अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा जिसे अपने व्हाइट हाउस की सील और अपने साइन किए हुए मेडल जिसे दे दे वो अपने को धन्य मानता है. वो उम्मीद करता है कि उसकी किस्मत बदल जाएगी, लेकिन उज्जैन के एक मजदूर के साथ ऐसा कुछ हुआ नहीं.
मध्यप्रदेश के उज्जैन में राजमिस्त्री का काम करने वाले रामदास अहिरवार को राष्ट्रपति ओबामा ने चार साल पहले एक मेडल दिया था और उसके बड़े बेटे को व्हाइट हाउस की सील वाला पेन और छोटे बेटे को अपने साइन की हुई निशानी दी थी. जब ओबामा पिछली बार 7 नवम्बर 2010 को दिल्ली आये थे तो हुमायूं टॉम्ब में उन्होंने रामदास के परिवार को ये सौगात दी थी और पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने उसके बेटे को नौकरी का वादा किया था, लेकिन अब रामदास ओबामा की सौगात उन्हें वापस करना चाहता है, क्योंकि उसकी स्थिति पहले से भी खराब हो गई है.
हालांकि 25 जनवरी को ओबामा के आने से पहले एक बार फिर रामदास और उसके परिवार की पूछ परख बढ़ गई है. इन दिनों उज्जैन के रामघाट में राजमिस्त्री का काम करने वाले रामदास अहिरवार के पास अमेरिकन एम्बेसी और पुरातत्व विभाग के फोन हाल-चाल जानने और परिवार की लोकेशन लेने के लिए आ रहे हैं.
रामदास 23 साल तक पुरातत्व विभाग में राजमिस्त्री का काम दिहाड़ी मजदूरी पर करता था, लेकिन 3 साल पहले उसे दिल्ली से निकाल दिया गया था. रामदास नरसिंह घाट के पीछे मजदूरों की झुग्गी में रहता है. अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की सौगात वो संभाल कर रखे हुए है. रामदास ने बताया की चार साल पहले बराक ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल ओबामा से उसके दोनों बेटे और उसकी मुलाकात हुई थी. उस समय पुरातत्व विभाग के अधिकारी भी उनके साथ थे.
रामदास ने बताया कि ओबामा उसके बच्चों से मिलकर बेहद खुश थे, क्योंकि उसका बड़ा बेटा वहीं पुरातत्व के परिसर में बने स्कूल में मजदूरों के बच्चों को पढ़ाता था और काम भी करता था. रामदास ने बताया की पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने उसके बड़े बेटे को सरकारी नौकरी देने का वादा किया था.
रामदास का छोटा बेटा विशाल और उसकी पत्नी दिल्ली के बदरपुर इलाके में रहते हैं और उसका पैतृक घर झांसी में है. रामदास का कहना है कि चार साल से वो अमेरिका के राष्ट्रपति की निशानी अपने पास रखे हुए है, लेकिन वो अब उन्हें वापस लौटाना चाहता है, क्योंकि राष्ट्रपति की इस निशानी से उसे कोई लाभ तो नहीं हुआ बल्कि उनकी हिफाजत करनी पड़ रही है.
रामदास को एक साल तक तो उम्मीद बंधी रही, शायद उसके दिन बदलेंगे, लेकिन जब उसे पुरातत्व विभाग ने दिहाड़ी मजदूरी से अलग कर दिया तो उसकी हिम्मत टूट गई पर अब दौबारा ओबामा के आने से एक उम्मीद जागी है और उसका सपना है कि उसके पैतृक गांव में उसका अपना एक स्कूल हो.