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एक्सक्लूसिवः CAG की जांच में RIL पर अड़ंगा डालने का आरोप

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) और सीएजी के बीच ठन गई है. आजतक को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक आरआईएल अपने दस्तावेजों की पूरी जांच में अड़ंगा लगा रहा है.

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रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) और सीएजी के बीच ठन गई है. आजतक को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक आरआईएल अपने दस्तावेजों की पूरी जांच में अड़ंगा लगा रहा है.

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आरआईएल और सीएजी की रस्साकसी

सीएजी का दावा है कि आरआईएल के दस्तावेजों की पूरी जांच से उन्हें रोका जा रहा है. आजतक को पेट्रोलियम मंत्रालय के सूत्रों से खबर मिली है कि पिछले तीन हफ्तों से सात सदस्यों की ऑडिट टीम आरआईएल के नवी मुंबई स्थित मुख्यालय में डेरा डाले हुए हैं. लेकिन बताया जाता है कि आरआईएल की तरफ से उन्हें वही दस्तावेज मुहैया कराए जा रहे हैं जिनकी जांच हो चुकी है और जो पहले से सार्वजनिक हैं. यानी उन्हें वो दस्तावेज नहीं मिल रहे, जिसकी जांच वो करना चाहते हैं.

दरअसल सीएजी महज दो साल के दौरान केजी डी-6 प्रोजेक्ट के खर्च में तीन सौ फीसदी के भारी भरकम इजाफे की जांच करना चाहता है. लेकिन मुकेश अंबानी की कंपनी को इस पर एतराज है.

आजतक के पास एक्सक्लूसिव दस्तावेज हैं जिसमें आरआईएल ने कैग की जांच पर सवाल उठाए हैं. 16 जनवरी को सीएजी और पेट्रोलियम मंत्रालय को आरआईएल ने एक चिट्ठी भी लिखी है. जिसमें कुछ खास बातें साफ करने को कहा गया है-

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1. सीएजी केवल भारत सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर आरआईएल और पेट्रोलियम मंत्रालय के बीच हुए करार के मुताबिक जांच करे. इसका मतलब ये हुआ कि सीएजी अपनी रिपोर्ट संसद में नहीं रख सकता और ना ही इसे सार्वजनिक किया जा सकता.

2. सीएजी आरआईएल के पिछले साल यानी 2003-04 और 2007-08 के दस्तावेजों की जांच ना करे. इसका मतलब ये है कि आरआईएल की मांग है कि खर्च में बढ़ोत्तरी को लेकर सीएजी कोई सवाल ना खड़ा करे.

3. सीएजी 2008-09 से 2011-12 की वित्तीय जांच को पिछले मामलों से ना जोड़े. इसका मतलब ये हुआ कि गुजरे सालों में जो खर्च हुए जांचकर्ता उसे आगे के खर्चों की फेहरिस्त में ना शामिल करे. 4. और अंत में आरआईएल का जोर है कि वित्तीय जांच के दौरान खर्च के औचित्य पर सवाल ना उठाए जाएं. इसका मतलब ये है कि सीएजी की अगर कोई फिजूलखर्ची नजर आती है तो वो उस पर टिपप्णी ना करें.

आरआईएल को इसके जवाब में सीएजी ने लिखा है-

ऑडिट के दायरे में वित्तीय जांच और लागत का औचित्य देखना भी शामिल होगा क्योंकि ऑडिट का मकसद दस्तावेजों में दिखाई गई लागत का इस नजरिये से विश्लेषण करना है कि क्या कीमतें और खर्च तय करते वक्त पारदर्शिता बरती गई और स्पर्धात्मक प्रक्रिया का ध्यान रखा गया.

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खास बात ये है कि सरकार और मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज के बीच मौजूदा करार इस तरह से तैयार किया गया है कि प्रोजेक्ट पर रिलायंस का जितना ज्यादा खर्च होगा, सरकार का मुनाफा उतना कम होगा. जबकि अशोक चावला कमेटी ने भी इस बारे में अपनी राय दी थी कि रिलायंस जैसी कंपनियां अपना खर्च कम करने को तैयार नहीं हैं.

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