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कथनी-करनी के फर्क से हुए आहत

शैफ अली नकवी ने हाल में युवक कांग्रेस का संगठनात्मक चुनाव लड़ा था और वे सिर्फ एक वोट ही हासिल कर पाए थे. पर अब वे लखीमपुर सदर विधानसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. उनकी उम्मीदवारी से, जाहिर है, पार्टी के भीतर ऊपर से नीचे तक सबको हैरत हुई है, फिर भी हर कोई चुप है.

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शैफ अली नकवी ने हाल में युवक कांग्रेस का संगठनात्मक चुनाव लड़ा था और वे सिर्फ एक वोट ही हासिल कर पाए थे. पर अब वे लखीमपुर सदर विधानसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. उनकी उम्मीदवारी से, जाहिर है, पार्टी के भीतर ऊपर से नीचे तक सबको हैरत हुई है, फिर भी हर कोई चुप है.

वजहः वे लखीमपुर के सांसद जफर अली नकवी के पुत्र हैं, और यही उनकी सबसे बड़ी काबिलियत है. युवक कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता असमंजस में हैं, क्योंकि उनके नेता और पार्टी के युवा मामलों के भी प्रभारी राहुल गांधी ने तो निचले स्तर पर कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाने की कसम खाई थी, लेकिन सैफ की उम्मीदवारी के बाद उनकी कथनी और करनी में भारी अंतर देखकर वे मायूस हुए हैं.

वैसे, यह पहला मौका नहीं है जब राहुल पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के रिश्तेदारों को सिर्फ इसी योग्यता के बूते पार्टी में आगे न बढ़ाने के खुलेआम दिए वचन से पीछे हटे हैं. उनकी यह प्रतिबद्धता उत्तर प्रदेश में पार्टी के लिए अहम थी. पर राहुल युग में उसके पुनर्जन्म के बाद अब वह मृतप्राय संगठन बनने की ओर अग्रसर है. 

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स्थिति यह है कि युवक कांग्रेस के नवनिर्वाचित पदाधिकारियों के पास न तो दफ्तर है और न ही युवाओं से संपर्क करने के लिए कोई वाहन. असल में कांग्रेस ने युवक कांग्रेस का कोष हड़प लिया है और उसे बेसहारा छोड़ दिया है. एक नव-निर्वाचित पदाधिकारी ने दुखी होकर कहा, ''बीते आठ महीने में नए पदाधिकारियों के निर्वाचन के दौरान मैंने राज्य भर में 90,000 किमी का दौरा किया है. सारा खर्च मैंने अपनी जेब से किया. मुझे पार्टी से एक वाहन तक नहीं मिला. क्या राहुल मुझसे यह पूछने का कष्ट करेंगे कि आखिर यह पैसा कहां से आया, और यदि मैंने किसी से कर्ज लिया है तो इसकी भरपाई कैसे करूंगा?''{mospagebreak}

युवक कांग्रेस के दफ्तर में न तो कोई कार है और न ही कंप्यूटर या इंटरनेट कनेक्शन. यहां तक कि दफ्तर के लिए जरूरी कर्मचारी तक नहीं हैं. आखिर युवक कांग्रेस का विस्तार कैसे होगा, जब उसके नेताओं के पास पैसा नहीं है और उन्हें किसी तरह का सहयोग या समर्थन भी नहीं मिल रहा. यह स्थिति तब है जब पार्टी नेतृत्व ने युवक कांग्रेस के सदस्यता अभियान के दौरान 60 लाख रु. जुटाए थे और पार्टी संविधान के मुताबिक, इसमें से 25 फीसदी धन युवक कांग्रेस के खाते में डाला जाना चाहिए था.

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पार्टी के एक और पदाधिकारी ने बताया कि  कोई 1.14 लाख युवाओं की सदस्यता इसलिए खारिज कर दी गई क्योंकि वे पहचान पत्र या जन्म तिथि से संबंधित दस्तावेज उपलब्ध नहीं करा सके थे, लेकिन उनसे लिये गए 17 लाख रु. उन्हें नहीं लौटाए गए. युवक कांग्रेस का सदस्य बनने के लिए 15 रु. सदस्यता शुल्क और अपनी पहचान से संबंधित कोई आधा दर्जन दस्तावेजों की प्रतिलिपियां देनी होती हैं. दागी अतीत के कारण चुनाव लड़ने से रोक दिए गए एक उम्मीदवार का कहना था, ''यह घोटाला है, पर कोई कुछ बोल नहीं रहा, हालांकि हमने राहुल गांधी को एक बैठक के दौरान इससे अवगत कराया था.''

उत्तर प्रदेश में 1989 के बाद से खोया जनाधार हासिल करने के मकसद से मिशन 2012 का रोड मैप तैयार करते समय राहुल गांधी ने दो दशक से बेजान पड़ी युवक कांग्रेस पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया था. उन्हें एहसास हुआ कि 1977 में कांग्रेस के पतन के बाद पार्टी 1980 में सत्ता में तभी लौट पाई जब उनके चाचा संजय गांधी ने युवक कांग्रेस की अगुआई की और बड़ी संख्या में नौजवानों को उससे जोड़ने में कामयाब हुए थे.{mospagebreak}

इस बार कांग्रेस के युवा संगठन में नया उत्साह भरने के लिए सेवानिवृत्त मुख्य निर्वाचन आयुक्त जे.एम. लिंग्दोह और सेवानिवृत्त निर्वाचन आयुक्त के.जे. राव को जोड़कर फाउंडेशन फॉर एडवांस्ड मैनेजमेंट ऑफ इलेक्शन (फेम) नामक एक एनजीओ का गठन किया गया. राहुल ने संगठन में नए युवाओं को जोड़ कर नई तरह की राजनीति की अवधारणा पर जोर दिया और फेम के पदाधिकारियों ने सदस्यों के लिए दिशानिर्देश जारी कर 15 रु. सदस्यता शुल्क तय कर दिया.

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सदस्यता अभियान पूरा होते ही इस साल की शुरुआत में शीर्ष स्तर के पदाधिकारियों के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई और फिर वार्ड, पंचायत स्तर से लेकर विधानसभा और लोकसभा और फिर राज्य स्तर के चुनाव कराए गए. राज्य को चार क्षेत्रों में बांटा गया-मध्य यूपी, पूर्वांचल, बुंदेलखंड और पश्चिमी यूपी.

युवक कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी बताते हैं, ''शीर्ष स्तर पर जाने के लिए इच्छुक उम्मीदवार को पहले पंचायत, वार्ड स्तर से लेकर क्षेत्रीय अध्यक्ष तक के चुनाव लड़ने पड़े और इसके लिए आरक्षित वर्ग को छोड़कर सामान्य उम्मीदवार को 500 रु. से लेकर 7,000 रु. तक की जमानत राशि जमा करनी पड़ी. उसके बाद हर स्तर पर मतदाताओं के पास जाना पड़ा और इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि अंतिम दो चरणों में तो मतदाताओं को खरीदने के लिए लाखों रु. खर्च किए गए, ठीक उसी तरह से जिस तरह से विधायकों को खरीदा जाता है.''

जाहिर है, आम आदमी को शीर्ष पर लाने की राहुल की बुनियादी अवधारणा नाकाम हो गई और वही लोग आगे आ सके जिन्होंने पैसा खर्च किया या कर सकते हैं. वरना यह तो हर कोई जानता है कि आखिर कोई 18 साल का लड़का युवक कांग्रेस के किसी बड़े पद का चुनाव लड़ने के लिए 15,000 रु. कहां से जमा कर सकता है. {mospagebreak}

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युवक कांग्रेस में एक एनजीओ के जरिए जान डालने की राहुल की योजना की एक और खामी यह है कि जो लोग शीर्ष पर पहुंच सके, उन्होंने पार्टी को परेशानी में डालने के अलावा कुछ नहीं किया. मसलन, तरुण पटेल सेंट्रल जोन के युवक कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए. तीन महीने के भीतर ही पटेल को अनुशासनहीनता के आरोप में युवक कांग्रेस से निलंबित कर दिया गया. उन पर युवक कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के दफ्तर में जबरदस्ती घुसकर उस पर अवैध तरीके से कब्जा करने का आरोप है. और जब उन्हें नोटिस भेजकर फौरन जवाब मांगा गया तो उन्होंने इससे इनकार भी कर दिया. लिहाजा, 4 अक्तूबर को पार्टी ने उन्हें निलंबित कर दिया. 

पटेल के मामले से साफ है कि राव और लिंग्दोह के साथ राहुल की सारी कवायद दो वजहों से निरर्थक लगती है. एक तो योजनाकार पार्टी चुनाव में माफिया और पैसे के इस्तेमाल को रोकने में पूरी तरह नाकाम रहे और दूसरे, जो लोग शीर्ष पदों तक पहुंच भी गए तो वे पार्टी नेतृत्व की इच्छा को पूरा नहीं कर सके. राहुल गांधी के युवक कांग्रेस का एजेंडा आगे बढ़ाने के दो साल बाद चार क्षेत्रों में से सिर्फ सेंट्रल जोन में ही चुनाव हो सके हैं, जबकि बाकी के तीन क्षेत्र ऐसे ही पड़े हैं.

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इंडिया टुडे से बातचीत में पटेल ने अपने निलंबन को लेकर कुछ कहने से मना कर दिया लेकिन उनके समर्थकों ने कहा, ''वे प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेताओं के बीच जारी प्रतिद्वंद्वता का शिकार हुए हैं.'' युवक कांग्रेस की एकमात्र महिला महासचिव श्वेता सिंह कहती हैं, ''पटेल भले नौजवान हैं. उन्हें छोटी-सी गलती की इतनी बड़ी सजा नहीं दी जानी चाहिए थी.''{mospagebreak} ऐसे प्रदेश में जहां की मुख्यमंत्री महिला है, वहां युवक कांग्रेस को श्वेता सिंह को छोड़ कोई ऐसी लड़की या महिला नहीं मिली जिसे कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जाती. यही नहीं, जिस राज्य में दलितों का सशक्तीकरण हो रहा है, वहां इस संगठन को एससी का न्यूनतम कोटा भरने के लिए भी कोई दलित नहीं मिला. इससे दलितों की उपेह्ना करने की कांग्रेस की उसी पुरानी मानसकिता का पता चलता है.

युवक कांग्रेस के नेता उन्हें नजरअंदाज करने के राहुल के तरीके से भी निराश हैं. एक वरिष्ठ नेता का कहना था, ''कार्यकर्ताओं से सीधे बात करने के बदले राहुल स्वयंसेवी संगठनों के जरिए और उस चौकड़ी के जरिए बात करते हैं, जो चौबीस घंटे उन्हें घेरे रहती है.'' आम तौर पर पूछा जाता है कि राहुल लखनऊ में युवक कांग्रेस के कार्यालय में क्यों नहीं आए हैं. दूसरे, यह भी कहा जाता है कि राहुल गरीब नौजवानों के बारे में कुछ नहीं सोचते बल्कि उनके कार्यक्रम संभ्रांत वर्ग और अमीरों के अनुकूल होते हैं.

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युवक कांग्रेस के नेता इस बात को लेकर भी राहुल की आलोचना कर रहे हैं कि उन्होंने विधान-सभा चुनावों में उन्हें 40 सीटें देने का अपना वादा नहीं निभाया है. बकौल एक कार्यकर्ता, ''बिहार में युवक कांग्रेस के किसी पदाधिकारी को मौका नहीं दिया गया.'' उन्होंने यह भी कहा कि बीते चार साल में यह पहला मौका है जब एनएसयूआइ को दिल्ली विवि के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. बहरहाल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस में नई जान फूंकने की राहुल की योजना नाकाम हो गई है और युवक कांग्रेस के नेता बेहतर राजनीतिक भविष्य की तलाश में पलायन करने लगे हैं.

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