आम तौर पर माना जाता है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी विज्ञान प्रौद्योगीकरण और मशीनीकरण के विरोधी थे. लेकिन नये अध्ययनों में यह बात सामने आ रही है कि इस युगदृष्टा ने अपने ‘खादी’ और ‘चरखा’ आंदोलनों के जरिये जिन सपनों को पूरा करने की कोशिश की, आज इंटरनेट उन्हें साकार कर रहा है.
भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के सलाहकार और चिंतक सुधींद्र कुलकर्णी की जल्द ही बाजार में आने वाली पुस्तक ‘म्यूजिक ऑफ द स्पिनिंग व्हील’ में इस तथ्य को बखूबी स्थापित किया गया है. पुस्तक में तमाम बड़े वैज्ञानिकों, प्रोद्यौगिकीविदों, चिंतकों और समाजविज्ञानियों के विचारों के हवाले से यह स्थापित करने की कोशिश की गयी है कि इंटरनेट और वैश्वीकरण के इस दौर में गांधी के विचार और भी प्रासंगिक हो गये हैं.
पुस्तक का लोकार्पण चार सिंतबर को पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे अब्दुल कलाम द्वारा राजधानी स्थित गांधी स्मृति संस्थान में किये जाने का कार्यक्रम है. इस अवसर पर भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी एवं शशि थरूर, सीएसआईआर के पूर्व महानिदेशक डॉ-आर.ए. माशेलकर तथा इंडियन एक्सप्रेस के प्रधान संपादक शेखर गुप्ता के मौजूद रहने की भी संभावना है.
पुस्तक में महात्मा गांधी के जीवन और मिशन को आज के इंटरनेट युग की तमाम संभावनाओं एवं खतरों के चश्मे से समग्र ढंग से देखने का प्रयास किया गया है. कुलकर्णी के अनुसार गांधी साहित्य में संभवत: ऐसा पहली बार हुआ है कि इस पुस्तक के जरिये इंटरनेट की आश्चर्यजनक संभावनाओं और चरखा आंदोलन के नैतिक संदेशों के बीच आपसी संबंध तलाशने का प्रयास किया गया है.
पुस्तक में जीवन के हर पक्ष के प्रति महात्मा गांधी के दृष्टिकोण को उजागर करने का प्रयास किया गया है. इन क्षेत्रों में अर्थशास्त्र से लेकर शिक्षा, प्राकृतिक उपचार से लेकर पर्यावरण संरक्षण, सैक्स से लेकर महिला सशक्तिकरण तथा राजनीति से लेकर शांति स्थापना तक विभिन्न क्षेत्रों को शामिल किया गया है. आम तौर पर माना जाता है कि महात्मा गांधी आधुनिक विज्ञान के विरुद्ध थे लेकिन कुलकर्णी की इस पुस्तक के अनुसार गांधी ‘वैज्ञानिक चेतना’ वाले व्यक्ति थे. उन्होंने आदर्श समाज के बारे में अपने दृष्टिकोण तथा अपने व्यावहारिक प्रयोगों में विज्ञान को महत्वपूर्ण स्थान दिया.
कुलकर्णी के अनुसार, 'गांधी के चरखा आंदोलन की प्रमुख सीख यही थी कि इस प्रौद्योगिकी से आम आदमी का सशक्तिकरण हो. साथ ही यह समाज पर बाध्यकारी हो जिससे किसी बड़े लक्ष्य को हासिल किया जा सके. यह दोनों बातें इंटरनेट पर खरी उतरती हैं.' महात्मा गांधी अपने जीवन काल में चरखे की उपयोगिता को लेकर तमाम सवालों से जूझते रहे. वर्धा में अखिल भारतीय चरखा संघ की सितंबर 1944 में हुयी बैठक में उन्होंने कहा था, 'कांग्रेस ने चरखे को स्वीकार किया, लेकिन क्या उसने इसे अपनी मर्जी से स्वीकार किया? नहीं, वह मेरी खातिर इसे बर्दाश्त कर रही है.'