दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम सैयद अहमद बुखारी ने अन्ना हजारे से सवाल किया है कि उन्होंने और उनके अभियान का प्रबंधन कर रहे प्रबंधकों ने अपने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में मुस्लिमों को शामिल करने के लिए और कदम क्यों नहीं उठाये.
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भारत को भ्रष्टाचार से ज्यादा बड़ी चुनौती सांप्रदायिकता की है.
ऐसे समय में जब देश भर में अन्ना हजारे की लहर चल रही है, बुखारी ने कहा कि गांधीवादी नेता को महात्मा से और सीख लेनी चाहिए कि किस तरह किसी जन आंदोलन में समाज के सभी वर्गों को शामिल किया जाए.
फोटो: अन्ना के लिए सड़कों पर उतरे समर्थक
बुखारी ने कहा कि जहां उनका यह मानना है कि भ्रष्टाचार को देश से उखाड़ फेंकना चाहिए, लेकिन साथ ही मुस्लिमों की समस्याओं पर गौर कर सांप्रदायिकता से निपटना भी उतना ही महत्वपूर्ण है.
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हजारे द्वारा नरेन्द्र मोदी की कुछ दिन पूर्व तारीफ किये जाने की घटना को याद करते हुए बुखारी ने कहा, ‘कम से कम उन्होंने अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ सदस्यों या नेताओं से मुलाकात की होती और हमारे जख्मों पर मरहम लगाने की पेशकश की होती. वे अपने अभियान के तहत सांप्रदायिकता पर भी बोल सकते थे ताकि यह और समावेशकारी बन सके.’
अन्ना के आंदोलन पर विशेष कवरेज
इमाम ने कहा कि ‘वंदे मातरम’ और ‘भारत माता की जय’ जैसे नारे अन्ना के अभियान में छाये हुए हैं और इनसे मुस्लिम कतई सहज महसूस नहीं करते.
उन्होंने अभियान के नेताओं द्वारा समुदाय को शामिल करने के प्रयास नहीं करने की शिकायत करते हुए कहा, ‘हिन्दुस्तान जिन्दाबाद या जय हिन्द जैसे नारे क्यों नहीं लगाये जा रहे.’
उन्होंने कहा, ‘जब गांधी ने कोई आंदोलन छेड़ा, उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उन्होंने इसे हर भारतीय निर्वाचन क्षेत्र की पीड़ा से जोड़ दिया, तभी उनके अभियानों ने राष्ट्रीय आंदोलन का स्वरूप धारण किया.’