सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के विरोध में एक याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि यदि सरकार ऐसी नीति तैयार करती है, जिसे संसद की मंजूरी हासिल नहीं, तो ऐसा सरकार अपने जोखिम पर करेगी.
न्यायमूर्ति आर. एम. लोढ़ा और न्यायमूर्ति अनिल आर. दवे की पीठ ने कहा, 'कार्यपालिका को शासन का अधिकार दिया गया है. यह उसे देखना है कि वह इसे कैसे अंजाम देती है और यदि वह संविधान का उल्लंधन करती है, तो न्यायालय हस्तक्षेप करेगा.'
सरकार ने यह बयान दिया था कि उसने खुदरा क्षेत्र बहुब्रांड एफडीआई लागू करने के लिए विदेशी विनिमय प्रबंधन कानून (एफईएमए) और भारतीय रिजर्व बैंक के नियमों में आवश्यक संशोधन कर दिया है.
न्यायाधीश ने कहा कि सरकार की आर्थिक नीति में हस्तक्षेप करने में न्यायालय को सावधान रहना चाहिए. उन्होंने हालांकि कहा कि वे यह नहीं कहना चाह रहे हैं कि सरकार की पूरी आर्थिक नीति न्यायिक समीक्षा से परे है.
न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कहा, 'हमने यह नहीं कहा है कि (सरकार की) संपूर्ण आर्थिक नीति संवैधानिक समीक्षा से परे है, लेकिन अदालत को (आर्थिक नीतियों में) हस्तक्षेप करने में अत्यधिक मंदता और परहेज बरतनी चाहिए और जब तक कि यह उन मूल्यों का उल्लंधन नहीं करे, जो संविधान में स्थापित हैं और संविधान की लय और आत्मा से इसका विरोध न हो.'
गैर सरकारी संगठन स्वदेशी जागरण फाउंडेशन ने खुदरा क्षेत्र में बहु ब्रांड एफडीआई का विरोध करते हुए कहा था कि यह सामाजिक और आर्थिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है.
अदालत ने इस याचिका को अदालत में अभियोजित किए जाने की अनुमति नहीं दी. मामले की अगली सुनवाई 22 जनवरी को होगी.