प्रिय केजरीवाल भाई,
मैं आपको 'मुख्यमंत्री महोदय' संबोधित करना चाहता था, लेकिन नाम से संबोधन ज्यादा ठीक लगा. इसके दो कारण हैं. पहला, नाम से संबोधन अधिक आत्मीय लगता है. वही आत्मीयता जो आपको आम आदमी से जोड़ती है. दूसरी, कभी कभी ऐसा लगता जैसे अब भी आप वही आंदोलनकारी आरटीआई कार्यकर्ता हैं, न कि दिल्ली के मुख्यमंत्री. औपचारिकता के नाते तकनीकी तौर पर आपने शपथ भले ही ले ली हो - लेकिन व्यावहारिक तौर पर कई बार ऐसा महसूस नहीं होता. वैसे भी आपने अपने पास कोई विभाग तो रखा नहीं है. असली 'मुख्यमंत्री' तो मनीष सिसोदिया ही लगते हैं. बस उनके पद से पहले एक छोटा सा टैग - 'उप' जुड़ा हुआ है. आपका भी इरादा इस टैग को हटाने का रहा होगा और शायद राजनीति के 'मांझी एक्सपेरिमेंट' से सबक लेते हुए आपने फैसला बदल लिया. ये जरूरी नहीं, बस मन में यूं ही एक बात आई और मैं मन की बात करने लगा. खैर.
केजरीवाल भाई,
मेरे जैसा आम आदमी, आप और आपके पार्टी कार्यकर्ताओं से गहराई तक जुड़ा महसूस करता है, इसके लिए कोई दूसरा सबूत पेश करने की भी जरूरत नहीं है. दौर चाहे रामलीला मैदान आंदोलन का हो या फिर दिल्ली के दोनों चुनावों का आम आदमी आप लोगों से वैसे ही जुड़ा हुआ महसूस किया जैसे फिल्मी पर्दे पर अक्सर कुछ किरदारों से कनेक्ट हो जाता है.
जब 'आप' कार्यकर्ताओं ने सुबह सुबह धावा बोल कर एक पुलिसवाले को एक जूस और नारियल पानी बेचनेवाले से माफी मांगने को मजबूर कर दिया तो मन बहुत खुश हुआ. मीडिया ने इसे केजरीवाल इफेक्ट बताकर रिपोर्ट किया तो मन गदगद हो उठा.
लेकिन ये खुशी ज्यादा देर कायम न रह सकी. मेरी खुशी उस वक्त फीकी लगने लगी जब एक थाने में कार्यकर्ताओं द्वारा तोड़फोड़ और हंगामे की खबर मिली. इसमें आप कार्यकर्ताओं के साथ साथ कुछ पुलिसकर्मियों को भी चोट पहुंची और दो विधायकों के खिलाफ केस दर्ज हुआ.
इस घटना से आपके पिछले टर्म की याद ताजा हो गई जब आप के एक मंत्री ने आधी रात को छापेमारी की. छापा मारने के लिए पुलिस पर दबाव डाला. और उसी पर आगे बढ़ते हुए आपको मुख्यमंत्री रहते हुए दिल्ली पुलिस के अफसरों पर कार्रवाई के लिए धरना देना पड़ा.
आपने अन्ना के साथ फिर से धरना दिया. ये भी अच्छा लगा. वैसे भी आप अपना कामकाज निपटा कर अन्ना के धरने में शामिल हुए थे. इसमें कोई गलत बात नहीं है. इससे पहले अन्ना से मुलाकात में आपका पैर छूना और उनका सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देना काफी सुकून देने वाला रहा.
मैं मानता हूं हर इंसान के अपनी अलग फितरत होती है. कुदरत ने हर किसी को किसी खास काम के लिए बनाया है. आपके भी धरती पर आने का मकसद कुछ खास ही होगा. आपकी भगवान में अटूट आस्था के बारे में जानता हूं. आप अपने लिए जेड प्लस सिक्योरिटी ठुकराते हैं तो ठीक लगता है. पर सिर्फ उस शख्स के लिए नहीं है जिसका नाम अरविंद केजरीवाल है, बल्कि उसके लिए है जो ओहदा आपको मिला है. आपको इस बारे में गंभीरता से गौर करना चाहिए.
ऐसी और भी बातें हैं जिन पर आपको गंभीरता से विचार करने की जरूरत लगती है. देखिए, सिस्टम के खिलाफ होना खराब नहीं है, लेकिन हर वक्त सिस्टम के खिलाफ होना भी ठीक नहीं है. खासकर तब, जब खुद ही आप सिस्टम का हिस्सा हों. एक बड़े मकसद के साथ सिस्टम को सुधारने गए हों. अगर आप और आपके लोग गैर-जरूरी बातों में एनर्जी गंवाते रहेंगे तो फिर काम कब होगा?
फ्री वाई-फाई, बिजली-पानी और तमाम चीजें आप वादे के मुताबिक देना चाहते हैं, इसमें किसी को कोई शक न है न होना चाहिए. बात सिर्फ इतनी नहीं है कि आपने संवैधानिक तरीके से पद और गोपनीयता की शपथ ली है, उससे कहीं और आगे जनता ने आपको जिम्मेदारी सौंपी है. ये जिम्मेदारी 67 सीटों के नंबर से भी कहीं आगे बढ़कर है.
मेरे भाई, ये आम आदमी के उम्मीदों की जिम्मेदारी है. आपसे और आपकी टीम से आम आदमी की उम्मीदें जुड़ी हुई हैं. उम्मीद है आप ये बात नहीं भूलेंगे कि आम आदमी उम्मीदों के सहारे ही जिंदा रहता है. आप आम आदमी की इस उम्मीद को मत टूटने दीजिएगा. बस आपसे इतनी सी गुजारिश है.
आपका ही,
एक आम आदमी
नई दिल्ली.