बसपा सुप्रीमो मायावती को आय से अधिक संपत्ति मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दे दी है.
सुप्रीम कोर्ट ने मायावती के खिलाफ सीबीआई की अर्जी को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में मायावती के खिलाफ आपराधिक प्रक्रिया चलाना ठीक नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि उसकी जांच का तरीका ठीक नहीं है. उन्होंने सीबीआई की दलील खारिज कर दी.
कोर्ट ने 9 साल पुराने आय से अधिक संपत्ति मामले को खारिज कर दिया. न्यायालय ने साथ ही अदालत से स्पष्ट निर्देशों के बिना मायावती के खिलाफ जांच शुरू करने पर सीबीआई की खिंचाई की.
शीर्ष अदालत ने कहा कि केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा अपनाया गया तरीका ‘गैरजरूरी’ था और एजेंसी ने ताज कारिडोर घोटाले में अदालत के आदेशों को सही ढंग से समझे बिना ही उनके खिलाफ कार्यवाही की.
न्यायमूर्ति पी सतशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ ने घोटाले में राज्य सरकार के अधिकारियों के खिलाफ जांच शुरू करने से जुड़े उच्चतम न्यायालय के आदेश को स्पष्ट किया और कहा कि आय के ज्ञात स्रोतों से कथित रूप से अधिक संपत्ति के मामले में मायावती के खिलाफ अलग से प्राथमिकी दर्ज करने का कोई आदेश नहीं दिया गया था.
शीर्ष अदालत ने कहा कि सीबीआई की सितंबर 2008 की स्थिति रिपोर्ट में इस तरह का कोई निष्कर्ष नहीं है कि मायावती ने 1995 से 2003 के दौरान आय से कथित रूप से अधिक संपत्ति अर्जित की. पीठ ने सीबीआई की स्थिति रिपोर्ट के संदर्भ में कहा कि ताज कारिडोर घोटाले में याचिकाकर्ता (मायावती) के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामले में कोई ठोस रिपोर्ट नहीं है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि उसका 2002 का आदेश विशेष तौर पर ताज कारिडोर घोटाले से संबंधित था और मायावती के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने को लेकर कोई निर्देश नहीं दिये गये थे, जैसा कि सीबीआई ने किया.
पीठ ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत मायावती के खिलाफ अलग से प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कोई निर्देश नहीं दिये गये.
पीठ ने कहा, ‘सीबीआई ने हमारे आदेशों को सही ढंग से समझे बिना कार्यवाही की.’ उन्होंने कहा कि सीबीआई द्वारा अपनाया गया तरीका गैरजरूरी था.
शीर्ष अदालत ने कहा कि जांच एजेंसी ने उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामला दर्ज करके अपने क्षेत्राधिकार को बढ़ाया जबकि न्यायालय की ओर से इस तरह का कोई निर्देश नहीं दिया गया था.
पीठ ने कहा, ‘सीबीआई को केवल एक प्राथमिकी (ताज कारिडोर मामले में) दर्ज करनी चाहिए थी. उच्चतम न्यायालय ने (मायावती के खिलाफ) दूसरी प्राथमिकी दर्ज करने का कोई निर्देश नहीं दिया था.’ शीर्ष अदालत ने मायावती की उस याचिका पर फैसला सुनाया है जिसमें सीबीआई द्वारा दर्ज आय से अधिक संपत्ति मामले में उनके खिलाफ कार्यवाही खारिज करने की मांग की गई थी.
मायावती ने आरोप लगाया था कि उनके खिलाफ मामला चलाकर एजेंसी का राजनीतिक औजार के तौर पर उपयोग किया जा रहा है.
मायावती ने मई 2008 में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था और सीबीआई द्वारा नौ साल पहले दर्ज आय से अधिक संपत्ति मामले में उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही खारिज करने की मांग की गई थी. उन्होंने आरोप लगाया था कि यह उनके खिलाफ राजनीतिक दुश्मनी के तहत उठाया गया कदम है.
अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद इस साल एक मई को अपना आदेश सुरक्षित रखा था.
फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बीएसपी नेता सतीश चंद्र मिश्रा ने इसे ऐतिहासिक निर्णय करार दिया है. उन्होंने कहा कि हमें 9 साल बाद न्याय मिला है.
उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि मायावती के खिलाफ अगर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है, तो इसमें मीन-मेख निकालने की कोई जरूरत नहीं रह जाती है. उन्होंने कहा कि अदालत ने गवाहों और सबूतों के आधार पर फैसला दिया होगा.
मायावती ने 2008 में केंद्र सरकार और सीबीआई के खिलाफ याचिका दायर कर गुहार लगाई थी कि उनके खिलाफ आय से ज्यादा संपत्ति के मामले रद्द किया जाए.
दूसरी ओर, सीबीआई का कहना है कि उसके पास मायावती के खिलाफ मामला चलाने के लिए पर्याप्त सुबूत हैं. इसी आधार पर सीबीआई मायावती की याचिका का विरोध कर रही है.
मायावती ने कहा था कि पीठ को आयकर न्यायाधिरण द्वारा पारित उस आदेश को ध्यान में रखकर सीबीआई को निर्देश देना चाहिए जिसमें न्यायाधिकरण ने कहा था कि उनकी आय वास्तविक है. उन्होंने कहा था कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी इसी आदेश को बरकरार रखा.
सीबीआई ने आरोप लगाया था कि यह साबित करने के ‘पर्याप्त सबूत’ हैं कि उन्होंने अपनी आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित की थी.
मायावती ने दावा किया था कि उन्हें पार्टी के कार्यकर्ताओं से दान के रूप में यह धन मिला था. मायावती की संपत्ति पर सवाल खड़े करते हुए सीबीआई ने आरोप लगाया था कि वर्ष 2003 में उनकी घोषित संपत्ति एक करोड़ रूपये की थी जो वर्ष 2007 में बढ़कर 50 करोड़ की हो गई.
सीबीआई ने 13 सितंबर 2011 को दायर अपने अंतिम हलफनामे में आरोप लगाया था कि मायावती और उनके रिश्तेदारों के बीच ‘आपराधिक गठजोड़’ है और उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामला आयकर विभाग के निष्कषरें के आधार पर बंद नहीं किया जा सकता.
जांच एजेंसी ने मायावती की इस दलील को भी खारिज किया था कि आयकर अधिकारियों द्वारा उनके आयकर मूल्यांकन स्वीकार किये जाने के बाद आय से अधिक संपत्ति मामला बंद होना चाहिए.