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तेलंगाना मामले में ‘समर्पण’ से कांग्रेस की छवि को नुकसान पहुंचाः विकिलीक्स

अलग तेलंगाना राज्य की मांग के आगे झुककर कांग्रेस ने अपने लिए समस्याओं का पिटारा खोल लिया ओर कमजोर पार्टी दिखाई दी जिसे आसानी से धमकाया जा सकता है.

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तेलंगाना
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अलग तेलंगाना राज्य की मांग के आगे झुककर कांग्रेस ने अपने लिए समस्याओं का पिटारा खोल लिया ओर कमजोर पार्टी दिखाई दी जिसे आसानी से धमकाया जा सकता है. यह बात वर्ष 2009 में अमेरिका ने हालात के अपने आकलन में कही थी.

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तत्कालीन अमेरिकी राजदूत टिमोथी रोमर ने 10 दिसंबर, 2009 को लिखे गोपनीय दस्तावेज में कहा कि ‘तेलंगाना पर समर्पण’ के प्रभाव आंध्र प्रदेश के बाहर तक दिख सकते हैं क्योंकि इस तरह की मांगों को तेलंगाना आंदोलन की रातों.रात सफलता से नयी गति मिल सकती है.

गृह मंत्री पी. चिदंबरम द्वारा तेलंगाना राज्य के गठन की घोषणा के एक दिन बाद केबल में रोमर ने लिखा था कि कांग्रेस के सामने पूरे देश से इस तरह की अलग राज्यों की मांगों की बाढ़ लग सकती है और इस फैसले को लेकर उनकी अपनी ही पार्टी में विभाजन है.

विकिलीक्स द्वारा हाल ही में जारी केबल के अनुसार, ‘यह (कांग्रेस) कमजोर और अशक्त दिखाई देती है जिसे निर्णायक चुनावी जनादेश हासिल करने के महज छह महीने बाद आसानी से धमकाया और त्रस्त किया जा सकता है.’

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रोमर ने सरकार के इस फैसले को उस समय इस मुद्दे पर अनशन कर रहे के. चंद्रशेखर राव और उनकी पार्टी टीआरएस के लिए बड़ी सफलता करार दिया जिसके लोकसभा में केवल दो और राज्य विधानसभा में केवल छह सदस्य हैं.

केबल में यह भी कहा गया कि सरकार ने राव की भूख हड़ताल के 11वें दिन तेलंगाना के गठन की मांग को हरी झंडी दिखाई.

रोमर ने लिखा कि कांग्रेस ने अपने लिए समस्याओं का पिटारा खोल लिया है जो कि सितंबर, 2009 में मुख्यमंत्री वाई एस राजशेखर रेड्डी के निधन के बाद सामने आये संकट से उबर ही रही थी.

अमेरिकी राजनयिक ने कहा था कि तेलंगाना पर फैसले के बाद महाराष्ट्र के विदर्भ, उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड और पूर्वांचल तथा देश के अन्य हिस्सों में अलग राज्यों की इस तरह की मांगें सिर उठा सकती हैं. उन्होंने लिखा, ‘कांग्रेस पार्टी (और संप्रग सरकार) को पहले ही तेलंगाना पर अपने फैसले पर अफसोस हुआ होगा क्योंकि अलग राज्यों की और मांगें आईं, अपने प्रभाव वाले आंध्र प्रदेश में पार्टी में मतभेद आये और मीडिया में इसे कमजोर दिखाया गया.’

रोमर ने यह भी कहा कि आंध्र प्रदेश में कांग्रेस में तेलंगाना पर मांग को लेकर विभाजन था. प्रदेश के कुछ विधायक तथा संसद सदस्य जहां मांग के समर्थन में थे वहीं अन्य कुछ इसका विरोध कर रहे थे.

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केबल के अनुसार, ‘संपर्क हमें बताते हैं कि पर्दे के पीछे राज्य सरकार में मुख्य पद के लिए निवर्तमान मुख्यमंत्री के रोसैया और उनके प्रतिद्वंद्वी रहे वाई एस राजशेखर रेड्डी के बेटे के बीच भीषण विवाद है.’ दस्तावेज में लिखा है कि तेलंगाना को अलग करने से हैदराबाद के दर्जे पर भी पेचीदा सवाल खड़ा हो गया है जो कि तेलंगाना क्षेत्र में आता है.

रोमर ने कहा, ‘टीआरएस ने स्पष्ट कहा है कि बिना हैदराबाद के तेलंगाना नहीं हो सकता. हालांकि हैदराबाद सॉफ्टवेयर तथा दवा उद्योगों समेत प्रदेश के बड़े उद्यमों का हब है.’ केबल के मुताबिक, ‘हैदराबाद के व्यापार पर प्रदेश के रेड्डी और खम्मा समुदायों का प्रभुत्व है लेकिन उनका केंद्र प्रदेश का गैर-तेलंगाना क्षेत्र है.’ इसके अनुसार, ‘ये राजनीतिक तौर पर शक्तिशाली समुदाय संभवत: हैदराबाद को आसानी से तेलंगाना को नहीं सौंपेंगे.’

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