उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त ने राज्य सरकार को लोकायुक्त संगठन को मजबूत करने के लिए मुख्यमंत्री को भी इसके दायरे में लाये जाने का सुझाव दिया है.
लोकायुक्त न्यायमूर्ति एन के मेहरोत्रा ने कहा, ‘प्रदेश सरकार ने लोकायुक्त संगठन को मजबूत करने और बहुसदस्यीय बनाने के लिए सुझाव मांगे थे, जिसके बाद उसे संगठन को मजबूत करने के बारे में सुझाव दिये गये हैं.’ उन्होंने बताया कि प्रदेश सरकार को सुझाव दिया गया है कि मुख्यमंत्री और ग्राम प्रधान को भी लोकायुक्त के दायरे में लाया जाना चाहिये, जैसी कि कर्नाटक, केरल और मध्यप्रदेश आदि राज्यों में व्यवस्था है.
न्यायमूर्ति मेहरोत्रा ने कहा, ‘यह किसी व्यक्ति का मामला नहीं है बल्कि सिद्धांत और पद की बात है. सरकार को मुख्यमंत्री को लोकायुक्त के दायरे में लाने पर विचार करना चाहिये.’ उन्होंने बताया कि प्रदेश सरकार को यह भी सुझाव दिया गया है कि लोकायुक्त संगठन को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए विश्वविद्यालयों, शैक्षणिक संस्थानों, न्यासों, समितियों और गैर सरकारी संगठनों को भी इसके जांच दायरे में लाया जाना चाहिये. यह संगठन कई राज्यों में पहले से ही लोकायुक्त के जांच दायरे में रखे गये हैं.
मेहरोत्रा ने बताया कि प्रदेश सरकार को यह व्यवस्था करने का भी सुझाव दिया गया है कि सभी जनप्रतिनिधि लोकायुक्त को सालाना अपनी संपत्ति का व्यौरा प्रस्तुत करें ताकि आय से अधिक संपत्ति होने की आशंका होने पर लोकायुक्त स्वत: मामले का संज्ञान लेकर जांच कर सकें. उन्होंने बताया कि जांच रिपोर्ट में की गयी संस्तुतियों को समयबद्ध तरीके से लागू करने और जरूरी होने पर मुकदमा चलाने की अनुमति तीन माह के भीतर दिये जाने का भी सुझाव दिया गया है.
लोकायुक्त ने बताया कि संगठन को और ताकत देने के लिए किसी जांच एजेंसी को भी इसके अधिकार क्षेत्र में रखा जाना चाहिये और इसे मुकदमे चलाने का अधिकार मिलना चाहिये.
उन्होंने कहा कि हालांकि लोकायुक्त संगठन अब भी बहुसदस्यीय संगठन है. मगर यह सुझाव भी दिया गया है कि इसे बहुसदस्यीय निर्णय देने का अधिकार भी मिलना चाहिये.
लोकायुक्त ने स्पष्ट किया कि ये सारी बातें प्रदेश सरकार के मांगने पर उसे भेजे गये सुझाव का हिस्सा है और अभी केवल संगठन तथा सरकार के बीच संवाद के स्तर पर हैं, जिनके बारे में निर्णय करने के लिए राज्य सरकार स्वतंत्र है.