भारत के मतदाता इतने विवेकी और तर्कशील हैं कि ज्यादातर विश्लेषक उन जैसी कल्पना तक नहीं कर सकते. ये इतने स्वार्थी भी नहीं हैं कि भ्रष्टाचार को बर्दाश्त कर इसे पचा जाएं. ज्यादातर तथाकथित जानकारों ने भारतीय वोटरों की ऐसी छवि पेश की है कि ये 'सब-कुछ' सहन कर सकते हैं, पर ताजा चुनाव परिणामों ने हकीकत बयां कर दी है. जो लोग ऐसा सोचते थे कि सुशासन से कोई फायदा नहीं मिलता, वे भी गलत साबित हो गए हैं.
जनता ने पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल में 'संपूर्ण परिवर्तन' के लिए वोट दिया. बंगाल में कुशासन और सत्ता के अहंकार के कारण वाममोर्चा सत्ता से बाहर हो गया. केरल में कांग्रेस की अगुवाई वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट ने जीत हासिल की. यहां वी. एस. अच्युतानंदन ने कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन की जीत में अहम भूमिका निभाई. उन्होंने केरल की जनता को ऐसी साफ-सुथरी सरकार और जनहितकारी प्रशासन मुहैया कराया, जो प्रदेश ने लंबे अरसे से नहीं देखा था.
तमिलनाडु में एक भ्रष्ट सरकार सत्ता से बेदखल की गई. असम में शांति की लालसा रखने वाली जनता ने कांग्रेस को फिर से सत्ता सौंपी है, जिसने लंबे समय से पैदा अशांति के माहौल को खत्म करने का वादा किया है.
लेफ्ट ने कुछ बातों की कल्पना तक नहीं की थी. आशा है कि नए परिदृश्य से ममता बनर्जी को राजनीतिक संतुलन साधने का मौका मिल जाएगा, जिन्हें शासन करने का कोई ज्यादा 'उल्लेखनीय' तजुर्बा नहीं है. पश्चिम बंगाल के मतदाताओं ने माकपा के 'विनम्र' नेताओं को सत्ता से बाहर कर फिर से बैठकखाने में भेज दिया है, ताकि वे सत्ता में वापसी की रणनीति बना सकें.
ममता बनर्जी को भी यह बात समझ लेनी चाहिए कि वे पार्टी कार्यकर्ताओं को वैसा करने की इजाजत नहीं दे सकतीं, जैसा सीपीएम अब तक करती आई है. जयललिता के लोकतांत्रिक क्रिया-कलाप संदेह के दायरे में रहे हैं. आशा की जानी चाहिए कि वे विनम्रता के साथ तमिलनाडु की जनता की उन अपेक्षाओं पर खरा उतर कसेंगी, जिनके लिए उन्हें जनादेश दिया गया है.