पी जे थामस की केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) के रूप में नियुक्ति पर उपजे विवाद के बीच केन्द्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने आज कहा कि उनकी नियुक्ति बहुमत के फैसले से हुई थी. फैसला आम सहमति से होना चाहिए था या नहीं, इस सवाल को चिदंबरम उच्चतम न्यायालय पर टाल गये.
चिदंबरम ने अपने मंत्रालय की जनवरी की प्रगति रपट पेश करते हुए संवाददाताओं के सवालों के जवाब में कहा, ‘फैसला बहुमत से किया गया था. ‘यह पूछे जाने पर कि फैसला आम सहमति से होना चाहिए था या नहीं, चिदंबरम ने कहा, ‘आप अपना निष्कर्ष खुद निकालने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन फैसला आम सहमति से होना चाहिए या नहीं, यह उच्चतम न्यायालय तय करेगा.
‘गौरतलब है कि सीवीसी नियुक्ति के पैनल की सदस्य लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने थामस के नाम पर कथित आपत्ति प्रकट की थी और लिखित में अपना विरोध भी जताया था. सुषमा ने इस मसले पर शीर्ष अदालत में हलफनाम दायर करने की बात कही है. पैनल के दो अन्य सदस्य प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और खुद चिदंबरम थे.
चिदंबरम ने दावा किया कि समिति के समक्ष तीन उम्मीदवारों के नामों वाले केवल एक ही पैनल का नाम आया था, जिसमें से थामस के नाम पर मुहर लगी. {mospagebreak}
थामस से जुडे सवालों के जवाब में चिदंबरम ने कहा, ‘मैं इन सवालों का जवाब देने का एकदम अनिच्छुक हूं. ऐसा नहीं है कि सवाल गलत हैं या फिर मुझे जवाब नहीं मालूम. लेकिन मुझे यह बात भयावह लग रही है. मैं इससे कडा शब्द नहीं खोज पा रहा हूं कि अदालत में सक्रियता से विचार किये जा रहे मामले पर खुले तौर पर राजनीतिक दल और मीडिया चर्चा कर रहे हैं. ‘उन्होंने कहा, ‘मुझे इस बात से भी खासी निराशा है कि अदालत इस मामले पर खुलकर चर्चा करने वालों की खिंचाई नहीं कर रही है.
‘चिदंबरम ने कहा कि चयन समिति की बैठक में चर्चा हुई और फिर ‘मिनट्स’ लिखे गये, जिस पर सुषमा ने लिखा है कि ‘वह असहमत हैं. ‘इसका मतलब हुआ कि वह अन्य दो सदस्यों की राय से असहमत हैं. ‘स्वाभाविक रूप से कोई महत्वपूर्ण बात हुई होगी, जिस पर सुषमा असहमत रही होंगी. किसी विषय पर चर्चा हुई होगी, नाम पर चर्चा हुई होगी और इसमें काफी समय लगा होगा, तभी असहमति की बात आयी. ‘उन्होंने कहा, ‘कृपया याद रखिये, बिना चर्चा के असहमति का सवाल नहीं उठता.
‘समिति ने पी जे थामस और पामोलीन मामले की चर्चा की. सुषमा सहित तीनों सदस्यों ने अपनी राय व्यक्त की. हालांकि थामस के खिलाफ मामला दर्ज था लेकिन 1999 से लेकर 2004 तक न तो राजग सरकार और न ही उसके बाद की संप्रग सरकार ने मुकदमा चलाने की अनुमति दी.