उच्चतम न्यायालय ने आज महाराष्ट्र सरकार से इस बारे में विचार करने को कहा कि क्या वह बंबई पुलिस कानून के कुछ प्रावधानों में ‘बदलाव’ कर बार, होटलों और रेस्त्रांओं में सिर्फ ‘अश्लील और आपत्तिजनक’ नृत्य को प्रतिबंधित कर सकती है.
न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर, न्यायमूर्ति एस एस निज्जर और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की तीन सदस्यीय पीठ ने राज्य सरकार को इस विचार पर गौर करने के लिये दो सप्ताह का समय दे दिया.
शीर्ष अदालत ने कहा कि नृत्य को अपने आप में अश्लील नहीं माना जा सकता क्योंकि उसे प्रतिबंधित करने से हजारों नर्तक बेरोजगार हो सकते हैं.
पीठ ने कहा, ‘बच्चे नृत्य करते हैं. कुछ स्थानों पर युगल भी नृत्य करते हैं. डांस फ्लोर बने हुए हैं. सिर्फ ऐसा होने से वह अश्लील या आपत्तिजनक नहीं हो जाता.’ न्यायालय ने राज्य सरकार की ओर से हाजिर पूर्व सॉलिसीटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम से इस बात पर गौर करने को कहा कि क्या बंबई पुलिस कानून की धारा 33 और 34 में इस तरह बदलाव किया जा सकता है जिससे सिर्फ नृत्य के अश्लील और आपत्तिजनक प्रारूप को प्रतिबंधित किया जाये.
बंबई उच्च न्यायालय ने बार और रेस्त्राओं में होने वाले डांस शो पर प्रतिबंध लगाते मुंबई पुलिस के फैसले को वर्ष 2006 में निरस्त कर दिया था. पुलिस ने डांस शो पर इस आधार पर प्रतिबंध लगाया था कि बार और रेस्त्रांओं में नृत्य अश्लील और उकसाने वाला होता है तथा कई लड़कियां जिस्मफरोशी में संलिप्त हो जाती हैं.