अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान नागार्जुनकुंडा में बौद्ध महाचैत्य के पश्चिमोत्तर हिस्से से एक कुली को छोटा सा टूटा हुआ घड़ा मिला था, जिसकी सावधानीपूर्वक की गई पड़ताल में इसकी महात्मा बुद्ध के अवशेष के रूप में पुष्टि हुई थी. सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से प्राप्त जानकारी के अनुसार, एएसआई के दक्षिणी सर्कल के तत्कालीन अधीक्षक ए.एच. लांगहर्स्ट ने 1926 से 1931 के बीच वहां खुदाई करायी थी, जिसमें महात्मा बुद्ध से जुड़े ‘महाचैत्य’ की बात सामने में आई थी. ए.एच. लांगहर्स्ट ने अपनी रिपोर्ट ‘द बुद्धिस्ट एंटीक्विटीज ऑफ नागार्जुनकुंडा, मद्रास प्रेसिडेंसी’ के पेज नंबर 16, 17 में कहा है कि अवशेष महास्तूप के मध्य की बजाए पश्चिमोत्तर हिस्से में रखे गए थे, जिसके कारण वे खजाना तलाशने वालों की नजरों से बच गए.
आरटीआई के तहत मिली जानकारी के अनुसार, ‘यहां एक कुली को महाचैत्य के पश्चिमोत्तर हिस्से से एक छोटा टूटा घड़ा मिला था. इसकी सतह पर माला के कुछ मनके और एक छोटा सा सोने का बक्सा था. बक्से में रखी एक चांदी की मंजूषा में हड्डी का एक छोटा टुकड़ा रखा हुआ था. मंजूषा ढाई इंच ऊंची थी और इसमें सोने के कुछ फूल, मोती और आभूषण भी रखे थे.’ दिल्ली स्थित बुद्ध अवशेष पुनर्स्थापना प्रयास ट्रस्ट (बीडीएपीटी) के संचालक राज कुमार ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से महात्मा बुद्ध के अवशेषों के बारे में जानकारी मांगी थी.
जारी आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, लांगहर्स्ट रिपोर्ट की पेज नंबर 19 में कहा गया है कि ‘डा. हीरानंद शास्त्री की ही तरह मुझे भी इस बात में कोई शंका नहीं है कि ये महात्मा बुद्ध के अवशेष हैं.’ एएसआई ने बताया, धातु अवशेष और दो मंजूषाएं अभी उत्तरप्रदेश के सारनाथ में मुलागंधकुटीविहार स्थित भारतीय महाबोधी सोसाइटी में रखी हैं, जिसका उल्लेख एएसआई की विवरणिका संख्या 75 में भी मिलता है.
आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार, नागार्जुन घाटी ‘अयाका स्तम्भ अभिलेख 1’ में महत्मा बुद्ध के अवशेष के महाचैत्य में होने का उल्लेख मिलता है. इसमें ‘सम्म सम्बुद्धसा धातुवरा परिगाहितासा महाचैत्य’ उल्लेख किया गया है. एएसआई ने कहा कि नागार्जुन बांध जलाशय से बचाव करने के मकसद से इस महाचैत्य और खुदायी की गई. आठ अन्य स्मारकों का प्राचीन सामग्री से पूरी निष्ठा के साथ पुनर्निर्माण किया गया.