उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद रामजन्म भूमि स्वामित्व विवाद पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा 24 सितम्बर को दिये जाने वाले फैसले पर एक सप्ताह के लिये रोक लगा दी और मामले की अगली सुनवाई की तिथि 28 सितम्बर तय की.
उच्चतम न्यायालय ने रमेश चन्द्र त्रिपाठी की याचिका पर सभी संबद्ध पक्षों को नोटिस जारी किया. त्रिपाठी ने अपनी याचिका में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें स्वामित्व विवाद पर फैसला टालने से रोक लगाने से इनकार कर दिया गया था. न्यायालय अगले मंगलवार को फैसले को टालने के त्रिपाठी के आग्रह पर सुनवाई करेगा.
न्यायमूर्ति आर वी रवीन्द्रन और न्यायमूर्ति एच एल गोखले की पीठ में उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए दायर याचिका पर सुनवाई के बारे में परस्पर विरोधी राय होने के चलते उन्होंने फैसले पर एक सप्ताह के लिये रोक लगा दी. न्यायमूर्ति रवीन्द्रन का मानना था कि विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया जाना चाहिये जबकि न्यायमूर्ति गोखले का कहना था कि समाधान के विकल्प की तलाश करने के लिये संबद्ध पक्षों को नोटिस जारी किया जाना चाहिये. लेकिन फिर न्यायमूर्ति रवीन्द्रन ने न्यायमूर्ति गोखले की राय को मानने पर सहमति दे दी. {mospagebreak}
अपने आदेश में न्यायमूर्ति रवीन्द्रन ने कहा कि परंपरा यही है कि जब किसी एक न्यायाधीश की राय अलग हो तो नोटिस जारी किया जाये. उच्चतम न्यायालय ने महान्यायवादी को भी नोटिस भेजा. त्रिपाठी की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील ने कहा कि इस मामले में सुलह सफाई का मौका देकर उच्चतम न्यायालय राहत प्रदान कर सकता है. उन्होंने कहा कि यह संभव है कि उच्चतम न्यायालय का नोटिस मिलने पर संबद्ध पक्ष सद्भावपूर्ण हल के लिये विचार विमर्श पर राजी हो जायें.
रोहतगी ने कहा कि अगले मंगलवार को उनका पक्ष शीर्ष न्यायालय को यह बताने की कोशिश करेगा कि मामले पर फैसला टाल दिया जाये ताकि धार्मिक, राजनीतिक और राष्ट्रीय नेता मिलकर कोई समाधान निकालने का प्रयास कर सकें. उन्होंने कहा कि यह केवल मामले में दस या बीस पक्षों से जुड़ा मामला नहीं है बल्कि लाखों करोडों लोगों से जुड़ा मामला है और विचार विमर्श से कोई रास्ता निकल सकता है. {mospagebreak}
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के त्रिपाठी की याचिका खारिज कर देने के पांच दिन बाद उन्होंने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर मध्यस्थता के लिए थोड़ा और समय देने का आग्रह किया था. इसके अलावा उन्होंने उच्च न्यायालय की ओर से लगाए गए जुर्माने को भी चुनौती दी है. उच्चतम न्यायालय के समक्ष दायर याचिका में त्रिपाठी ने कहा है कि इस फैसले से सांप्रदायिक सद्भाव को नुकसान पहुंच सकता है और देश में हिंसा हो सकती है.
याचिका में त्रिपाठी ने फैसला टाले जाने की अपील के पीछे कई कारण दिए हैं. उन्होंने कहा है कि सांप्रदायिक दंगों की आशंका, आने वाले राष्ट्रमंडल खेलों, बिहार में चुनाव और कश्मीर घाटी में हिंसा एवं नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में हिंसा के मद्देनजर इस फैसले को टाला जाना ‘लोक हित’ में होगा. याचिका में आशंका जताई गई है कि उत्तर प्रदेश में सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिए सुरक्षाकर्मी भी पर्याप्त नहीं होंगे.
त्रिपाठी ने अदालत के 27 जुलाई के एक पुराने फैसले का संदर्भ दिया है, जिसमें कहा गया था कि संबंधित पार्टियां पीठ के गठन के लिए विशेषाधिकारी से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र हैं, बशर्ते इस विवाद को खत्म किए जाने या आपसी सहमति से किसी परिणाम पर पहुंचने की संभावना हो. {mospagebreak}
न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर और न्यायमूर्ति ए के पटनायक की उच्चतम न्यायालय की पीठ ने बुधवार को इस याचिका पर जल्दबाजी में सुनवाई करने से मना कर दिया था. पीठ ने कहा था कि उन्हें इस मुद्दे पर निर्णय करने का ‘अधिकार’ नहीं है. पीठ ने यह भी कहा था कि इसे दूसरी पीठ के सामने सूचीबद्ध किया जाएगा.
इससे पूर्व त्रिपाठी ने फैसला टालने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन पांच दिन पहले उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने 60 साल पुराने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मालिकाना हक के विवाद का समाधान तलाश करने के लिए मध्यस्थता की अनुमति मांगने वाली याचिका को खारिज कर दिया. इसके बाद त्रिपाठी ने उच्चतम न्यायालय में दस्तक दी.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने त्रिपाठी के अदालत के बाहर सुलह-समझौते के प्रयास के बारे में दायर याचिका को ‘शरारतपूर्ण प्रयास’ कहते हुए उन पर 50,000 रुपये का ‘भारी जुर्माना’ भी लगाया था. हालांकि बाद में इसी पीठ के तीसरे न्यायाधीश ने इस फैसले से असहमति जतायी थी.