एक ओर लॉस एंजिलिस में फिल्म 'द किंग्स स्पीच' ने 4 ऑस्कर अवार्ड पर कब्जा जमाया. दूसरी ओर इस मौके के कुछ ही देर बाद संसद में वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी को वर्ष 2011-12 को बजट पेश करना था.
वित्तमंत्री ने पूरे 110 मिनट तक बजट भाषण किया, पर देश में आर्थिक सुधारों को नाटकीय आयाम देने के लिए यकीनन उन्हें कोई पुरस्कार नहीं मिल सकेगा.
वर्ष 2011-12 के लिए राजकोषीय घाटा 4.6 फीसदी अनुमानित है, जबकि साल 2010-11 में 5.1 फीसदी था. यूपीए-2 के शासन के आखिरी साल में यह 3.5 फीसदी तक पहुंच जाएगा.
इस बजट से हमारी उम्मीदें बहुत ज्यादा थीं, खासकर बढ़ते भ्रष्टाचार, सुशासन और 'युवा भारत की बढ़ती आशाओं' के मसले पर. दावा किया गया कि यह बजट 'अत्यधिक पारदर्शिता और नतीजे देने में सक्षम आर्थिक-प्रबंधन प्रणाली की दिशा में सकारात्मक कदम है'. हकीकत में जनता की आशाओं को फिलहाल तृप्त नहीं किया जा सका है.
बजट के प्रावधानों से विदेशी निवेशक भारत म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकेंगे. बजट के जरिए केरल, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु़ जैसे राज्यों को लुभाने का भी प्रयास किया गया मालूम पड़ता है, जहां इस साल चुनाव होना है. कुल मिलाकर आप प्रणब मुखर्जी के 'बजट नंबर-3' के बारे में अभी से कुछ नहीं कर सकते.
(चैतन्य कालबाग बिजनेस टुडे के एडीटर हैं)