उच्चतम न्यायालय ने केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों को निर्देश दिया कि देश में देह व्यापार में लिप्त ऐसे लोगों की संख्या का पता करने के लिए व्यापक सर्वेक्षण कराएं, जो पुनर्वास चाहते हैं.
न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की पीठ ने अपने आदेश में केंद्र तथा राज्यों को यह निर्देश भी दिया कि देह व्यापार में लगे लोगों की हालत में सुधार के सुझावों और सिफारिशों पर दो सप्ताह के भीतर हलफनामे दाखिल करें.
पीठ ने पुनर्वास कार्य पर निगरानी में अदालत की सहायता के लिए वरिष्ठ वकीलों और स्वैच्छिक संगठनों की एक समिति का गठन किया. पीठ ने कहा, ‘‘हमने यह कवायद इसलिए की है क्योंकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में शब्द ‘जीवन’ की व्याख्या इस अदालत में अनेक फैसलों में की गयी है जिसका अर्थ है ‘सम्मान के साथ जीना’.’’
उन्होंने कहा कि सम्मान के साथ जीना तभी संभव होगा, जब यौन कर्मी अपनी देह को बेचने के बजाय तकनीकी योग्यताओं के माध्यम से जीवन जी सकें और इसलिए हमने सभी राज्यों और भारत सरकार से इन यौनकर्मियों को तकनीकी प्रशिक्षण देने के लिए योजनाएं सुझाने को कहा है. यौनकर्मियों की हालत से संबंधित एक याचिका पर शीर्ष अदालत ने यह निर्देश दिया. मामले में पीठ ने वरिष्ठ वकील जयंत भूषण को न्यायमित्र नियुक्त किया था.