सरकार ने प्रधानमंत्री पद को उनके पदमुक्त होने तक लोकपाल के दायरे में नहीं लाने के मुद्दे पर अपने रुख से पीछे हटने की बात से इनकार कर दिया.
सरकार ने कहा कि वह गहन चर्चा और संभावित नतीजों पर गौर करने के बाद ही मसौदा विधेयक में प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने के निष्कर्ष पर पहुंची. केंद्र ने हज़ारे पक्ष के जनलोकपाल विधेयक पर अपनी असहमति को जायज ठहराते हुए कहा कि वह सरकार के इतर और संविधान के दायरे से बाहर किसी ‘समानांतर सरकार’ की इजाजत नहीं दे सकती.
लोकपाल मसौदा संयुक्त समिति की हुई नौंवीं और अंतिम बैठक के बाद सरकार ने गांधीवादी अन्ना हज़ारे पक्ष की मांगों के जवाब में अपनी दलीलें पुरजोर तरीके से रखीं. मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने प्रधानमंत्री के बारे में पूछे गये सवाल पर कहा, ‘रुख से पीछे हटने की कोई बात नहीं है. इस मुद्दे पर विचार करने की कवायद सरकार को करनी थी. विस्तृत चर्चा करने और संभावित परिणामों पर गौर करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाये.’
मसौदा समिति की छह जून को हुई बैठक में सरकार के मंत्रियों ने इस मुद्दे पर चर्चा की थी. इसके बाद ये संकेत मिले थे कि मसौदे में सरकार यह प्रावधान कर सकती है कि प्रधानमंत्री के पदमुक्त होने तक उनके खिलाफ जांच को लोकपाल निलंबित रखे और प्रधानमंत्री के पद छोड़ने के बाद जांच शुरू की जा सकती है. बहरहाल, सरकार ने जो मसौदा हज़ारे पक्ष को सौंपा, उसमें प्रधानमंत्री का कोई जिक्र ही नहीं है.
इस सवाल पर कि क्या प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के दायरे से बाहर रखना संयुक्त राष्ट्र की भ्रष्टाचार निरोधक संधि के खिलाफ नहीं होगा, सिब्बल ने कहा, ‘ऐसी कोई अंतरराष्ट्रीय संधि नहीं है जो खासकर प्रधानमंत्री को लोकपाल जैसे किसी निकाय की जांच के दायरे में लाने को अनिवार्य बनाती हो.’
सिब्बल ने कहा कि प्रधानमंत्री देश के संसदीय लोकतंत्र की धुरी होते हैं. न्यायमूर्ति जे. एस वर्मा और न्यायमूर्ति वेंकटचलैया जैसे उच्चतम न्यायालय के पूर्व प्रधान न्यायाधीशों ने भी कहा है कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में नहीं रखा जाना चाहिये.
उन्होंने कहा कि गठबंधन की राजनीति में प्रधानमंत्री पर कई दल प्रतिदिन के आधार पर आरोप लगाते हैं. दलों की ओर से प्रधानमंत्री के खिलाफ आधारहीन दस्तावेज भी दिये जाते हैं. हम रोज ही प्रधानमंत्री के खिलाफ लोकपाल की जांच नहीं होने दे सकते. हम एक ऐसे देश के पड़ोस में रहते हैं जो संवदेनशील है. हमारे लिये देश की सुरक्षा महत्वपूर्ण है.
जनलोकपाल विधेयक के छह मूल मुद्दों पर सरकार की असहमति के बारे में सिब्बल ने कहा, ‘हम ऐसी समानांतर जांच एजेंसी नहीं बनने दे सकते जो संविधान, कार्यपालिका और न्यायपालिका से इतर हो और किसी के प्रति भी जवाबदेह नहीं हो. अगर जनलोकपाल विधेयक को स्वीकार कर लिया गया तो लोकपाल की कार्रवाई पर कोई सवाल ही नहीं उठा सकेगा.’
संसद के अंदर सांसदों के आचरण को लोकपाल के दायरे में लाने की मांग पर मसौदा समिति के संयोजक और विधि मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 105 (2) हमें इसकी इजाजत नहीं देता. मोइली ने हज़ारे पक्ष को आड़े हाथ लेते हुए स्पष्ट किया कि संयुक्त समिति का गठन एक विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिये हुआ था, कोई संवैधानिक संशोधन करने के लिये नहीं.
सिब्बल ने भी कहा कि संविधान के इस अनुच्छेद के तहत संसद के भीतर अपनी बात रखने और मतदान करने के सांसदों के अधिकार को संरक्षण प्राप्त है. मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा, ‘हम ऐसा लोकपाल नहीं चाहते जो संविधान और विधायिका, न्यायपालिका तथा कार्यपालिका के बीच के नाजुक संतुलन को नुकसान पहुंचाता हो.’
उन्होंने कहा कि हम ऐसा लोकपाल नहीं चाहते, जिसके जांच अधिकारी के अधीन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश आ जायें, जिसका बजट वह खुद तय करे या बजट सकल घरेलू उत्पाद का एक फीसदी हो और जो कार्यपालिका के प्रशासनिक फैसलों पर रोक लगाने का अधिकार रखता हो. सिब्बल ने कहा कि हम ऐसा स्वतंत्र लोकपाल चाहते हैं, जिस पर परस्पर नियंत्रण की व्यवस्था हो.