कभी बच्चों के साथ-साथ बड़ों के मनोरंजन का खास साधन रहे सर्कस उद्योग के मालिकों को डर है कि कहीं सूचना क्रांति की मार और सरकार की उपेक्षा के कारण सर्कस उद्योग का अस्तित्व समाप्त न हो जाए.
भारतीय सर्कस संघ और यूरोपीय सर्कस संगठन (ईसीए) के सदस्य रैंबो सर्कस के मालिक सुजीत दिलीप ने बताया, ‘‘इस उद्योग को भारत में जीवित रखने के लिए इस समय सरकार और कॉर्पोरेट प्रायोजकों के सहयोग की जरूरत है. अनुकूल वातावरण और जरूरी सुविधाओं के अभाव में यह उद्योग दम तोड़ रहा है.’’
उन्होंने कहा कि हमारे देश में सर्कस उद्योग ऐसी समस्याओं से जूझ रहा है जिन्हें यदि सही ढंग से नहीं सुलझाया गया तो यह उद्योग समाप्त हो सकता है.
ग्रेट बॉम्बे सर्कस के प्रबंधक विनोद कुमार कहते हैं, ‘‘आप खुद ही सोचिये कि अब लोग क्यों सर्कस देखने के लिए आना चाहेंगे. हर घर में टीवी है, बच्चे इंटरनेट के जानकार हैं. अभिभावकों के पास समय नहीं होता. अगर समय होता भी है, तो वे अपने बच्चों को घुमाने के लिए पार्क या कोई दूसरी जगह ले जाना चाहते हैं, जिससे उनकी जानकारी बढ़े.’’
वे कहते हैं ‘‘सर्कस का मुख्य आकषर्ण जानवर होते थे, जिन्हें देखकर बच्चे खुश होते थे. अब सर्कस में जानवरों के रखने पर मनाही है, इसीलिए हमने अपने सभी पशु बहुत पहले ही चिड़ियाघर के सुपुर्द कर दिए हैं. बच्चे स्टंट पसंद करते थे, लेकिन अब एक्शन वाली हॉलीवुड की फिल्में बच्चों को पसंद आती हैं. सर्कस के स्टंट में किसी को दिलचस्पी नहीं रही. जब तक सर्कस में नयापन नहीं आएगा, दर्शक नहीं आएंगे.’’
दिलीप ने कहा कि सर्कस में शेरों और बाघों के प्रदर्शन पर पिछले एक दशक से प्रतिबंध के बाद उन्होंने कोशिश की कि इस कमी को कलाकारों की कलाबाजियों से पूरा किया जाए, लेकिन सफलता नहीं मिली. उन्होंने कहा कि सर्कस में बच्चों के प्रदर्शनों पर प्रतिबंध के बाद इस उद्योग को कलाकारों की कमी का सामना भी करना पड़ रहा है.
विनोद कहते हैं कि रूस में सर्कस आज भी लोकप्रिय है. इसका कारण भी है. वहां सरकार ने सर्कस उद्योग को काफी मदद दी है. सर्कस के लिए शहर में एक स्थान दिया जाता है. हमारे यहां मनोरंजन कर की मांग तो खूब होती है लेकिन सुविधा जरा भी नहीं दी जाती.
वे कहते हैं कि पहले जब सर्कस शहर में लगता था, तो जगह जगह उसके पोस्टर कई दिन पहले लग चुके होते थे. इसके अलावा सर्कस दल और जानवरों को लेकर प्रबंधन एक जुलूस निकालता था. अब तो कहीं सर्कस जाता है तो जगह मिलना ही मुश्किल हो जाता है. इसके लिए आवेदन करने के बाद लंबा इंतजार करना होता है.
विनोद के अनुसार, सरकार जब तक सर्कस उद्योग को बचाने के लिए मदद नहीं करेगी, तब तक कुछ नहीं किया जा सकता. इसे मनोरंजन कर से पूरी तरह मुक्त कर दिया जाना चाहिए और इसके लिए शहर में कम से कम दर पर स्थान मुहैया कराना चाहिए.
(19 मई को सर्कस दिवस पर विशेष)