सरकार लोकपाल मुद्दे पर भले ही सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के विचारों से सहमत नहीं हो, लेकिन उसने कहा कि वह सतर्क नागरिकों और स्वतंत्र न्यायपालिका की मदद से भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेगी.
लोकपाल विधेयक पर नागरिक समाज और सरकार के प्रतिनिधियों की संयुक्त समिति की अध्यक्षता करने वाले वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि भ्रष्टाचार के मामलों की जांच कर उन्हें न्यायालय में पेश करने का काम लगातार चलता रहता है.
वित्त मंत्रालय ने मुखर्जी के हवाले से कहा है, ‘‘जागरूक नागरिक संगठनों और स्वतंत्र न्यायपालिका के बल पर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई जारी रहेगी.’’ उन्होंने कहा कि उनकी अध्यक्षता में बनाये गये मंत्री समूह को भ्रष्टाचार की समस्या से निपटने के लिये विभिन्न उपायों पर विचार का काम दिया गया है. यह समूह अपनी सिफारिशें तय समयसीमा में देगा. समूह चुनावों का खर्च सरकारी स्तर पर उठाये जाने, लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को तेजी से निपटाने, सार्वजनिक खरीदारी में पारदर्शिता और केन्द्रीय मंत्रियों के विवेकाधीन अधिकारों पर गौर कर रहा है.
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लोकपाल विधेयक का प्रारूप तैयार करने के लिये अन्ना हजारे और उनकी टीम तथा सरकार की तरफ से प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में कुछ अन्य केन्द्रीय मंत्रियों की संयुक्त टीम के बीच मतभेद उभर आये थे. प्रधानमंत्री को लोकपाल विधेयक के दायरे में लाने पर नागरिक समाज और सरकार के प्रतिनिधियों में सहमति नहीं बन पाई.
मुखर्जी ने बिजनेस टुडे पुरस्कार वितरण समारोह को संबोधित करते हुये कहा कि सरकारी मशीनरी और प्रशासनिक प्रणाली में सुधार के जरिये भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकता है.
उन्होंने इस संबंध में विशिष्ट पहचान संख्या प्राधिकरण द्वारा चलाये जा रहे अभियान का उदाहरण देते हुये कहा कि सरकारी कल्याण योजनाओं का लाभ जनता तक पहुंचाने में आने वाली खामियों को इससे दूर करने में मदद मिलेगी.
मुखर्जी ने कहा कि भ्रष्टाचार केवल सार्वजनिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है. उन्होंने कहा कि अनुचित आर्थिक लाभ ही भ्रष्टाचार की मुख्य वजह है और यही देश के तानेबाने को नष्ट कर रहा है. उन्होंने कहा ‘‘उन सामाजिक मूल्यों को बदलना होगा जो जीवन में भ्रष्टाचार को स्वीकार करते हैं.’’