी अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन उन्होंने 2001 में इस पद से इस्तीफा दे दिया.