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पति के दीर्घायु के लिए पत्नियां करती हैं करवा चौथ का व्रत

करवा चौथ स्त्रियों का सर्वाधिक लोकप्रिय व्रत है. सौभाग्यवती स्त्रियां अटल सुहाग, पति की दीर्घ आयु, स्वास्थ्य एवं मंगलकामना के लिए करवा चौथ के दिन व्रत करती हैं.

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करवा चौथ का व्रत
करवा चौथ का व्रत

करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में किया जाता है. करवा चौथ स्त्रियों का सर्वाधिक लोकप्रिय व्रत है. सौभाग्यवती स्त्रियां अटल सुहाग, पति की दीर्घ आयु, स्वास्थ्य एवं मंगलकामना के लिए करवा चौथ के दिन व्रत करती हैं. वामन पुराण मे करवा चौथ व्रत का वर्णन आता है.

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करवा चौथ व्रत को रखने वाली स्त्रियों को प्रात:काल स्नान आदि के बाद आचमन करके पति, पुत्र-पौत्र तथा सुख-सौभाग्य की इच्छा का संकल्प लेकर इस व्रत को करना चाहिए. करवा चौथ के व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणेश तथा चंद्रमा का पूजन करने का विधान है.

स्त्रियां चंद्रोदय के बाद चंद्रमा के दर्शन कर अर्ध्य देकर ही जल-भोजन ग्रहण करती हैं. पूजा के बाद तांबे या मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री जैसे- कंघी, शीशा, सिंदूर, चूड़ियां, रिबन व रुपया रखकर दान करना चाहिए तथा सास के पांव छूकर फल, मेवा व सुहाग की सारी सामग्री उन्हें देनी चाहिए.

हिंदूओं का महत्वपूर्ण त्योहारः
करवा चौथ हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण त्योहार है. यह भारत के पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, और राजस्थान का पर्व है. यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है. यह पर्व सुहागिन स्त्रियां मनाती हैं. यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब चार बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है.

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कैसे मनाया जाता है करवा चौथ
करवा चौथ के दिन शादीशुदा महिलाएं पूरे दिन बिना अन्न-जल ग्रहण किए उपवास रखती हैं. सुबह सूरज निकलने से पहले पूजा और श्रृंगार किए जाते हैं और फिर सरगी खाई जाती है. सरगी खाने की वो सामग्री है, जो सास की ओर से मिलती है. शाम की पूजा के लिए महिलाएं खासतौर पर तैयार होती हैं. सजने-संवरने को लेकर उनमें किसी नई दुलहन का सा उत्साह नजर आता है. इस मौके के लिए महिलाएं स्पेशल मेहंदी भी लगवाती हैं, तो बिंदी और सिंदूर के लिए भी वे खास शॉपिंग करती हैं.

ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी नारियां करवाचौथ का व्रत बडी़ श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं. शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए. पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है. करवाचौथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अ‌र्घ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है. वर्तमान समय में करवाचौथ व्रतोत्सव ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती हैं जिसमें अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं.

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शास्त्रों-पुराणों मे करवा चौथ का जिक्र
करवा चौथ का व्रत सालों से चला आ रहा है. जैसा कि शास्त्रों-पुराणों में उल्लेख मिलता है कि यह व्रत अपने जीवन साथी के स्वस्थ और दीर्घायु होने कि कामना से किया जाता था. पर्व का स्वरुप थोड़े फेरबदल के साथ अब भी वही है. लेकिन यह पति-पत्नी तक ही सीमित नहीं हैं. दोनों चूंकि गृहस्थी रुपी गाड़ी के दो पहिये है. और निष्ठा की धुरी से जुड़े हैं. इसलिए उनके संबंधों पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है. असल में तो यह पूरे परिवार के हित और कल्याण के लिए है. करवाचौथ व्रत विधान
1. कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा-चौथ व्रत करने का विधान है. इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है. स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है. सुहागिन स्त्री अपने पति की आयु, स्वास्थ्य और सौभाग्य की कामना के लिए यह व्रत रखती हैं.

2. मान्यता के अनुसार यह व्रत बारह से सोलह साल तक लगातार हर साल किया जाता सकता है. अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन किया जाता है. हां यह भी जान लें कि जो सुहागिन स्त्रियां इस व्रत को आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं. इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है.

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3. कार्तिक कृष्ण पक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी अर्थात उस चतुर्थी की रात्रि को जिसमें चंद्रमा दिखाई देने वाला है, उस दिन प्रातः स्नान करके अपने सुहाग की आयु, आरोग्य, सौभाग्य का संकल्प लेकर दिनभर निराहार रहें.

4. करवा चौथ के दिन भगवान शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा का पूजन करें. पूजन करने के लिए बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी बनाकर इन सभी देवों को स्थापित करें.

5. शुद्ध घी में आटे को सेंककर उसमें शक्कर अथवा खांड मिलाकर लड्डू नैवेद्य बनाएं.

6. वैसे तो बाजार में हर चीज मौजूद है लेकिन हो सके तो काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर, उस मिट्टी से तैयार किए गए मिट्टी के करवे अथवा तांबे के बने हुए करवे इस्तेमाल करें तो बहुत अच्छा रहेगा.

करवा चौथ पूजन विधि
1. बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें. इसके बाद इन देवताओं की पूजा करें.

2. करवों में लड्डू का नैवेद्य रखकर नैवेद्य अर्पित करें. एक लोटा, एक वस्त्र और एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित कर पूजन समापन करें. करवा चौथ व्रत की कथा पढ़ें अथवा सुनें.

3. सायंकाल चंद्रमा के उदित हो जाने पर चंद्रमा का पूजन कर अर्घ्य प्रदान करें. इसके पश्चात ब्राह्मण, सुहागिन स्त्रियों और पति के माता-पिता को भोजन कराएं. भोजन के पश्चात ब्राह्मणों को दक्षिणा दें.

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4. सासूजी को एक लोटा, वस्त्र और विशेष करवा भेंट कर आशीर्वाद लें. यदि वे जीवित न हों तो उनके तुल्य किसी अन्य स्त्री को भेंट करें. इसके पश्चात स्वयं और परिवार के अन्य सदस्य भोजन करें.

करवा चौथ में प्रयुक्त होने वाली सामग्री
1. व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें.

2. पूरे दिन निर्जल रहें.

3. आठ पूरियों की अठावरी बनाएं. हलुवा बनाएं.

4. पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं. गौरी को चुनरी ओढ़ाएं. बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें.

5. जल से भरा हुआ लोटा रखें.

6. करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें. उसके ऊपर दक्षिणा रखें.

7. रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं.

8. गौरी-गणेश की परंपरानुसार पूजा करें. पति की दीर्घायु की कामना करें.

9. करवा पर तेरह बिंदी रखें और गेहूं या चावल के तेरह दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें.

10. कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासू जी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें.

11. रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्ध्य दें. इसके बाद पति से आशीर्वाद लें. उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें.

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12. सास अपनी बहू को सरगी भेजती है. सरगी में मिठाई, फल, सेवइयां आदि होती है. इसका सेवन महिलाएं करवाचौथ के दिन सूर्य निकलने से पहले करती हैं.

13. अन्य व्रतों के समान करवा चौथ का भी उजमन किया जाता है. करवा चौथ के उजमन में एक थाल में तेरह जगह चार-चार पूड़ियां रखकर उनके ऊपर सूजी का हलुवा रखा जाता है. इसके ऊपर साड़ी-ब्लाउज और रुपये रखे जाते हैं. हाथ में रोली, चावल लेकर थाल में चारों ओर हाथ घुमाने के बाद यह बायना सास को दिया जाता है. तेरह सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराने के बाद उनके माथे पर बिंदी लगाकर और सुहाग की वस्तुएं देकर विदा कर दिया जाता है.

आधुनिक युग में पति भी रखने लगे व्रत
करवा चौथ के दिन अब पत्नी ही नहीं पति भी व्रत करते हैं. यह परंपरा का विस्तार है. करवा चौथ को अब सफल और खुशहाल दाम्पत्य की कामना के लिए किया जा रहा है. करवाचौथ अब केवल लोक-परंपरा नहीं रह गई है. पौराणिकता के साथ-साथ इसमें आधुनिकता का प्रवेश हो चुका है और अब यह त्योहार भावनाओं पर केंद्रित हो गया है. हमारे समाज की यही खासियत है कि हम परंपराओं में नवीनता का समावेश लगातार करते रहते हैं. कभी करवाचौथ पत्नी के, पति के प्रति समर्पण का प्रतीक हुआ करता था, लेकिन आज यह पति-पत्नी के बीच के सामंजस्य और रिश्ते की ऊष्मा से दमक और महक रहा है. आधुनिक होते दौर में हमने अपनी परंपरा तो नहीं छोड़ी है, अब इसमें ज्यादा संवेदनशीलता, समर्पण और प्रेम की अभिव्यक्ति दिखाई देती है. दोनों के बीच अहसास का घेरा मजबूत होता है, जो रिश्तों को सुरक्षित करता है.

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करवा चौथ कथा
पहली कथाः पूरे दिन व्रत रखने के बाद शाम के समय महिलाएं पूजा के लिए तैयार होती हैं. आस-पड़ोस की महिलाएं एक जगह इकट्ठी होती हैं और साथ में करवाचौथ की कथा सुनती हैं. इसके लिए सबसे ज्यादा प्रचलित है वीरावती की कथा. दरअसल, रानी वीरावती सात भाइयों की अकेली बहन थी. शादी के बाद जब वह भाइयों के पास आईं, तो उसी दौरान एक दिन उन्होंने एक व्रत रखा. हालांकि उन्हें इस कठिन व्रत को निभाने में कुछ मुश्किल हो रही थी, लेकिन उन्हें चंद्रमा निकलने के बाद ही कुछ खाना था. ऐसे में उनके भाइयों से उनका कष्ट देखा नहीं गया और उन्होंने धोखे से उनका व्रत तुड़वा दिया. जैसे ही वीरावती ने खाना खत्म किया, उन्हें अपने पति के बीमार होने का समाचार मिला और महल पहुंचने तक उनके पति की मृत्यु हो चुकी थी. इसके बाद देवी पार्वती की सलाह पर उन्होंने करवा चौथ को विधिवत पूरा किया और अपने पति की जिंदगी वापस लेकर आईं.

दूसरी कथाः करवा चौथ के व्रत का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है. पांडवों पर लगातार आ रही मुसीबतों को दूर करने के लिए द्रौपदी ने भगवान कृष्ण से मदद मांगी, तब श्री कृष्ण ने उन्हें करवाचौथ के व्रत के बारे में बताया, जिसे देवी पार्वती ने भगवान शिव की बताई विधियों के अनुसार रखा था. कहा जाता है कि इस दौपद्री के इस व्रत को रखने के बाद न सिर्फ पांडवों की तकलीफें दूर हो गईं, बल्कि उनकी शक्ति भी कई गुना बढ़ गई.

तीसरी कथाः करवाचौथ के व्रत को सत्यवान और सावित्री की कथा से भी जोड़ा जाता है. इस कथा के अनुसार जब यमराज सत्यवान की आत्मा को लेने आए, तो सावित्री ने खाना-पीना सब त्याग दिया. उसकी जिद के आगे यमराज को झुकना ही पड़ा और उन्होंने सत्यवान के प्राण लौटा दिए.

चौथी कथाः एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गांव में रहती थी. एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया. स्नान करते समय वहां एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया. वह मनुष्य करवा-करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा.
उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को कच्चे धागे से बांध दिया. मगर को बांधकर वो यमराज के यहां पहुंची और यमराज से कहने लगी, ‘हे भगवन! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है. उस मगर को नरक में ले जाओ.’ यमराज बोले, ‘अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता.’ इस पर करवा बोली, ‘अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूंगी.’
सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी. हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना.

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