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हिमालयी पौधा 'सीबकथार्न' दूर करेगा तनाव की परेशानी

वैज्ञानिकों का कहना है कि हिमालय के ठंडे प्रदेशों में उगने वाला पौधा ‘सीबकथार्न’ तनाव और उससे संबंधित बीमारियों, जैसे दिल के रोगों में कमी लाने में रामबाण साबित हो सकता है.

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वैज्ञानिकों का कहना है कि हिमालय के ठंडे प्रदेशों में उगने वाला पौधा ‘सीबकथार्न’ तनाव और उससे संबंधित बीमारियों, जैसे दिल के रोगों में कमी लाने में रामबाण साबित हो सकता है.

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वैज्ञानिकों का दावा है कि पश्चिमी हिमालयी प्रदेशों में उगने वाले पौधे ‘सीबकथार्न’ की मदद से ऊंची जगहों पर तैनात सिपाहियों में तनाव से होने वाली परेशानियों को कम करके उनके प्रदर्शन तथा काम करने की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है.

भारतीय तकनीकी संस्थान, मंडी के आर एस स्वाहनेय ने अपने शोध में कहा है, ‘‘सीबकथार्न में ऑक्सीजन की कमी से होने वाले तनाव से लड़ने की अद्भुत क्षमता है.’’ उनका कहना है कि ऑक्सीजन की कमी से होने वाले तनाव से कुछ जड़ अणु शरीर के मूल अणुओं जैसे प्रोटीन, वसा और डीएनए को नुकसान पहुंचाते हैं. इससे बीमारियां बढ़ जाती है.

शोध के मुताबिक, ‘‘रोजमर्रा के जीवन से तनाव को बिलकुल बाहर कर देना संभव नहीं है, मगर सीबकथार्न की मदद से ऑक्सीजन की कमी से होने वाले तनाव के नुकसान को कम किया जा सकता है.’’ पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय के जीव व पर्यावरण विज्ञान विभाग के वीरेन्द्र सिंह का कहना है, ‘‘इस पौधे के सभी भागों का स्वास्थ्य उद्योग में इस्तेमाल हो रहा है. इसकी पत्तियां और फल विटामिन और एंटी ऑक्सिडेंट का अच्छा स्त्रोत हैं. इसका इस्तेमाल स्वास्थ्य, खाद्य, प्रसाधन सामग्री और दवाएं बनाने में हो सकता है.’’

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{mospagebreak}शोध के अनुसार पंचभूतों पर आधारित तिब्बतीय या अमची चिकित्सा पद्धति के ज्ञाता सोवा रिगपा लिखित 2500 साल पुरानी मौलिक किताब ‘रग्यूद बजी’ में सीबकथार्न के दवा के तौर पर इस्तेमाल का सबसे पुराना लिखित इतिहास उपलब्ध है. स्वाहनेय के अनुसार, ‘‘सोवा रिग्पा ने अपनी पुस्तक में सीबकथार्न पर आधारित 200 सूत्रों का वर्णन किया है, जिनसे लगभग सभी बीमारियों का इलाज संभव है.’’

पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने पर्यावरणीय बदलाव को रोकने की नीति के तहत सीबकथार्न की खेती को बढ़ावा देने की बात कही है. इस पौधे का इस्तेमाल पूरी दुनिया में भूमि और पानी के संरक्षण के लिए हो रहा है.

सरकार ने 2020 तक दस लाख हेक्टेयर भूमि पर सीबकथार्न की खेती को बढ़ावा देने की पहल की है. फिलहाल चीन में 11 लाख हेक्टेयर भूमि पर सीबकथार्न की खेती हो रही है, जबकि भारत में इसकी खेती सिर्फ 11,500 हेक्टेयर पर हो रही है. सीबकथार्न के छोटे लंबे आग के रंग के फल बहुत पौष्टिक होते हैं.

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