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नीतीश ने 25 साल पहले लालू को लिखा था पत्र, तब भी बताया था 'भ्रष्ट'

बिहार में राजनीतिक हलचल तेज है. महागठबंधन की सरकार के दिन लद चुके हैं और नीतीश एक बार फिर बीजेपी के साथ मिलकर राज्य में सरकार बना चुके हैं.

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फाइल फोटो
फाइल फोटो

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बिहार में राजनीतिक हलचल तेज है. महागठबंधन की सरकार के दिन लद चुके हैं और नीतीश एक बार फिर बीजेपी के साथ मिलकर राज्य में सरकार बना चुके हैं.

बुधवार शाम नीतीश कुमार ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपा और इसके बाद उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए जो बातें कहीं वो इसकी तरफ इशारा कर रही थीं कि राज्य के उप मुख्यमंत्री और लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से उनके लिए काम करना मुश्किल हो गया था. पत्रकारों से बातचीत में नीतीश कुमार ने कहा कि वो यह कदम अपनी अंतरआत्मा की आवाज पर उठा रहे हैं.

आज से चार साल पहले जब नीतीश बीजेपी से अलग हुए थे तब भी उन्होंने कुछ-कुछ ऐसा ही कहा था. तब उन्होंने कहा था कि हमने धोखा नहीं किया. हम तो देश को जोड़ने की राजनीति करते हैं. धोखा तो उन्होंने किया है. ऐसे में साथ काम करना मुश्किल हो गया था.

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अब थोड़ा और पीछे आपको लिए चलते हैं. बात 1990 की है. सरकार बनाने में नीतीश कुमार की अहम भुमिका थी. सरकार बनने के बाद लालू-नीतीश के नाम से जिंदाबाद के नारे साथ-साथ लगते थे, लेकिन 1992 आते-आते स्थितियां बदलने लगीं. दिसंबर 1992 में नीतीश कुमार ने तत्कालिन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को एक पत्र लिखा था. इस चिट्ठी ने बिहार में एक नई राजनीतिक पार्टी, समता पार्टी के बनने का रास्ता साफ कर दिया था.

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत द्वारा लिखी गई किताब, बिहार: चिट्ठियों की राजनीति में छपी है और आज एक बार फिर इसलिए पठनीय हो चली है क्योंकि बुधवार की शाम जिन बातों का उल्लेख करते हुए नीतीश कुमार ने लालू से अलग होने की घोषणा की वो इस चिट्ठी में आज से पच्चीस साल पहले नीतीश कुमार लिख चुके थे. तब नीतीश कुमार ने अपनी चिट्ठी में जिन बातों का जिक्र किया था आज भी वो उन्हीं बातों को दोहराते हुए दिखे. ऐसे में सवाल उठता है कि जब पच्चीस साल पहले ही नीतीश, लालू से इतने दुखी थे, आहत थे. उन्हें भ्रष्टाचार में डूबा बता रहे थे तो 2013 में बीजेपी से अलग होने के बाद लालू के साथ गए ही क्यों थे?

हम इस पत्र के कुछ हिस्से आपको पढ़वाते हैं. नीतीश लिखते हैं.-

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-आपके राज में सामाजिक न्याय महज निजी लोकप्रियता बटोरने का एक नारा मात्र रह गया है. इसके व्यवहारिक पक्ष में घोर अन्याय और पक्षपात की बू आने लगी है.

-मैं एक बार पुन: स्पष्ट कर देना चाहूंगा कि सामाजिक न्याय का सवाल मेरे लिए चुनाव में वोट बटोरने का एक मुद्दा मात्र नहीं है, बल्कि समतामूलक समाज की स्थापना की दिशा में एक ठोस एवं सुचिंतित कदम है, जिससे पीढ़ियां प्रभावित होंगी और सामाजिक परिवर्तन के लिए दूरगामी असर होगा.

-1990 सितंबर में जब श्री लालकृष्ण आडचाणी की यात्रा का बिहार चरण आरंभ हुआ तो सबसे पहले बिहार में घुसते ही उन्हें कर्मनाश के पास गिरफ्तार कर लेने का निर्णय लिया गया था और इसके लिए श्री जगदानंद सिंह को वहां रवाना भी कर दिया गया था. बाद में केंद्रीय नेताओं से विमर्श के उपरांत कार्यक्रम में परिवर्तन हुआ और अंतत: समस्तीपुर का चुनाव उन्हें पकड़ने के लिए किया गया. आडवानी जी की गिरफ्तारी कार्यक्रम की रुपरेखा निर्धारित करने और रात भर जगकर उसे कार्यान्वय हम दो-तीन लोगों तक सीमित था. लेकिन बिहार और बिहार से बाहर जनसभाओं के माध्यम से या अखबारों के माध्यम से चटपटी भाषा में आप अकेले इसका श्रेय लेते रहे.’

-पार्टी के प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं के बारे में सोचने की बात तो दूर उनके सम्मान और स्वाभिमान पर भी आपके स्तर से प्रभाव हो रहा है. दल के वरिष्ठ साथियों तक को आपके अपमानजनक व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है. स्वतंत्र अभिव्यक्ति, साफगोई और वस्तुस्थिति का सटीक चित्रण आपको स्वीकार्य नहीं है. ठकुरसुहाती और चापलूसी आपके स्वभाव का अंग बन गई है. 

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