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मीडिया रिपोर्टिंग पर गाइडलाइंस नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक संवैधानिक सिद्धांत स्थापित किया, जिसके तहत असंतुष्ट पक्ष उचित अदालत से अदालती सुनवाई के प्रकाशन पर रोक लगाने की मांग कर सकते हैं और इस पर मामले से मामले के आधार फैसला किया जाएगा.

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सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक संवैधानिक सिद्धांत स्थापित किया, जिसके तहत असंतुष्ट पक्ष उचित अदालत से अदालती सुनवाई के प्रकाशन पर रोक लगाने की मांग कर सकते हैं और इस पर मामले से मामले के आधार फैसला किया जाएगा.

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कोर्ट ने हालांकि, विचाराधीन अदालती मामलों की रिपोर्टिंग के लिए व्यापक दिशा निर्देश तय करने से यह कहकर दूरी बनाई कि इसे ‘समान रूप से सब पर लागू नहीं किया जा सकता.’

पीठ ने कहा कि संविधान के तहत भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं है और पत्रकारों को अपनी ‘लक्ष्मण रेखा’ का ज्ञान होना चाहिए, ताकि वे अवमानना की रेखा को पार न करें.

प्रधान न्यायाधीश एस एच कपाडिया के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि वह संवैधानिक सिद्धांत तय कर रही है, जिसके तहत असुंष्ट पक्ष उचित अदालत से अदालती सुनवाई के प्रकाशन पर स्थगन की मांग कर सकेंगे.

पीठ ने कहा कि संबंधित अदालत मामलों से मामले के आधार पर अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिंग के स्थगन के सवाल पर फैसला करेगी.

प्रधान न्यायाधीश के नेतृत्व में न्यायमूर्ति डीके जैन, एस एस निज्जर, रंजना प्रकाश देसाई और जेएस शेखर की सदस्यता वाली पीठ ने यह भी कहा, ‘हम दिशा निर्देश तय नहीं कर रहे हैं, लेकिन हमने संवैधानिक सिद्धांत दिया है और हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट मामले से मामले के आधार पर यह फैसला करेंगी कि स्थगन आदेश (रिपोर्टिंग पर) कब दिया जाए.’

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पीठ ने कहा, ‘इसलिए, मीडिया रिपोर्टिंग पर दिशा निर्देश सब पर समान रूप से लागू नहीं किए जा सकते.’ अदालती कार्यवाही के प्रकाशन पर स्थगन का सिद्धांत प्रतिपादित करते हुए पीठ ने कहा कि यह एक निवारक कदम है, न कि प्रतिबंधात्मक और दंडात्मक कदम.

इसने आगे कहा कि अदालती कार्यवाही के प्रकाशन पर अस्थाई प्रतिबंध बोलने की स्वतंत्रता और न्याय के उचित प्रशासन के लिए निष्पक्ष मुकदमे के बीच संतुलन के लिए आवश्यक है.

पीठ ने कहा कि अदालती कार्यवाही के प्रकाशन पर स्थगन की वहां जरूरत होगी जहां मुकदमे और न्याय प्रशासन के प्रतिकूल रूप से प्रभावित होने का वास्तविक जोखिम हो.

प्रधान न्यायाधीश, जिन्होंने फैसला पढ़ा, ने कहा कि अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिंग पर उचित प्रतिबंध की समाज के हित में आवश्यकता है और स्थगन का यह सिद्धांत ‘तटस्थता तकनीक’ में से एक है.

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