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50 हजार रुपये के लिए विश्‍वास का कत्‍ल

तारीख़ 19 दिसंबर 2010, जगह वसंत कुंज पुलिस स्टेशन, दिल्ली, वक्त 8 बजकर 39 मिनट. नाइट शिफ्ट पूरी कर ज़्यादातर पुलिसवाले अपने घर जा चुके थे. सुबह के ड्यूटी अफसर ने अभी-अभी रोज़नामचे पर नजर डाली ही थी कि तुरंत टेलीफ़ोन की घंटी घनघना उठी.

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तारीख़ 19 दिसंबर 2010, जगह वसंत कुंज पुलिस स्टेशन, दिल्ली, वक्त 8 बजकर 39 मिनट. नाइट शिफ्ट पूरी कर ज़्यादातर पुलिसवाले अपने घर जा चुके थे. सुबह के ड्यूटी अफसर ने अभी-अभी रोज़नामचे पर नजर डाली ही थी कि तुरंत टेलीफ़ोन की घंटी घनघना उठी. फ़ोन वसंत कुंज इलाके के ही पॉकेट नंबर सी-9 से था और टेलीफ़ोन करने वाले शख्स ने बताया कि काफ़ी कोशिशों के बावजूद उसके चाचा दरवाज़ा नहीं खोल रहे. अलबत्ता खिड़की से झांकने पर वो अपने बेड पर सोए ज़रूर दिख रहे हैं और चूंकि उसे दस्तक देते और चाचा को पुकारते-पुकारते काफ़ी वक्त हो चुका है, उसे अनहोनी का डर सता रहा है.

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चूंकि टेलीफ़ोन करनेवाले की आवाज़ में घबराहट थी और मामला एक पॉश इलाके का था, पुलिस ने भी देर नहीं की. तुरंत ही थाने से एक आईओ पुलिस बल के साथ मौके के लिए रवाना हो गया. टेलीफ़ोन करने वाला शख्स वहीं मौजूद था. कॉल करने वाले ने बताया कि उसका नाम पंकज जोशी है और ये मकान उसके चाचा डी.के. जोशी का है. लेकिन पता नहीं क्यों वो न तो दरवाजा खोल रहे हैं और ना ही कोई आवाज़ ही दे रहे हैं. {mospagebreak}

चूंकि घर का सदर दरवाजा अंदर से बंद है इसलिए कोई भी अंदर नहीं जा सकता. अलबत्ता ड्राइंग रूम में बने झरोखे से अंदर का मंज़र साफ दिख रहा है. लेकिन मौके पर पहुंची पुलिस तब हैरान हो जाती है, जब वो देखती है कि सदर दरवाज़ा बेशक अंदर से बंद है, लेकिन पिछला दरवाजा बाहर की तरफ खुला हुआ है. अब पुलिस बिना वक्त गंवाए इसी दरवाजे से अंदर दाखिल होती है. लेकिन यहां मंज़र बेहद खौफनाक है.

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मकान मालिक डी.के. जोशी का गला धारदार हथियार से रेता हुआ है और इसी गले में किसी ने कैंची घुसेड़ दी है. जाहिर है किसी ने जोशी का कत्ल किया है. पुलिस घर की तलाशी लेती है और उसे पता चलता है कि जोशी का मोबाइल फोन, क्रेडिट कार्ड, लैपटाप और घर में रखीं कीमती शराब की बोतलें ग़ायब है.

क्राइम सीन पर पहुंची पुलिस ने सुराग जुटाने के लिए फिंगर प्रिंट और दूसरी जरूरी चीजें तो उठा लीं लेकिन अब भी कातिल तक पहुंचने कि एक बात का पता करना जरूरी था और वो ये कि कातिल के कत्ल का मकसद क्या था. ग़ायब सामानों से एक तरफ़ तो मामला लूट का लगता है, लेकिन क़त्ल के तरीक़े से रंजिश का. {mospagebreak}

पुलिस वारदात के मोटिव को लेकर कुछ देर के लिए उलझ कर रह जाती है. लेकिन तभी पुलिस का माथा चकरा जाता है, जब वो मौका-ए-वारदात पर एक लेडीज विग देखती है. जोशी चूंकि यहां अकेले रहते हैं, इस लेडीज विग की मौजूदगी ये साबित करने के लिए काफ़ी है कि हो ना हो इस विग का जोशी के क़त्ल से कोई रिश्ता ज़रूर है. लेकिन चूंकि एक बेजान बालों के गुच्छे से कोई पूछताछ नहीं हो सकती, पुलिस फिर से तफ्तीश में अपना सिर खपाना शुरू कर देती है.

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सबसे पहले पुलिस मौके पर मौजूद उनके भतीजे पंकज जोशी से ही पूछताछ करती है. पंकज बताता है कि उनके चाचा अपने इस मकान में काफ़ी समय से अकेले ही रहते हैं. इकलौता बेटा अमेरिका के न्यूजर्सी में सेटेल्ड है. हां, इतना ज़रूर है कि कुछ समय पहले जोशी के मकान में कुछ लड़के पेइंग गेस्ट के तौर पर ज़रूर रहते थे, लेकिन अब उन्हें भी चाचा का घर छोड़े हुए कई दिन गुज़र चुके हैं.

मामला ब्लाइंड मर्डर का था. गरज ये कि पुलिस को मरनेवाले की पहचान के अलावा कुछ भी पता नहीं था. हालात उलझानेवाले थे. पुलिस के पास ना तो क़ातिलों का कोई सुराग़ था और ना ही चश्मदीद. चूंकि जोशी का इकलौता वारिस भी विदेश में था, मामले को जायदाद से जोड़ कर देखना भी ठीक नहीं था. {mospagebreak}

ऐसे में पुलिस तफ्तीश के रवायती रास्ते पर चलने का फ़ैसला करती है. यानी वो मकतूल के रिश्तेदार, नौकर, आस-पास रहनेवाले तमाम लोग सबसे पूछताछ कर जोशी के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी हासिल करने की कोशिश में लगती है. इसी सिलसिले में पुलिस को पता चलता है कि चूंकि सरकारी स्कूल में टीचर रहे जोशी का बेटा विदेश में सेटेल्ड है और उनकी बीवी का इंतकाल हो चुका है, वो काफ़ी दिनो से यहां अकेले ही रहते हैं.

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उनको जाननेवाले लोग बताते हैं कि जोशी किसी ज़माने में बहुत खुशमिज़ाज और मिलनसार किस्म के इंसान हुआ करते थे, लेकिन अपनी बीवी की मौत के बाद उन्होंने एक तरह से जैसे खुद को घर में ही कैद कर लिया था. हां, अपनी ज़िंदगी का खालीपन दूर करने वे अक्सर दिल्ली से सटे मुरथल के ओशो आश्रम में ज़रूर जाया करते थे.

वैसे तो जोशी को रुपए-पैसों की कोई कमी नहीं थी, लेकिन ये शायद उनका अकेलापन ही था, जिससे बचने के लिए उन्होंने स्कूल में पढ़नेवाले दो लड़कों को अपने घर में पेइंग गेस्ट के तौर पर रख लिया था. ये जोशी की दरियादिली ही थी कि उन्होंने लड़कों को पढ़ाना भी शुरू कर दिया था और पढ़ाई से ध्यान ना भटके इसलिए अपने घर का केबल कनेक्शन तक कटवा दिया था. {mospagebreak}

लेकिन जोशी की शख्सियत की इन्हीं बातों के साथ-साथ एक सवाल ये भी उठ खड़ा हुआ कि अगर जोशी वाकई अपने यहां पेइंग गेस्ट रहनेवाले लड़कों का इतना ही ख्याल रखते थे, तो फिर अचानक उन्होंने जोशी का मकान क्यों छोड़ दिया? क्या उनकी पढ़ाई पूरी हो गई और या फिर वजह को और थी. तफ्तीश आगे बढ़ी और अब पुलिस को एक ऐसी बात का पता चला कि उसे इस ब्लाइंड मर्डर के घुप्प अंधेरे में एक रोशनी सी नज़र आने लगी. तहक़ीकात के शुरूआती पड़ाव में हालात पुरानी रंजिश की थ्योरी को नकार रहे थे लेकिन पूछताछ में ही कुछ ऐसा पता लगा कि पुलिस का शक पेइंग गेस्ट लड़कों पर गहराता ही जा रहा था.

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अब पुलिस का ध्यान जोशी के मकान में पेइंग गेस्ट रह चुके लड़कों की तरफ़ गया और जैसा कि अमूमन होता है पुलिस ने फ़ौरन दोनों की तलाश शुरू कर दी. दोनों तो नहीं मिले, लेकिन पुलिस ने दिल्ली से सटे गुड़गांव से 17 साल के सतबीर को उठा लिया. सतवीर अपने एक दोस्त के साथ जोशी के मकान में पेइंग गेस्ट के तौर पर रह चुका था. {mospagebreak}

ज़ाहिर है कि पुलिस के शक की सुई सतबीर और उसके दोस्त पर ही जाकर टिक रही थी. इसकी एक अहम वजह ये भी थी इसी साल मार्च के महीने में जोशी का मकान खाली करते वक्त दोनों ने उन्हें कोई वक्त नहीं दिया, बल्कि एक रोज़ अचानक ही बैंगलोर जाने की बात कहते हुए उनका मकान छोड़ दिया था. और तो और दोनों को बैंगलोर जाने की जल्दी कुछ इतनी ज़्यादा थी कि उन्होंने अपना कुछ सामान तो जोशी के घर ही छोड़ दिया, जो इतने महीनों तक यूं ही पड़ा रहा.

लेकिन इस शक का हल निकालने के लिए सतबीर से पूछताछ ज़रूरी थी. लिहाज़ा, इंटैरोगेशन शुरू हुआ और जल्द ही पूरी कहानी साफ़ हो गई. सतबीर ने कुबूल लिया कि उसी ने अपने दोस्त विक्रांत के साथ मिल कर 17 दिसंबर की रात को जोशी का क़त्ल किया था. लेकिन सवाल ये था कि जिस जोशी ने उन्हें दिल्ली में रहने के लिए छत दी और जिसने उनकी पढ़ाई के लिए अपनी कई चाहतों पर कैंची चला दी, सतवीर और उसके दोस्त ने आख़िर उसी जोशी का क़त्ल क्यों कर दिया? और वो भी इतने वहशियाना तरीके से!

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सवाल ये भी था कि अगर वाकई उन्होंने जोशी के साथ किसी बात की परेशानी थी, तो फिर उन्होंने जोशी का क़त्ल करने के बाद उनका लैपटॉप और दूसरी कीमती चीज़ें क्यों चुरा ली? अगर मामला रंजिश का ही था तो फिर रंजिश निकालने के लिए सतवीर ने पूरे नौ महीने का इंतज़ार क्यों किया? यकीनन इन तमाम सवालों का जवाब जाने बिना पुलिस की तफ्तीश पूरी नहीं हो सकती थी. {mospagebreak}

पुलिस को जब सतबीर की बातों पर यकीन हो गया, तो उसने फ़ौरन उसे पकड़ने की कागज़ी कार्रवाई भी पूरी कर ली. लेकिन उसकी उम्र अब भी 18 साल से कम थी, लिहाज़ा वर्दीवाले उसके साथ उस तरीके से पेश नहीं आ सकते थे, आमतौर पर जिस तरह वो दूसरे क़ातिलों के साथ पेश आते हैं. सतबीर से पूछताछ शुरू हुई और जैसे-जैसे वो मुंह खोलता गया, एक ख़ौफ़नाक क़त्ल की रौंगटे खड़े करनेवाली साज़िश बेनकाब होती गई.

दरअसल, पेइंग गेस्ट के तौर पर रहते हुए सतबीर और उसके दोस्त विक्रांत ने एक बार खुद जोशी के मकान में ही चोरी कर ली थी. और तो और दोनों ने जोशी का क्रेडिट कार्ड चुरा कर लाखों रुपए की शॉपिंग भी कर ली थी. लेकिन ये बात जोशी से छुपी नहीं रह सकी. जोशी का गुस्सा होना लाज़िमी था. अब जोशी ने दोनों के घरवालों से शिकायत की और दोनों को पुलिस के हवाले करने से बचाने का एक ही रास्ता बताया, वो था उनके नुकसान की भरपाई करना. {mospagebreak}

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सतबीर और विक्रांत के घरवाले अब करते भी तो क्या करते? एक तरफ़ बच्चों की ज़िंदगी और इज्जत थी और दूसरी तरफ़ दौलत. उन्होंने बच्चों की ज़िंदगी चुन ली और जोशी के नुकसान की भरपाई शुरू कर दी. सतबीर के घरवालों से जो सौदा तय हुआ उसके मुताबिक उन्हें जोशी को पूरे साढ़े तीन लाख रुपए लौटाने थे. घरवालों ने देर नहीं की और आधे से ज़्यादा रकम यानि तीन लाख रुपए जोशी के हाथों में रख दिए. लेकिन 50 हज़ार रुपए अभी भी बाकी थे.

चोरी की इस वारदात के बाद ही दोनों लड़कों के साथ जोशी के रिश्ते खराब हो गए और दोनों ने उनका मकान भी छोड़ दिया. लेकिन जोशी अक्सर अपने बाकी के 50 हज़ार रुपयों के लिए सतबीर के घरवालों पर दबाव बनाते रहे. सतबीर को ये सब नागवार गुज़रने लगा और एक रोज़ उन्होंने जोशी के क़त्ल का ख़ौफ़नाक फ़ैसला कर लिया.

महीनों से बदले की आग में जल रहा सतबीर अब हर हाल में जोशी की मौत चाहता था. लेकिन उसे डर था कि कहीं उसका दोस्त विक्रांत उसका प्लान फ्लॉप ना कर दे. लिहाज़ा, 17 दिसंबर की दोपहर जब वो जोशी के क़त्ल के इरादे से गुड़गांव से चला, तब उसने विक्रांत की बजाय अपने एक और पुराने दोस्त को साथ ले लिया. राज़ ना खुले, इसलिए उसने अपने इस दोस्त से इरादे भी ज़ाहिर नहीं किए. {mospagebreak}

अब सतबीर सबसे पहले कालकाजी में अपनी गर्लफ्रेंड की ब्यूटी पार्लर में पहुंचा और वहां से एक लेडीज़ विग मांग ली. इरादा था पहचान छिपाने का. फिर दोनों एक ही बाइक से आगे रवाना हुए. रात हो चुकी थी और दोनों वसंतकुंज के उसी मकान के सामने खड़े थे, जहां कुछ महीने पहले तक दोनों पेइंग गेस्ट के तौर पर रहा करते थे.

दोस्त को बाहर खड़ा रख कर वो जोशी से मिलने की बात कह कर कोठी के अंदर चला गया. अब उसने अपने सिर पर विग पहन रखी थी, ताकि किसी को उसके लड़का होने का शक ना हो. उसने कॉल बेल बजाई और बातों में उलझा कर मकान में दाखिल हो गया. अब वो शख्स सतबीर के सामने था, जिससे बदले की आग ने उसके रातों की नींद और दिन का चैन छीन लिया था. उसने सबसे पहले अपने दिल की बात कही और इससे पहले कि जोशी संभल पाते, उसने छिपा कर लाई गई एक खुखरी पूरी ताकत से जोशी के सिर पर दे मारी. अचानक हुए इस हमले से जोशी बेहोश होकर फर्श पर लुढ़क गए. {mospagebreak}

सतबीर को डर था कि कहीं जोशी फिर से खड़ा ना हो जाए, लिहाज़ा उसने पास ही रखी एक कैंची जोशी के गले में घुसेड़ दी और इसे तब तक थामें रखा जब तक छटपटा कर जोशी ठंडे नहीं हो गए. अब वक्त था यहां से निकलने का. पुलिस को उस पर शक ना हो, इसलिए उसने मामले को लूट का जामा पहनाया और लैपटॉप और शराब की बोतल समेत कई कीमती चीजें उठा कर पिछले दरवाज़े से बाहर निकल आया. लेकिन इतना सबकुछ होने के बावजूद उसने अपने दोस्त से कोई बात नहीं बताई. बस लौटा और दोस्त के सामने अपना कुछ सामान वापस लेने का नाटक करते हुए वहां से रवाना हो गया. हां, उसकी विग ज़रूर मौका-ए-वारदात पर छूट गई थी.

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