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अंडरवर्ल्‍ड डॉन छोटा राजन के कुनबे में पड़ी दरार!

3 जून 2010,  समय रात के 10 बजे और इलाका मुंबई का तिलकनगर.  हाल के दिनों में मुंबई ने ऐसा शूटआउट पहली बार देखा. डॉन के गुर्गे का उसी के घर में काम तमाम.  कोई कुछ समझ पाता, थोडी ही देर में गोलियां खामोश हो गईं.

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3 जून 2010,  समय रात के 10 बजे और इलाका मुंबई का तिलकनगर.  हाल के दिनों में मुंबई ने ऐसा शूटआउट पहली बार देखा. डॉन के गुर्गे का उसी के घर में काम तमाम.  कोई कुछ समझ पाता, थोडी ही देर में गोलियां खामोश हो गईं. गोली चलाने वाले जिस तेजी से आए थे, उसी तेजी से गायब भी हो गए लेकिन, इसके बाद जो खबर सामने आई वो इस घटना से भी सनसनीखेज थी. जी हां, ये गोलियां चली थीं छोटा राजन के बेहद करीबी फरीद तनाशा पर.

चार हमलावरों ने छोटा राजन के गुर्गे फरीद तनाशा के सिर, पेट और हाथ में गोलियां उतारकर उसका काम तमाम कर दिया था. फरीद तनाशा के मारे जाने की खबर जैसे ही बाहर आई, मुंबई में सनसनी फैल गई. तमाम सवाल सामने आने लगे लेकिन, अटकलों का बाजार गर्म होता इससे पहले ही सामने आ गया शूटआउट का मास्टर माइंड भरत नेपाली. छोटा राजन का पुराना साथी. जी हां, छोटा राजन के इस पुराने साथी ने ही फरीद तनाशा का काम तमाम करवाया था.

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मायानगरी मुंबई में भरत नेपाली के हाथों अंजाम दी गई ये दूसरी सबसे बड़ी वारदात थी. इससे पहले नेपाली के लोगों ने 11 फरवरी को वकील शाहिद आजमी की उन्हीं के दफ्तर में हत्या कर दी थी.
लेकिन, तनाशा की हत्या मुंबई अंडरवर्ल्ड के लिए कोई मामूली घटना नहीं है. खासकर नाना कंपनी के सरगना छोटा राजन के लिए क्योकि तनाशा की हत्या के बाद अब खतरा मंडरा रहा है कि कहीं नाना गैंग खल्लास ना हो जाए.{mospagebreak}

17 सितंबर 2000, बैंकाक स्थित सवन कोर्ट अपार्टमेंट की सी विंग की इमारत गोलियों से थर्रा उठती हैं. करीब चार हमलावर सी विंग की दूसरी मंजिल पर मचा देते हैं कोहराम. ये हमला हुआ था अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन पर. हमले को अंजाम दिया था दाऊद के गुर्गे छोटा शकील के शूटरों ने.

कायदे से देखा जाए तो छोटा राजन गैंग की उल्टी गिनती इसी हमले से शुरू हो गई थी. हमले में राजन तो बच निकला था लेकिन उसका सबसे करीबी रोहित वर्मा मारा गया. इसके बाद तो छोटा राजन गैंग में ऐसी सेंध लगी कि अब इसके खत्म होने की अठकलें भी लगने लगी हैं.

साल 2005 में छोटा राजन के सबसे करीबी साथी बालू डोकरे को डी कंपनी के आदमियों ने मलेशिया में मार गिराया था. बालू डोकरे और रोहित वर्मा छोटा राजन के सबसे खतरनाक शार्प शूटर माने जाते थे लेकिन, दुश्मन गैंग ने तो राजन गैंग में सेंध लगाई ही, खुद अपने शक्की मिजाज और पैसे की कमजोरी की वजह से भी राजन कमजोर हो गया. पैसे के लिए कभी उसने किसी को कंपनी से निकाला तो कभी अपने लोगों को गोलियों की भेंट चढ़ा दिया.

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राजन से अलग हो चुके लोगों की मानें तो 1993 के मुंबई ब्लास्ट के बाद उसने डी कंपनी से खुद को अलग कर अपने ऊपर देशभक्ति का मुलम्मा चढ़ाने की कोशिश की थी लेकिन, इसकी आड़ में उसने जो हरकतें की उसने अपनों को ही दुश्मन बना लिया.

राजन के पुराने साथियों की मानें तो मुंबई ब्लास्ट के आरोपियों को लेकर राजन ने दोहरे मापदंड अपनाए. जिनसे उसे फायदा हो सकता था उसे अपने ड्रग्स तस्करी के धंधे में इस्तेमाल किया, जिससे फायदा नहीं था उसे मौत के घाट उतार दिया. मसलन ब्लास्ट के आरोपी पिलू खान और एजाज पठान का इस्तेमाल उसने ड्रग्स के धंधे में पांव जमाने के लिए किया.

खबर है कि राजन के तमाम पुराने करीबी अब उसके खिलाफ एकजुट हो गए हैं. एजाज लकड़ावाला, हेमंत पुजारी, बंटी पांडे ने राजन के खिलाफ भरत नेपाली, संतोष शेट्टी और विजय शेट्टी की तिकड़ी से हाथ मिला लिया है. इसमें सबसे खतरनाक है भरत नेपाली, जो करना है तो करना है, में यकीन रखता है और इस समय उसका सबसे बड़ा मकसद जान पड़ता है नाना गैंग का सफाया.{mospagebreak}

खात्मे के कगार पर छोटा राजन का गैंग. राजन का खात्मा तो दस साल पहले ही हो गया होता जब दाऊद के इशारे पर छोटा शकील के गुर्गों ने उस पर हमला बोला था. किस्मत का धनी छोटा राजन ना सिर्फ गोलियों के जख्म से बचा बल्कि बड़े ही हैरतअंगेज तरीके से बैंकाक के अस्पताल से भागकर कानून गिरफ्त में आने से भी बच गया.

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एम-16 से लैस थाई मिलिट्री के कमांडोज को भनक भी नहीं लगी और फरार हो गया डॉन. कुछ ऐसे ही फिल्मी अंदाज में अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन बैंकाक के समीतिवेज अस्पताल की चौथी मंजिल से फरार हुआ था.

डी कंपनी के हमले से तो छोटा राजन किसी तरह बरह निकला था लेकिन अपने आसपास थाई मिलिट्री के कमांडोज को तैनात करवाकर छोटा राजन ने अपने लिए मोल ली थी एक नई मुसीबत. इधर, भारतीय एजेंसियां राजन के प्रत्यर्पण के लिए घात लगाए बैठी थीं, तो दूसरी तरफ छोटा राजन इन तमाम बंदिशों से आजाद होने के लिए छटपटा रहा था.

महीने भर में राजन की तबीयत ठीक हो चुकी थी और उसे बैंकाक पुलिस अस्पताल में भर्ती कराने की बात शुरू हो चुकी थी. चूंकि वहां से राजन का भागना नामुमकिन होता लिहाजा राजन के गुर्गों ने उसे निकालने की कवायद तेज कर दी. पहले अस्पताल के डॉक्टर चिंग्याम की मदद से राजन को उसी अस्पताल में भर्ती रखने का आदेश अदालत से जारी करवाया गया और फिर भागने की सनसनीखेज रणनीति बनने लगी. इसमें सबसे अहम किरदार था संतोष शेट्टी और भरत नेपाली. {mospagebreak}

उसी संतोष शेट्टी से जब आज तक की टीम ने बैंकाक में मुलाकात की तो उसने बताया कि उस 15 दिन में हमने प्लानिंग शुरू किया. अब इनके भगाया कैसे जाए. इस दौरान हमने ये किया कि भरत भाई ने जो माउंटेन क्लाइंबिंग का एक कोर्स सीख लिया. सात दिन का क्रैश कोर्स.

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जी हां, चौथी मंजिल से भागने के लिए रस्सी के सहारे कूदने की ट्रेनिंग भरत नेपाली ने ली. 24 नवंबर 2000 की रात करीब ग्यारह बजे थाई कमांडोज को ड्रिंक्स में नींद की गोली देकर बेहोश कर दिया गया. रात के करीब एक बजे भरत नेपाली माउंटेन क्लाइंबिंग के उपकरण से लैस राजन के कमरे में पहुंचा. चूंकि राजन के जख्म अभी भरे नहीं थे, लिहाजा उसने राजन को अपने कमर में बांध लिया. 15 मिनट की मशक्कत के बाद दोनों नीचे पहुंच चुके थे जहां संतोष थाई मिलिट्री की गाड़ी लेकर तैयार था.

तीनों वहां से कंबोडिया बॉर्डर पहुंचे जहां एक हेलिकॉप्टर की मदद से कंबोडिया भाग गया. फिर इंडोनेशिया, तेहरान और लंदन होते हुए वो करीब दो साल मलेशिया लौट आया. लेकिन, सुरक्षा एजेंसियों को राजन ने पहली बार नहीं छकाया था. 2003 में वो सिंगापुर में भी फंसा था.

हुआ यूं कि राजन जोगिंदर सिंह नाम के एक ब्रिटिश नागरिक के पासपोर्ट पर लंदन जा रहा था. एम्सटर्डम में जब उसका हुलिया पासपोर्ट की तस्वीर से मेल नहीं खाया तो एमीग्रेशन अधिकारियों ने उससे बिग बेन के बारे में पूछा लेकिन, राजन के पास इसका जवाब नहीं था. जांच हुई तो पता चला कि जोगिंदर सिंह की बरसों पहले मौत हो चुकी थी. राजन को अगली ही फ्लाईट से सिंगापुर भेज दिया गया जहां वो चार दिनों तक एमिग्रेशन के डिटेंशन सेंटर में कैद रहा. इस मुश्किल से एक बार फिर उसकी मदद की संतोष शेट्टी और भरत नेपाली ने. उसे किसी तरह जमानत दिलवाकर समुद्र के रास्ते से सिंगापुर से निकाल ले गए.

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1993 का मुंबई धमाका, इन धमाकों ने लिखा था आतंकवाद का बेहद काला और घिनौना अध्याय. इन्हीं धमाकों के बाद डी कंपनी में पड़ी थी एक बड़ी दरार. मुंबई ब्लास्ट के बाद दाऊद को देश का गद्दार बताकर अलग हो गया था छोटा राजन. उसने दाऊद के कुछ लोगों को चुन-चुन कर मार गिराया. लगा कि राजन ने देश के दुश्मनों के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी है लेकिन, राजन के साथ रहे लोग ही अब उसकी नीयत पर सवाल उठा रहे हैं. इसमें सबसे आगे है संतोष शेट्टी. {mospagebreak}

संतोष शेट्टी के अनुसार ये हुआ था 92 में छोटा राजन दाऊद से अलग होना शुरू हुआ और मार्जिनालाइज होना शुरू हुआ. और उसी वक्त प्लान बनना शुरू हो चुका था कि मैं कैसे इनसे अलग हो जाऊं और दूर चला जाऊं. इसका बॉम्बे बम ब्लास्ट से कोई संबंध या नाता नहीं था. ब्लास्ट तो एक बहाना बन गया था.

राजन की नीयत पर सवाल उठने की और भी वजहें हैं. मिसाल के तौर पर 1993 बम धमाके के आरोपी फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर हनीफ कड़ावाला की हत्या. खबर है कि हत्या से कुछ महीने पहले राजन ने हनीफ से 2 करोड़ रुपये ऐंठे. सवाल उठता है कि अगर राजन की नजर में कड़ावाला देशद्रोही था तो फिर उसे पैसे वसूलने की क्या जरुरत थी.

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राजन की नीयत पर सवाल उसका एक और करीबी उठा रहा है. वो है गुरु साटम. साटम के मुताबिक मलेशिया पहुंचकर राजन ने दाऊद से फोन पर कहा था कि दोनों का रास्ता अलग हो चुका है और उसे अपना हिस्सा चाहिए. दाऊद ने राजन को निराश नहीं किया और फौरन 10 लाख दिरहम राजन के हवाले कर दिया.

यही नहीं 2003 में शरद शेट्टी को दुबई के उसके होटल में मरवाने के बाद राजन ने दाऊद को फोन कर कहा था शरद गया, हिसाब चुकता हुआ. मेरा बदला पूरा हुआ. अब आपके मेरे बीच सब कुछ बराबर हो गया. साफ है देशभक्ति को राजन ने सिर्फ मुखौटे के तौर पर इस्तेमाल किया ताकि उसे सुरक्षा एजेंसियों की सहानूभूति भी मिलती रहे और उसका काम चलता रहे.

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