आठ बैठकों के में जो नहीं हुआ वो अब पूरा होना बड़ा मुश्किल दिख रहा है और इसी के साथ मुश्किल दिख रहा है एक मजबूत लोकपाल क्योंकि अबतक वो बुनियादी बाते ही पूरी नहीं हो सकीं है जो लोकपाल को जन्म देने के लिए जरूरी हैं.
सरकार और सिविल सोसायटी के बीच लोकपाल के बीच जिन सात अहम मुद्दों पर तलवार खींची है और जिस हद तक दोनो पक्ष जिद पर कायम हैं उससे एक मजबूत और साझा लोकपाल बिल ड्राफ्ट बनने की उम्मीदें लगभग खत्म हैं. और साथ ही खत्म हैं निर्पेक्ष, निष्पक्ष और प्रभावी लोकपाल बनने की संभावना क्योंकि अबतक की हालत में अभी तक मूलभूत मुद्दे ही साफ नहीं हैं.
मसलन लोकपाल के चुनाव की 11 सदस्यीय टीम किनको मिला कर बनेगी. लोकपाल अगर बन गया तो वो काम के लिए अपना ऑफिस और स्टाफ कैसे बनाएगा. लोकपाल की शक्तियां क्या होंगीं यानि वो काम कैसे करेगा वो जांच एजेंसी होगी या फिर उसके पास पुलिस और न्यायिक अधिकार भी होंगें. लोकपाल की शक्तियां आखिर किन पर लागू होंगीं यानि वो कौन कौन सा पद और ऑफिस होगा जिसपर लोकपाल कार्रवाई कर भ्रष्टाचार पर लगाम लगाएगा. अगर लोकपाल पर संदेह हो तो उसको हटाने की शक्ति किसके हाथ होगी. और क्या पद में रहते हुए पीएम लोकपाल के दायरे में होंगे कि नहीं. इन चीजों पर अगर गौर करें तो साफ हो जाता है कि आठ बैठकों के बावजूद लोकपाल की बेहद बुनियादी चीजों पर सहमति नहीं बनी है और न ही इनकी तस्वीर साफ हो रही है. ऐसे में अगर सरकार और सिविल सोसायटी की साझी सिफारिशों को राजनीतिक दलों के पास भेजा जाता है या कैबिनेट के पास तो वो क्या निर्णय लेगें. और अगर वो दोनो पक्षों की कुछ कुछ बातों को स्वीकार कर एक नया बिल ड्राफ्ट करते भी हैं तो इसकी गारंटी कौन देगा कि वो वैसा ही लोकपाल बिल होगा जैसी भ्रष्टाचार से जूझते इस देश को जरूरत है.