बीजेपी में महाभारत मचा हुआ है और इसका ताजा अध्याय राजस्थान से जुड़ा हुआ है. वसुंधरा राजे ने अपने एक प्रतिद्वंद्वी नेता की यात्रा पर अड़ंगा लगाते हुए इस्तीफे की धमकी क्या दी, वसुंधरा के समर्थन में 51 बीजेपी विधायक इस्तीफे दे चुके हैं.
अब बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी परेशान हैं और उन्होंने अरुण जेटली को वसुंधरा राजे को मनाने की जिम्मेदारी सौंपी है.
बीजेपी में कई महारथी हैं, जो दो साल बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठने का हसीन ख्वाब देख रहे हैं. चाल और चरित्र पर जोर देने वाली भारतीय जनता पार्टी के अंदर जिस तरह से महाभारत मचा हुआ है.
बीजेपी के महाभारत में ताजा अध्याय है वसुंधरा राजे की चुनौती. जयपुर में पार्टी की कोर कमेटी में वसुंधरा के आने पर इस कदर नारेबाजी हुई, जैसे राजस्थान में उन्हें सबसे बड़े कद का नेता साबित करने का कोई मुकाबला आयोजित हो रहा हो.
दरअसल, राजस्थान बीजेपी के बड़े नेता गुलाबचंद कटारिया मेवाड़ में लोक जागरण यात्रा निकालना चाहते थे और वसुंघरा राजे नहीं चाहती थीं कि कटारिया यात्रा निकालें. मीटिंग में इसी मुद्दे पर चर्चा होनी थी. कटारिया संघ के सबसे करीबी नेताओं में हैं इस नाते वे गडकरी के भी खास हैं.
बीजेपी में गडकरी विरोधी खेमे की करीबी मानी जाने वाली वसुंधरा राजे कटारिया के पर कतरने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहतीं. वसुंधरा राजे की करीबी और बीजेपी की राष्ट्रीय महासचिव किरण माहेश्वरी पहले से ही कटारिया की यात्रा का विरोध कर रही थीं. ऐसे में गडकरी ने पहले ही कह दिया था कि जयपुर की बैठक में ही यात्रा पर फैसला होगा.
जब मीटिंग शुरू हुई तो कोर कमेटी के ज्यादातर लोग कटारिया की यात्रा के पक्ष में खड़े हो गए, जिससे नाराज होकर वसुंधरा राजे बाहर निकल गईं और इस्तीफे का एलान कर दिया.
78 में से 51 बीजेपी विधायकों ने इस्तीफा सौंप दिया. जाहिर है वसुंधरा का ब्रह्मास्त्र काम कर गया. आलाकमान को झुकना पड़ा और कटारिया ने अपनी यात्रा रद्द कर दी.
वसुंधरा ने रेड सिग्नल दिखाया, तो आलाकमान ने भी सिग्नल बदल दिया और कटारिया की गाड़ी चलने से पहले ही पंक्चर हो गई. दिल्ली में गडकरी की किरकिरी हुई सो अलग. सूत्रों का कहना है कि आडवाणी समेत बीजेपी के कई शीर्ष नेता गडकरी से इस बार पर नाराज हैं कि जब उन्हें हालात का अंदाजा नहीं था, तो कटारिया की यात्रा को हरी झंडी देने के लिए फोन क्यों किया था.
वसुंधरा राजे के सुर भी नरम पड़े हैं और उन्होंने मामले को सुलझा लेने की बात कही है, लेकिन साफ है कि वसुंधरा ने अपने स्वर तभी बदले हैं, जब बीजेपी आलाकमान ने करीब-करीब मान लिया है कि राजस्थान में वही होगा, जो वसुंधरा चाहेंगी.