सिविल सोसायटी के कार्यकर्ता की मांगों और उनको मानने की सरकार की तैयारी में जमीन-आसमान का फर्क हैः
-सामाजिक कार्यकर्ता चाहते हैं कि प्रधानमंत्री को लोकपाल विधेयक के दायरे में लाया जाए, सरकार का कहना है कि ऐसा करने से प्रधानमंत्री के लिए कामकाज करना मुश्किल हो जाएगा.
-सामाजिक कार्यकर्ता चाहते हैं कि सांसदों की खरीद-फरोख्त की जांच का अधिकार लोकपाल को हो, लेकिन सरकार कहती है कि ऐसा करने का अधिकार लोकसभा अध्यक्ष के पास पहले ही है.
-सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं कि लोकपाल की सात सदस्यीय पीठ किसी भ्रष्ट न्यायाधीश की प्रथम दृष्टया रिपोर्ट दर्ज करने की इजाजत दे सकती है. सरकार कहती है कि उसका न्यायिक मानदंड और जवाबदेही विधेयक इस मुद्दे से निपट लेगा. कार्यकर्ता कहते हैं कि यह विधेयक गलत आचरण से निपटता है, भ्रष्टाचार से नहीं.
-सामाजिक कार्यकर्ता चाहते हैं कि सीबीआइ स्वतंत्र ढंग से लोकपाल के अधीन काम करे. सरकार का मानना है कि लोकपाल के लिए एक अलग जांच एजेंसी गठित की जानी चाहिए.
-सामाजिक कार्यकर्ता चाहते हैं कि 11 सदस्यीय लोकपाल के खर्चों का भुगतान भारत के समग्र कोष से किया जाए. सरकार चाहती है कि भुगतान की मात्रा तय करना विधि और वित्त मंत्रालयों का अधिकार हो.