देश में चुनाव तो कई हुए हैं. मध्यावधि चुनाव भी हुए हैं, लेकिन ये पहली बार ऐसा हो रहा है कि अकसर कोई न कोई सरकार की सहयोगी पार्टी, चुनाव आया... चुनाव आया...का शोर मचा रही है.
क्या सचमुच मनमोहन सिंह सरकार पर मध्यावधि चुनाव की तलवार लटक रही है?
फिलहाल केंद्र को जारी रहेगा समर्थन: मायावती
मनमोहन सरकार से जनता की उम्मीदें धराशायी हो या न हों, लेकिन फायदे और नुकसान के तराजू पर समर्थन तौलते सहयोगी दलों ने सरकार की धड़कनें जरूर बढ़ा दी.
UPA के पुराने पार्टनर पवार का मध्यावधि चुनाव की ओर इशारा
डीजल के बढ़े दाम और रसोई गैस सिलेंडरों का कोटा तय करने के खिलाफ ममता बनर्जी ने यूपीए का साथ क्या छोड़ा, शेयर बाजार की तरह हर दिन मध्यावधि चुनाव का सेंसेक्स उठने और गिरने लगा.
मनमोहन सिंह के लिए सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि सरकार के साथी उनके लिए परेशानी बन गए हैं. आर्थिक सुधार एक्सप्रेस को रफ्तार देने में लगी सरकार के रास्ते में अपने ही रोड़ा अटका रहे हैं.
मध्यावधि चुनाव में फायदा देख रहे हैं मुलायम
उत्तर प्रदेश का सियासी साम्राज्य गवां चुकीं मायावती के लिए चुनावी मुकाबले में उतरना घाटे का सौदा हो, लेकिन मनमोहन सिंह सरकार को मध्यावधि चुनाव का डर दिखाने में पीछे नहीं रहतीं. यूपीए को समर्थन के मुद्दे पर मायावती ने सस्पेंस बरकरार रखा और इशारों इशारों में वक्त से पहले चुनाव का संकेत भी दे दिया.
मायावती ने मध्यावधि चुनाव का हल्के से इशारा क्या किया, शरद पवार ने एनसीपी को भी चुनाव के लिए तैयार रहने का संदेश दे दिया. मध्यावधि चुनाव की आड़ में पवार का ये पावर गेम है. गुल खाएं, गुलगुले से परहेज के अंदाज में सत्ता की मलाई खाने में परेशानी नहीं, लेकिन ये डर जरूर सता रहा है कि कहीं सरकार की नाकामी का ठीकरा उनके सिर पर भी न फूट जाए.
सरकार के सहयोगी जिस तरह से साथ छोड़ रहे हैं, उससे यूपीए के कुनबे कि बिखरने की आशंका से कोई इनकार नहीं कर रहा.
आर्थिक नीतियों के खिलाफ पहले ममता बनर्जी ने समर्थन वापस लिया. फिर बालूलाल मरांडी ने पल्ला झाड़ लिया. महंगाई और एफडीआई के खिलाफ रैली में बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी भी विपक्ष की तरह ताल ठोंकतीं नजर आई. ममता ने एफडीआई पर मनमोहन सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने पर समर्थन देने का ऐलान किया, तो करुणानिधि भी सुर में सुर मिलाने लगे. महाराष्ट्र में अजित पवार ने इस्तीफा देकर एनसीपी और कांग्रेस के रिश्तों की खटास को भी सतह पर ला दिया.
सवाल चाहे जो भी हों, लेकिन मध्यावधि चुनाव को लेकर हर सियासी पार्टियां तैयारी में जुटी है. खुद कांग्रेस भी समय से पहले चुनाव की आशंका को पूरी तरह से खारिज नहीं करती. जाहिर है कांग्रेस और सहयोगी दलों के रिश्तों में आग लगी है, तभी धुंआ उठ रहा है.