सावन का इंतजार कर रहे बुंदेलखंड को आषाढ़ ने सराबोर कर दिया. पिछले दो दशकों का रिकॉर्ड तोड़ते हुए अकेले जून माह में ही इतना पानी बरसा कि गनवा की गलियों से लेकर खेत-खलिहान तक सब पानी से सराबोर हो गए. नदियां उफन पड़ीं, ताल-तलैया भर गए, तटीय इलाकों के गांवों में पानी भर गया और कच्ची मिट्टी से बने ग्रामीणों के घर जमींदोज हो गए.
सालों से पड़ रहे सूखे से जूझ्ने के आदी हो चुके बुंदेल इस बार इस नई त्रासदी का तजुर्बा ले रहे हैं, जो बारिश अपने संग लेकर आई है. बुंदेलखंड के सबसे बड़े बांध राजघाट और मताटीला को जितनी 600 एमएम बारिश की दरकार बरसात के तीन महीनों में होती है, उतना पानी तो महज 6 दिनों में ही बरस गया.
बारिश की रफ्तार के आगे बेबस बांधों को जून में ही अपने गेट खोलने पड़े. दोनों बांधों से छोड़े गए 150 लाख क्यूसेक पानी की तीव्रता से सूखी पड़ी बेतवा नदी में उफान आ गया.
बेतवा उमड़ पड़ी तो धसान, यमुना और मंदाकिनी जैसी बड़ी नदियां भी खतरे के निशान को छूने के लिए आतुर दिखने लगीं. उफान पर आई नदियों ने बुंदेलखंड के करीब 2,200 गांवों को प्रभावित किया है. तटीय इलाके पूरी तरह जलमग्न हो गए हैं. हजारों हेक्टेयर जमीन पानी में समा गई है, जिस पर अब खरीफ की फसल बो पाना मुश्किल हो गया है. अकेले महोबा जिले को छोड़ दें तो बुंदेलखंड के सातों जिलों में बारिश ने जन-जीवन पर गहरा असर डाला है.
ललितपुर जिले में स्थित गोविंद सागर, शाहजाद, जामिनी, सजनाम, रोहिनी, राजघाट व मताटीला सहित सातों बांध महज छह दिनों की भारी बारिश में ही भर गए. नदियों और बांधों से हुए पानी के बहाव में कई गांवों का संपर्क शहरों से टूट गया है.
पक्की सड़कें पानी की गहराई में समा गई हैं. पानी के कहर से ललितपुर में 697 मकान जमींदोज हो गए हैं. ललितपुर की तहसील महोरनी का संपर्क भी जिले से कट गया है. बेतवा नदी की तलहटी में बसे गांवों की जमीन पानी में समा जाने से खेती के लायक नहीं बची है.
बारिश के रुख को देखते हुए कृषि विभाग के अधिकारियों ने अभी किसानों को बुआई करने को लेकर सावधान किया है. जालौन में यमुना नदी का जल स्तर बढ़ने से जूही घाट पर बना पीपों का पुल बह गया है, जिससे इटावा जाने का रास्ता बंद हो गया. जालौन के 138 गांव बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. ज्यादातर गांवों में पहुंचने के लिए अब सिर्फ नावों का ही सहारा है, लेकिन नदी की तेज धार में नावों का चलना भी खतरनाक हो रहा है.
एक ओर पहुज नदी के उफान पर होने से दो दर्जन गांवों में पानी घुस गया है तो दूसरी ओर हमीरपुर जिले के कई गांवों में यमुना और बेतवा का पानी प्रवेश कर गया है. यहां किसानों के खेत तो डूबे ही, साथ ही घरों में भी पानी घुस गया. कइयों के तो घर ही पानी में ढह गए.
यहां के किसानों का कहना है कि प्रकृति का यह कैसा खेल है कि पहले तो इतना सूखा पड़ता था कि पानी की कमी से खेत उजड़ जाते थे और अब पानी बरसा तो इतना कि कभी सूखे पड़े खेत अब पानी में डूब गए, घर ढह गए. हर ओर से तबाही ही चली आ रही है.
अब यह बुंदेलखंड के हैरतअंगेज हालात ही हैं, जिनमें हर स्थिति में तबाही का मंजर बन जाता है. यकीनन जिस बुंदेलखंड इलाके में सूखे के कारण किसान लगातार आत्महत्या करते आए हों, उस इलाके में अब बारिश भी मौत का सबब बन गई है. बारिश के दौरान पिछले महीने यहां 19 लोगों की जान गई, जिसमें से पांच घर के नीचे दब गए, 11 नदी-नालों में बहकर मर गए तो तीन ग्रामीणों को आकाशीय बिजली लील गई.
ललितपुर के जिलाधिकारी चंद्रिका प्रसाद तिवारी कहते हैं कि ज्यादा बारिश होने की वजह से जिले में 697 गांव प्रभावित हुए हैं और 591 मकान ढह गए हैं. लेकिन जिन गरीब लोगों के घर बारिश में गिरे हैं, उनकी क्षतिपूर्ति के लिए 12,000 रुपए प्रति मकान के हिसाब से मुआवजा देना शुरू कर दिया गया है.
जिला मजिस्ट्रेट के मुताबिक यहां प्रमुख जलस्त्रोतों को भरने के लिए 550 एमएम बारिश काफी है, मगर जून में ही 600 एमएम बारिश ने नया रिकॉर्ड बनाया है. बुंदेलखंड में उपजे हालातों को देखकर फिल्म झूला में गाया मन्ना डे का वह गाना याद आता है-एक समय पर दो बरसातें, बारिश के संग आंसू बरसें...