‘मैसूर का शेर’ कहे जाने वाले टीपू सुल्तान की असली ताकत उनकी रॉकेट प्रौद्योगिकी थी. उनके रॉकेट अंग्रेजों के लिए अनुसंधान का विषय बन गए थे.
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने एक बार बेंगलूर के टीपू सुल्तान शहीद मेमोरियल में अयोजित एक कार्यक्रम में टीपू को विश्व का सबसे पहला रॉकेट अविष्कारक करार दिया था.
इतिहास के प्रोफेसर केके उपाध्याय के अनुसार टीपू की सबसे बड़ी ताकत उनकी रॉकेट प्रौद्योगिकी थी. टीपू की सेना ने रॉकेटों के जरिए अंग्रेजों और निजामों को तितर बितर कर दिया था. टीपू की शहादत के बाद अंग्रेजों ने रंगपट्टनम में दो रॉकेटों पर कब्जा कर लिया था और वे इन्हें ब्रिटेन स्थित वूलविच म्यूजियम आर्ट गैलरी में प्रदर्शनी के लिए ले गए थे.
बीस नवम्बर 1750 को देवनहल्ली (वर्तमान में कर्नाटक का कोलर जिला) में जन्मे टीपू सुल्तान के पिता का नाम हैदर अली था. वह बहादुर और रण चातुर्य में दक्ष थे. टीपू ईस्ट इंडिया कंपनी के सामने कभी नहीं झुके और अंग्रेजों से जमकर संघर्ष किया.
मैसूर की दूसरी लड़ाई में अंग्रेजों को शिकस्त देने में उन्होंने अपने पिता हैदर अली की काफी मदद की. उन्होंने अंग्रेजों ही नहीं बल्कि निजामों को भी धूल चटाई. अपनी हार से बौखलाए हैदराबाद के निजाम ने टीपू से गद्दारी की और अंग्रेजों से मिल गया. मैसूर की तीसरी लड़ाई में जब अंग्रेज टीपू को नहीं हरा पाए तो उन्होंने टीपू के साथ मेंगलूर संधि की लेकिन इसके बावजूद अंग्रेजों ने उन्हें धोखा दिया.
ईस्ट इंडिया कंपनी ने हैदराबाद के निजाम से मिलकर चौथी बार टीपू पर भीषण हमला कर दिया और आखिरकार चार मई 1799 को श्रीरंगपट्टनम की रक्षा करते हुए मैसूर का यह शेर शहीद हो गया.
टीपू ने 1782 में अपने पिता के निधन के बाद मैसूर की कमान संभाली थी. उन्होंने सड़कों सिंचाई व्यवस्था और अन्य विकास कार्यों की झड़ी लगाकर अपने राज्य को समृद्ध क्षेत्र में तब्दील कर दिया था और यह व्यापार क्षेत्र में काफी आगे था. उन्होंने कावेरी नदी पर एक बांध की नींव रखी. इसी जगह पर आज कृष्णासागर बांध है.