विश्व हिन्दू परिषद् की संत उच्चाधिकार समिति ने अयोध्या में विवादित रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद स्थल को तीन भागों में बांटने के लिए 30 सितम्बर को आये इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने का फैसला किया है.
विहिप की उच्चाधिकार प्राप्त संत समिति की बुधवार को हुई बैठक की अध्यक्षता करने वाले स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने संवाददाताओं को बताया कि संतों की समिति का निर्णय है कि विवादित स्थल को तीन भागों में बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील की जायेगी और यह दायित्व रामलला विराजमान के बालसखा के रूप में पक्षकार त्रिलोकीनाथ पांडेय को सौंपी जायेगी.
स्वामी सरस्वती के साथ संवाददाता सम्मलेन में उपस्थित विहिप अध्यक्ष अशोक सिंघल ने कहा कि अदालत ने यह स्वीकार किया है कि विवादित स्थल भगवान राम का जन्म स्थल है और संत समिति का मानना है कि राम और राम जन्मभूमि पूजनीय हैं और उनका बंटवारा नहीं हो सकता. सिंघल ने रामजन्म स्थान के बंटवारे को देश के बंटवारे जैसा बताते हुए कहा कि इस विवाद का समाधान विवादित स्थल के बंटवारे से नहीं हो सकता क्योंकि अदालत ने माना है कि सारी भूमि रामलला की है. {mospagebreak}
सम्पूर्ण विवादित स्थल पर भव्य राम मंदिर के निर्माण का संकल्प दोहराते हुए सिंघल ने कहा कि भारत सरकार को चाहिए कि वह कानून बनाकर सम्पूर्ण विवादित स्थल राम मंदिर के निर्माण के लिए हिन्दू समाज को सौंप दे.
उन्होंने यह भी कहा कि विहिप के उच्चाधिकार प्राप्त संत समिति का एक प्रतिनिधिमंडल 23 अथवा 24 अक्तूबर को प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से मुलाकात करके उनसे यह मांग करेगा कि केन्द्र सरकार कानून बनाकर सम्पूर्ण रामजन्म भूमि हिन्दू समाज को सौंप दे और राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने के लिए वैसा ही कानून बनाये जैसा कि सोमनाथ मंदिर के लिए बनाया गया था. सिंघल ने स्पष्ट किया, ‘अयोध्या की सांस्कृतिक सीमा के भीतर किसी मस्जिद का निर्माण उन्हें स्वीकार नहीं होगा.’
बातचीत से विवाद के समाधान की दिशा में चल रहे प्रयासों के बारे में सिंघल ने कहा कि इससे पहले भी कम से कम चार बार इस दिशा में प्रयास हो चुके हैं लेकिन वे कामयाब नहीं हुए. विहिप अध्यक्ष सिंघल ने यह भी कहा कि चूंकि अयोध्या एक धार्मिक तीर्थ केन्द्र भी है, इसका समुचित विकास करने के लिए अयोध्या तीर्थ विकास प्राधिकरण का गठन किया जाना चाहिए. {mospagebreak}
उन्होंने कहा कि विकास प्राधिकरण का गठन करके बाल्मीकि रामायण में वर्णित सभी श्रद्धा केन्द्रों को धार्मिक तीर्थ स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए. सिंघल ने कहा कि राम जन्मभूमि स्थल पर रामलला का भव्य मंदिर बनाने के लिए विहिप की तरफ से चलाया जा रहा जन जागरण कार्यक्रम मंदिर बन जाने तक चलता रहेगा.
उडिपी के स्वामी विश्वेश्वर तीर्थजी महाराज ने कहा कि यदि मुस्लिम समाज विवादित स्थल के बजाय कहीं अन्य मस्जिद बनाना चाहे तो अदालत के बाहर मामले के समाधान के लिए हमारे दरवाजे हमेशा खुले हुए हैं. उन्होंने कहा, ‘मुस्लिम समाज के सामने अवसर है कि वह विवादित स्थल से अपना दावा छोड़कर दोनों समुदायों के बीच आपसी विश्वास और भाईचारे को मजबूत करने में अपना योगदान दे.’
बैठक मे पारित एक प्रस्ताव में संतों ने कहा है कि आपसी बातचीत से विवाद के समाधान का रास्ता हमेशा खुला हुआ है और हम इस दिशा में होने वाले किसी भी प्रयास में अपने सांस्कृतिक जीवन मूल्यों और आदशरें के अनुसार सकारात्मक सहयोग को हमेशा तैयार हैं. {mospagebreak}
प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने विवादित स्थल के एक तिहाई भाग को मुसलमानों के हिस्से में दिये जाने का फैसला करके मुस्लिम समाज को एक सुनहरा मौका दिया है कि वे उस भूभाग को राममंदिर के लिए समर्पित कर दोनों समुदायों के बीच परस्पर सौहार्द का नया अध्याय शुरू करें. सम्पूर्ण विवादित स्थल को भगवान राम की क्रीड़ा, लीला और संस्कार की भूमि बताते हुए स्वामी तीर्थजी महाराज ने कहा कि अदालत ने भी यह माना है कि विवादित स्थल भगवान राम की जन्मभूमि है और वे ही पूरी भूमि के मालिक हैं.
विहिप अध्यक्ष सिंघल ने बताया कि संत उच्चाधिकार समिति के निर्णयों की जानकारी देने के लिए गुरुवार को अयोध्या के सभी स्थानीय संत महात्माओं की एक बैठक बुलायी गयी है. इस बीच संत उच्चाधिकार समिति का सदस्य होने के बावजूद अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष स्वामी ज्ञानदास इस बैठक में शामिल नहीं हुए. वह संभवत: अपनी तरफ से बातचीत के जरिये विवाद का समाधान करने की कोशिशों में लगे हैं.