राजनीति के मैदान में कूदने को लेकर भंग की जा चुकी टीम अन्ना के कुछ सदस्यों की आलोचना के बीच सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने कहा कि किसी भी फैसले पर 100 फीसदी सहमति नहीं हो सकती और ऐसे ‘प्रिय साथियों’ की संख्या बेहद कम है जो इसके खिलाफ हैं.
इंडिया अगेंस्ट करप्शन के कार्यकर्ताओं को लिखे पत्र में उन्होंने कहा, ‘जंतर मंतर पर यहां अनिश्चितकालीन अनशन के समापन पर मिश्रित प्रतिक्रिया रही है क्योंकि टीम ने आंदोलन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए राजनैतिक विकल्प तैयार करने का फैसला किया.’
उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण में 90 फीसदी लोगों ने अन्ना हजारे से राजनैतिक विकल्प मांगा है. उन्होंने कहा, ‘लेकिन हमारे कुछ मित्र जो हमें बेहद प्रिय हैं और जिन्होंने विगत दो वर्षों में इस आंदोलन में अपना दिमाग, शरीर और अपनी आत्मा झोंक दी, वे आहत हैं.’
उस तरह के लोगों की तादाद ‘बेहद कम’ बताते हुए केजरीवाल ने कहा कि उन लोगों ने उन्हें ई-मेल और एसएमएस भेजे हैं.
केजरीवाल ने लिखा है, ‘उनका आरोप है कि आंदोलन को बेचा गया है. किसी भी फैसले पर शत प्रतिशत सहमति नहीं हो सकती.’
हजारे और उनकी टीम के चुनावी राजनीति में कूदने की घोषणा का टीम के कुछ सदस्यों में संतोष हेगड़े, मेधा पाटकर और अखिल गोगोई ने विरोध किया था.
उन्होंने राजनीति के मैदान में उतरने के प्रति आगाह किया था.
फैसले का बचाव करते हुए केजरीवाल ने कहा, ‘अगर हम जनता की राय की अवहेलना करते हैं तो हमें हठी, लोगों की भावनाओं के प्रति असंवेदनशील और अलोकतांत्रिक कहा जाएगा. अब जबकि हमने बहुमत की इच्छा के आगे समर्पण किया है तो हमपर शुरुआत से ही गलत मंशा का दोषारोपण किया जा रहा है.’
उन्होंने कहा, ‘मौजूदा दौर की राजनीति कीचड़ है. हमें इस कीचड़ में आनंद नहीं आता. अगले दो वर्षों में अगर सरकार ने जन लोकपाल, ‘स्वराज’ के लिए कानून, खारिज करने का अधिकार और वापस बुलाने के अधिकार के संबंध में कानून बनाया तो हम राजनीति एकदम छोड़ देंगे.’
केजरीवाल ने कहा कि फैसले से कोई असहमत हो सकता है लेकिन यह फैसला करने वालों की मंशा गलत नहीं थी. उन्होंने कहा कि राजनैतिक विकल्प प्रदान करने का मतलब यह नहीं कि आंदोलन खत्म हो गया.
उन्होंने कहा, ‘इसका मतलब है कि हम इस आंदोलन का विस्तार कर रहे हैं और इसे और बड़ा बना रहे हैं. आज तक यह आंदोलन सड़कों पर था. अब से यह लड़ाई सड़कों से लेकर संसद तक होगी.’
केजरीवाल ने कहा कि टीम ने अनशन ईमानदारी से शुरू किया और ‘अगर यह पूर्व नियोजित था, अगर मेरी संकल्प शक्ति कमजोर थी, अगर मुझमें साहस का अभाव था या बलिदान करने की इच्छाशक्ति नहीं थी तो इसे चिकित्सक की सलाह के बहाने दो दिन में खत्म करने का आसान रास्ता था.’
उन्होंने कहा कि जंतर-मंतर पर लोग राजनैतिक विकल्प की मांग कर रहे थे और देश के अन्य हिस्सों से भी हजारे से लोग इसी तरह की अपील कर रहे थे.
उन्होंने कहा, ‘उर्जा का स्तर और गुस्सा जो पिछले साल अगस्त में दिखा था वो इस बार भारत के दूसरे हिस्सों में नहीं दिख रहा था. ऐसा क्यों हुआय देशभर में लोगों से बातचीत के बाद हमने पाया कि लोगों ने इस बात को मानना बंद कर दिया कि सड़कों पर उतरना एकमात्र समाधान है.’
उन्होंने कहा, ‘लोग इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि भले ही कितना भी लंबा अनशन हो , सरकार न तो एसआईटी (केंद्रीय मंत्रियों के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए) और न ही लोकपाल देगी. साथ ही लोगों का आंदोलन के नेतृत्व में विश्वास था.
केजरीवाल ने कहा, ‘उनका हमारे लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सड़कों पर उतरने और अनशन करने के तरीके पर भरोसा उठ गया. इस कारण से लोग सड़कों पर उतरने के लिए छुट्टियां नहीं ले रहे थे. उन्हें नयी आशा की जरूरत है.’