फिल्मों में देवी देवताओं के इस्तेमाल के मुद्दे ने सियासी रंग ले लिया है. बीजेपी नेता सुषमा स्वराज ने फिल्म 'स्टूडेंट ऑफ द इयर' में राधा के नाम के इस्तेमाल करने पर आपत्ति जताई है.
इससे पहले फिल्म 'ओ माइ गॉड' को लेकर भी विवाद हो चुका है. सवाल ये है कि फिल्मों में भगवान के नाम पर ऐतराज क्यों?
नई पीढ़ी झूम उठी थी 'स्टूडेंट ऑफ द इयर' इस गीत के बोल पर. इस लल्लन टॉप संगीत पर दीवानों की टांगों में पहले कंपन हुई थी और फिर टूटते चले गए थे कत्थक के मुहावरे. गीतकार ने द्वापर युग के आध्यात्मिक इतिहास से उद्धरण उठाए थे, सोचा था कि उसकी कल्पना का कमाल धमाल मचा देगा. आखिर धंधे का सवाल था. लेकिन उसे क्या पता था कि बवाल मच जाएगा. सियासत जो न कराए. राधा के इस कलियुगी रास में बीजेपी बवाली बास सूंघ रही है. वो कह रही है कि इस गीत नहीं है हिंदुत्व की गली का भारी गुनाह है.
ये लो, सारी सियासत हो गई अब बीजेपी की. घूस, घपला, भ्रष्टाचार, अत्याचार सबसे फुर्सत है अब ज्ञान शील एकता की नौजवानी पर खड़ी हुई पार्टी. लेकिन दूसरी बिना झंडे वाली में राधा का राग आग लगा रहा है.
वैसे श्री कृष्ण का आख्यान तो उदारता का आख्यान है. प्रेम की अंतहीनता व्याख्यान है. शर्तहीन संवेदना की सीमाहीनता का सम्मान है. राधा उनकी नायिका हैं. लेकिन द्वापर से कलियुग की यात्रा में बीजेपी ने इस चरित्र को एक नाम में समेटकर रख देना चाहती है.
इतना ही नहीं बीजेपी को तो ईश्वरीय आस्था के आयामों को खोलने से भी परहेज़ है. आप सिर्फ इतना कह सकते हैं ओह माई गॉड. बीजेपी कहती है कि राम, राधा, सीता, सावित्री इन सबको रामायण, महाभारत, दुर्गा सप्तशती और हनुमान चालीसा जैसे गल्प ग्रंथों तक ही रहने दो. खबरदार जो दुनियादारी में इसका इस्तेमाल किया.
वैसे बीजेपी ने ये साफ नहीं किया है कि कैकेयी, शूर्पनखा और मंथरा जैसी पात्रों के बारे में उसके विचार क्या हैं. वैसे ऐसा कतई नहीं है कि सुषमा स्वराज को नृत्य संगीत से कोई परहेज़ है. बात सिर्फ इतनी है कि थिरकना उनके लिए वर्जना चौहद्दी के अंदर की चीज है.
अब ये नहीं पता कि सनातन धर्म की दीवारें क्या इतनी खोखली हैं कि सरगम के धक्के से उसकी सियासत की चूलें चरमरा उठी हैं. ये भी पता होना बाकी है कि ये कवियों के लिए चुनौती है या चेतावनी. लेकिन रचनाशीलता के संसार का ये सनातन सत्य पूरी कायनात को पता है कि शर्तों के बंधन में संवेदना भी मर जाती है और संगीत भी.