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Opinion: लालू प्रसाद के अंगना में आग

इधर लालू प्रसाद दिल्ली में बैठकर अगली सरकार का ताना-बाना बुन रहे थे औऱ उधर पटना में 13 विधायक विद्रोही तेवर दिखाने लगे. पार्टी के दो फाड़ होने की खबरें गूंजने लगी. वह लालू प्रसाद यादव जो कांग्रेस के सहारे अगली सरकार बनाने के लंबे-चौड़े दावे कर रहे थे, नींद से जागे और पटना भागे. किसी तरह उन्होंने विधायकों का गुस्सा शांत किया और 13 में से 9 विधायकों को समझा-बुझाकर वापस ले आए.

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लालू यादव (फाइल फोटो)
लालू यादव (फाइल फोटो)

इधर लालू प्रसाद दिल्ली में बैठकर अगली सरकार का ताना-बाना बुन रहे थे औऱ उधर पटना में 13 विधायक विद्रोही तेवर दिखाने लगे. पार्टी के दो फाड़ होने की खबरें गूंजने लगी. वह लालू प्रसाद यादव जो कांग्रेस के सहारे अगली सरकार बनाने के लंबे-चौड़े दावे कर रहे थे, नींद से जागे और पटना भागे. किसी तरह उन्होंने विधायकों का गुस्सा शांत किया और 13 में से 9 विधायकों को समझा-बुझाकर वापस ले आए.

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लालू ने अपनी आदत के मुताबिक नीतीश कुमार को खूब खरी खोटी सुनाई. उनका शक वाजिब था. नीतीश कुमार की सरकार के पास बहुमत तो है लेकिन बहुत ही कम अंतर से. और यही कारण है कि वे डेढ़ दर्जन मंत्रालयों का बंटवारा नहीं कर पा रहे हैं. उन्हें मालूम है कि ऐसा करते ही पार्टी में विद्राह हो जाएगा और सरकार खतरे में पड़ जाएगी. हालांकि उन्होंने आरजेडी में विद्रोह से अपनी भूमिका से साफ इनकार कर दिया है.

हालांकि अब स्थिति लालू प्रसाद यादव के काबू में है लेकिन इस घटना ने कई सवाल खड़े किए हैं. पहला सवाल तो यह है कि क्षेत्रीय पार्टियों के नेता कब तक अपने समर्थकों को भेड़-बकरियों की जमात समझते रहेंगे? दूसरा यह कि लोकतंत्र के नाम पर कैसे-कैसे खेल होते रहेंगे ? तीसरा यह कि जनता की भावनाओं को कब समझेंगे नेता? लालू प्रसाद अन्य क्षत्रपों की ही तरह अपने समर्थकों को हांक कर रखने में विश्वास रखते हैं और परिवारवाद को बढ़ावा देते रहे हैं. उन्होंने अपनी पत्नी के अलावा बेटों को भी राजनीति में लॉन्च कर दिया है. उस समय उनके समर्थकों ने हालांकि ज़ुबान नहीं खोली लेकिन उनके मन में आग तो जलती रही और अब मौका मिलते ही वे बगावती सुर में बात करने लगे.

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लालू प्रसाद की राजनीति परिवारवाद पर आधारित रही है और वह अपने बेटों के भविष्य को बनाने को उत्सुक हैं. पार्टी के अन्य नेताओं की तरफ उनका ध्यान नहीं था. वे उन्हें भेड़-बकरियों की तरह हांकते रहे हैं लेकिन उन्हें बदलते वक्त का आभास नहीं हुआ. अब लालू चीजों को काफी हद तक पटरी पर ले भी आएं तो भी उनके लिए आने वाला समय कठिन होगा. अगर यूपीए सत्ता में फिर से आती है तो शायद उनकी खोई हुई ताकत वापस आ जाए और अगर ऐसा नहीं हुआ तो आने वाले दिन इन पर भारी पड़ेंगे.

लालू को शायद बदलते हुए वक्त का अंदाजा नहीं है. उन्हें शायद इस बात का गुमान नहीं है कि बिहार की राजनीति में वह बहुत कमज़ोर हो चुके हैं. आने वाला समय चुनौतियों से भरा है, यह तो एक झलक भर थी, आने वाले समय में वह काफी कुछ ऐसा देखेंगे जिसकी वो कल्पना भी नहीं कर सकते.

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