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भोपाल गैस त्रासदी फैसला ढोंग है: बाथरेलोमेव

भोपाल गैस त्रासदी के शिकार हुए एक बच्चे की दिल दहला देने वाली तस्वीर खींचने वाले फोटो पत्रकार पाबलो बाथरेलोमेव विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना के 26 साल बाद निराश हैं. उनका कहना है कि हाल ही में आया अदालती फैसला सिर्फ एक ढोंग है.

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भोपाल गैस त्रासदी के शिकार हुए एक बच्चे की दिल दहला देने वाली तस्वीर खींचने वाले फोटो पत्रकार पाबलो बाथरेलोमेव विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना के 26 साल बाद निराश हैं. उनका कहना है कि हाल ही में आया अदालती फैसला सिर्फ एक ढोंग है.

बाथरेलोमेव ने एक ऐसे बच्चे की तस्वीर ली थी जिसे गर्दन तक दफनाया जा चुका था और उसका चेहरा दिखाई दे रहा था. उनके द्वारा खींची गई यह तस्वीर विश्व में भोपाल गैस त्रासदी का प्रतीक बन गई जिसमें 15 हजार से अधिक लोग मारे गए और लाखों अपंग हो गए.

इस मामले में हाल में आए फैसले पर टिप्पणी करते हुए बाथरेलोमेव ने कहा ‘‘फैसला एक ढोंग है.’’ भोपाल की एक अदालत ने फैसले में यूनियन कारबाइड इंडिया के पूर्व अध्यक्ष केशव महिंद्रा सहित सात लोगों को दो-दो वर्ष के कारावास की सजा सुनाई.

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पुरस्कार विजेता फोटोग्राफर ने साक्षात्कार में कहा ‘‘लेकिन मुद्दे बहुत बड़े हैं. वास्तविक समस्या राहत प्रदान करने में रही है. पुनर्वास कार्यक्रम शुरू किए गए जिन्हें अचानक रोक दिया गया. कोई नहीं जानता क्यों. आर्थिक मुआवजे की तो बात ही भूल जाइए यहां तक कि पीड़ितों के लिए चिकित्सा सहायता पर भी सवालिया निशान हैं.’’{mospagebreak}
बाथरेलोमेव ने कहा ‘‘आज असल चुनौती भोपाल में मौजूदा पीढ़ी के पुनर्वास को लेकर है जहां अब भी हवा में जहरीला रसायन मौजूद है.’’ उन्होंने कहा कि त्रासदी से संबंधित घटनाक्रम देश की समूची शासन प्रणाली पर बहुत से सवाल खड़े करता है.

वर्ष 1984 के लिए ‘वर्ल्ड प्रेस फोटो ऑफ द ईयर’ पुरस्कार प्राप्त करने वाले बाथरेलोमेव ने कहा ‘‘मौजूदा हालात देश और इसकी स्थिति के बारे में बहुत से सवाल उठाते हैं जो भयभीत करने वाले हैं.’’ लेंस के पीछे से भोपाल गैस रिसाव की रिपोर्ट की कोशिश के अपने अनुभवों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि यह उनकी जिन्दगी में बहुत से मायनों में एक प्रेरक बल की तरह था.

उन्होंने कहा ‘‘समूची घटना और उस बच्चे की छवि ने असल में मुझे उत्साहित किया और कई मायनों में यह मेरी जिन्दगी में प्रेरक बल की तरह रहा. हालांकि इस अनुभव ने मुझे डरा दिया लेकिन मुझे बहुत सी जटिलताओं के बारे में जागरूक बना दिया जो आज भी जारी हैं और विश्व उनसे सबक नहीं लेता.’’ हालांकि इस त्रासदी को दो दशक से अधिक समय हो चुका है लेकिन इसका एक-एक पल बाथरेलोमेव के मस्तिष्क में अंकित है.{mospagebreak}

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बाथरेलोमेव ने कहा ‘‘उस रात मैं पटना में था. मैंने सबसे पहले रेडियो पर समाचार सुना और शुरू में इसे नजरअंदाज कर दिया. लेकिन मृतकों की संख्या बढ़ रही थी मैंने टीवी पर शवों की हृदय विदारक तस्वीरें देखीं जिन्हें बड़ी संख्या में ठेलों पर लादकर ले जाया जा रहा था. इस घटनाक्रम ने मुझे झकझोर कर रख दिया और मैंने भोपाल जाने का फैसला किया.’’ वह घटना के दो दिन बाद पांच दिसंबर को भोपाल पहुंचे.

उन्होंने कहा ‘‘जब मैं अस्पताल पहुंचा तो हर ओर शव बिखरे पड़े थे. बच्चों के शवों को देखना काफी डरावना था जिनमें से अधिकतर विकृत हो चुके थे.’’ बाथरेलोमेव ने कहा ‘‘क्योंकि वहां फोटोग्राफी पर रोक लगा दी गई थी इसलिए मैंने श्मशान जाने का फैसला किया जहां अस्पताल से शवों से भरे ट्रक आ रहे थे. यही वह जगह थी जहां मैंने उस छोटे बच्चे को देखा उसे आधा दफनाया जा चुका था. यह कुछ ऐसा था जिसने मुझे चलायमान कर दिया.’’

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