वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा है कि 2008 की आर्थिक मंदी से विकसित देशों ने बेहतर तरीके से मुकाबला किया, लेकिन संकट के बादल फिर से गहराने लगे हैं जो चिंताजनक है.
मुखर्जी ने कहा, ‘‘यूरो क्षेत्र में वित्तीय संकट, अमेरिका की रेटिंग घटाये जाने, उच्च आय वाले देशों में वित्तीय स्थिरता को लेकर चिंता, असंतुलित तथा धीमी वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर, विकासशील देशों में निम्न पूंजी प्रवाह, कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति खासकर खाद्य वस्तुओं की उंची कीमतों तथा बार-बार प्राकृतिक आपदाओं का आना जैसे तमाम मुद्दों के कारण संकट गहराता जा रहा है जिसका सभी देशों में गरीबों पर खतरनाक प्रभाव पड़ेगा.’
मौजूदा वैश्विक आर्थिक स्थिति, वृद्धि तथा रोजगार पर विश्व बैंक विकास समिति की बैठक में उन्होंने कहा कि विकासशील देश किसी भी प्रत्याशित एवं अप्रत्याशित चुनौती से निपटने में मदद तथा दीर्घकालिक विकास के लिये वित्त की जरूरत हेतु विश्व बैंक को एक महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में देखते हैं.
वित्त मंत्री ने कहा, ‘लेकिन हम उस स्थिति का सामना कर रहे हैं जहां आईबीआरडी तथा आईएफसी सामान्य मांग भी पूरा करने में असमर्थ है और संसाधान बाधा के कारण चयनित रुख अपनाने को लेकर मजबूर है.
ये संस्थान अन्य संकट या प्राकृतिक आपदा के कारण मांग में तेजी के अनुरूप रिण बढ़ाने में सफल नहीं हैं. इस समस्या को तत्काल हल किये जाने की जरूरत है.