साढ़े नौ बरस पहले एक पूर्व सांसद तमाम अफसरों और नेताओं से गुहार लगाते रह गए. लेकिन किसी ने एक ना सुनी और उन दंगाइयों ने एहसान जाफरी की हत्या कर दी और इसके बाद शुरू हुआ इंसाफ की लड़ाई का एक लंबा किस्सा, जो आज भी खत्म नहीं हुआ है.
28 फरवरी 2002: गुजरात दंगों के दौरान पूर्व सांसद एहसान जाफरी की हत्या कर दी गई.
21 नवंबर 2003: मानवाधिकार आयोग ने गुजरात पुलिस पर दंगे से जुड़ी जांच में लापरवाही बरतने के आरोप लगाए.
8 जून 2006: जाकिया जाफरी ने अपने पति की हत्या के खिलाफ तत्कालीन डीजीपी को खत लिखा. जाकिया ने हाई कोर्ट में भी ये अर्जी दी कि नरेंद्र मोदी समेत 63 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किए जाएं.
नवंबर 2007: हाई कोर्ट ने जाकिया की अर्जी खारिज कर दी. जाकिया ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.
मार्च 2008: सुप्रीम कोर्ट ने गुलबर्ग केस समेत 8 केस की जांच के लिए विशेष टीम बनाई.
27 अप्रैल 2009: सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी को उन 63 लोगों की जांच के आदेश दिए, जिनपर जाकिया ने एफआईआर दर्ज करने की अपील की थी.
4 नवंबर 2009: गुलबर्ग सोसायटी केस में पहला चश्मदीद कोर्ट के सामने पेश हुआ. उसने बताया कि एहसान जाफरी ने मोदी समेत कई लोगों को मदद के लिए फोन किए थे.
27 मार्च 2010: एसआईटी ने नरेंद्र मोदी से घंटों पूछताछ की.
25 अप्रैल 2011: एसआईटी ने अपनी अंतिम रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में सौंप दी.
28 जुलाई 2011: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एमाइकस क्यूरी की रिपोर्ट सुनने के बाद ही फैसला सुनाया जाएगा.