गांधीवादी अन्ना हज़ारे पक्ष ने न्यायिक जवाबदेही विधेयक में न्यायाधीशों के खिलाफ ‘जांच और अभियोजन’ के उचित प्रावधान नहीं होने का आरोप लगाते हुए इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से रुख स्पष्ट करने की मांग की. हज़ारे पक्ष ने सवाल किया कि क्या सरकार न्यायिक जवाबदेही विधेयक को वापस लेकर नया विधेयक पेश करेगी.
रालेगण सिद्धी में दो दिन की बैठक के बाद राजधानी लौटे हज़ारे पक्ष के कार्यकर्ताओं ने न्यायिक जवाबदेही विधेयक के मुद्दे के जरिये उच्च न्यायपालिका को प्रस्तावित लोकपाल के दायरे में ही शामिल करने की अपनी पुरानी मांग फिर उठा दी.
हज़ारे पक्ष के अरविंद केजरीवाल ने संवाददाताओं से कहा, ‘हम चाहते हैं कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पूरी ईमानदारी के साथ इस मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट करें. सरकार ने कहा था कि लोकपाल के दायरे में उच्च न्यायपालिका को नहीं रखा जायेगा और इसके लिये न्यायिक जवाबदेही विधेयक में उचित प्रावधान किये जायेंगे.’
उन्होंने कहा कि लेकिन इस विधेयक पर स्थायी समिति की हालिया रिपोर्ट में भी न्यायपालिका के सदस्यों के भ्रष्टाचार से निपटने के प्रावधान नहीं होने के चलते प्रधानमंत्री को यह स्पष्ट करना चाहिये कि क्या उनकी सरकार इस विधेयक को वापस लेकर नया विधेयक पेश करेगी और अगर ऐसा हुआ तो वह कब होगा.
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हज़ारे के साथी कार्यकर्ता और अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि सरकार ने पूरे देश को भम्र में रखा कि लोकपाल के दायरे में न्यायपालिका को नहीं रखते हुए न्यायिक जवाबदेही विधेयक में उसके लिये उचित प्रावधान किये जायेंगे. लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं करके देश को गुमराह किया.
गौरतलब है कि न्यायिक मानदंड और जवाबदेही विधेयक पिछले वर्ष लोकसभा में पेश किया गया था। इस पर पिछले महीने ही विधि और न्याय मामलों की संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश की है.
भूषण ने कहा, ‘लिहाजा, हम हमारे इस पुराने रुख को दोहराते हैं कि न्यायपालिका को स्वतंत्र लोकपाल के दायरे में रहने दिया जाये क्योंकि न्यायिक जवाबदेही विधेयक में कई खराब प्रावधान हैं और वह उच्च न्यायपालिका के सदस्यों पर लगने वाले भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच और उन पर अभियोजन चलाने के मुद्दों पर प्रकाश नहीं डालता.’
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उन्होंने दावा किया कि न्यायिक जवाबदेही विधेयक और उस पर स्थायी समिति की रिपोर्ट किसी न्यायाधीश के खिलाफ कदाचार की शिकायत मिलने पर होने वाली कार्रवाई से ही संबंधित है. इसमें भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच और अभियोजन का जिक्र नहीं है.
अधिवक्ता ने आरोप लगाया कि इस विधेयक में ऐसे कई प्रावधान हैं जिनमें खामिया हैं. विधेयक में कहा गया है कि किसी भी न्यायाधीश के खिलाफ आरोपों की जांच उसके साथी न्यायाधीश ही करेंगे और निगरानी समिति तथा छानबीन समिति में न्यायपालिका के इतर विधायिका और कार्यपालिका के सदस्यों को भी शामिल किया जायेगा. इन मुद्दों पर हमें आपत्ति है.
भूषण और केजरीवाल ने सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सदस्य अरुणा रॉय के एनसीपीआरआई को भी आड़े हाथ लिया. उन्होंने कहा कि एनसीपीआरआई और सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने कहा था कि लोकपाल के दायरे में न्यायपालिका को नहीं रखा जाये, लेकिन किसी ने भी यह स्प्ष्ट नहीं किया कि इसका विकल्प कैसा होना चाहिये.
उन्होंने कहा कि यह सवाल उठते हैं कि क्या एनसीपीआरआई ने स्थायी समिति के समक्ष कोई दबाव बनाने की कोशिश की थी और क्या यह मुद्दा राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की बैठक में भी उठा था.
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केजरीवाल कहा कि इस संबंध में हज़ारे पक्ष प्रधानमंत्री को सविस्तार चिट्ठी लिखेगा और इसके बाद आगे की रणनीति तय होगी. केजरीवाल के मुताबिक, हज़ारे की प्रस्तावित रेल यात्रा में इस मुद्दे को भी शामिल किया जायेगा. उन्होंने कहा कि यह यह मुद्दा इसलिये भी प्रासंगिक है क्योंकि न्यायमूर्ति सौमित्र सेन के खिलाफ हाल ही में राज्यसभा ने महाभियोग प्रस्ताव को पारित किया है. लेकिन अब यह सवाल उठता है कि क्या उनके खिलाफ जांच होगी और क्या उन पर मुकदमा चलेगा.
पूर्व विधि मंत्री शांति भूषण ने आरोप लगाया कि न्यायिक जवाबदेही विधेयक बेतुका है. उन्होंने कहा कि लोकपाल के दायरे में न्यायपालिका को शामिल नहीं करने की दलील हमें तभी स्वीकार होगी जब न्यायिक जवाबदेही विधेयक में इस विषय में पुख्ता प्रावधान किये जायेंगे.
किरण बेदी ने कहा कि यह विधेयक दर्शाता है कि किस तरह जनप्रतिनिधि जनता की इच्छा के खिलाफ जाकर विधेयक बनाते हैं और उसे पारित कराने की कोशिश करते हैं. उन्होंने सरकार पर दोहरे मानदंड अपनाने का आरोप लगाया.