एक तरफ जहां पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा है वही दूसरी तरफ हम आपको ऐसे जांबाजों से रू-ब-रू कराते हैं जो दुनिया के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र में जानलेवा हालात में देशभक्ति की नई कहानी लिख रहे हैं. सियाचिन एक मात्र ऐसा रणक्षेत्र है, जहां लड़ाई दुश्मन से नहीं मौसम से होती है. इसीलिए कहा जाता है सियाचिन में तीन चीजों की जरूरत होती है डॉक्टर, पोटर और हेलिकॉप्टर. हम आपको बताते हैं कि कैसे इस बर्फीले इलाके में वायुसेना के जांबाज पायलट हेलिकॉप्टर की उड़ान से सेना के जवानों को नई ताकत देते हैं.
1984 से अब तक 1013 जवान हुए शहीद
सियाचिन सामरिक तौर पर भारत के लिए कितना अहम है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1984 से लेकर अब तक इस बर्फीले गिलेशियर में 1013 से ज्यादा जवान शहीद हुए हैं. जिसमें 1011वें
लांसनायक हनुमंथप्पा थे. जबकि हेलिकॉप्टर ऑपरेशन में सियाचिन में 1971 से लेकर 2007 तक 13 पायलट शहीद हुए.
चीन और पाकिस्तान से निपटने के लिए तैनात जवान
एक तरफ लेह में चीन की बढ़ती हिमाकत और दूसरी तरफ सियाचिन में पाकिस्तान की नापाक हरकत का माकूल जवाब देने के लिए करीब 11 हजार फीट पर लेह के वायुसेना के एयरबेस पर लड़ाकू विमान सुखोई और
मिग 29 की उड़ान. पंजाब के आदमपुर और हलवारा से सुखोई और मिग 29 की उड़ान पूरा लेह लद्दाख गूंज उठा. वायुसेना के लेह एयर बेस पुरे लेह लद्दाख और सियाचिन तक अपने हेलिकॉप्टर ऑपरेट करता है.
हेलिकॉप्टर से लेह-सियाचिन की दूरी एक घंटा
'आज तक' की टीम ने लेह से वायुसेना के सबसे आधुनिक एमआई 17 हेलिकॉप्टर में बैठकर सियाचिन के लिए उड़ान भरी. हेलिकॉप्टर से लेह से सियाचिन पहुंचने में एक घंटे का वक्त लगता है. हवाई रास्ते में
खारदूंगला दर्रा होते हुए एमआई 17 हेलिकॉप्टर आगे बढ़ता है. लेह से लेकर सियाचिन बेस कैंप तक वायुसेना के चीतल हेलीकॉप्टर तैनात हैं. जो बेस कैंप से 18 हजार से लेकर 22 हजार फीट पर मौजूद सेना की अलग
अलग पोस्ट पर जवान और उनके लिए जरूरी साजोसामान पहुंचाते हैं. सियाचिन में हेलिकॉप्टर जवानों के लिए जीवन रेखा का काम करते हैं. सियाचिन पायनियर्स विंग कमांडर एस रमेश खराब मौसम के बावजूद हमें
सियाचिन गिलेशियर की फॉरवर्ड पोस्ट तक लेकर गए. उन्होंने बताया कि इन मुश्किल हालात में अच्छा टीम लीडर होना जरूरी है.
ठंड में तापमान शून्य से 50 डिग्री सेल्सियस नीचे
ये हेलिकॉप्टर पहले चीता के नाम से जाना जाता था. नए चीतल हेलिकॉप्टर का इंजन ज्यादा पावरफुल है. जबकि सियाचिन में सालों से तैनात वायुसेना के जांबाज हेलीकॉप्टर पायलट की यूनिट को सियाचिन पायनियर्स
कहा जाता है. सियाचिन में ठंड में तापमान शून्य से 50 डिग्री सेल्सियस तक नीचे पहुंच जाता है. सियाचिन बेस कैंप से भारत की जो चौकी सबसे दूर है उसका नाम इंद्रा कॉल है और सैनिकों को वहां तक पैदल जाने में
लगभग 20 से 22 दिन का समय लग जाता है. सियाचिन में चीता हेलिकॉप्टर के पूर्व पायलट और वायुसेना पश्चिमी कमान के प्रवक्ता विंग कमांडर संदीप मेहता ने बताया कि वायुसेना के चीतल हेलीकॉप्टर सियाचिन की
इन फॉरवर्ड पोस्ट के लिए लाइफ लाइन का काम करते हैं.
अगस्त महीने में भी सियाचिन बर्फ से ढका
ऑपेरशन मेघदूत से लेकर अब तक वायुसेना सियाचिन पायनियर्स सियाचिन बेस कैंप से हम वायुसेना के चीतल हेलिकॉप्टर पर सवार होकर ऐसी ही एक फॉरवर्ड पोस्ट की तरफ बढे. पूरी सियाचिन घाटी अगस्त के महीने
में भी बर्फ से ढकी है. 17 हजार फीट पर मौजूद इस पोस्ट पर उतरने के लिए पायलट ने बर्फ की एक चोटी पर बने एक छोटे से हेलीपैड पर हेलीकॉप्टर को उतारा. पायलट स्क्वाड्रन लीडर मयंक पालीवाल ने हमें बताया
कि लगातार खराब होते मौसम के बीच वो हेलिकॉप्टर को ज्यादा देर हेलीपैड पर नहीं रोक सकते. ऐसे में तेजी के साथ जवानों के लिए जरूरी सामान पैरा ड्राप किया जाता है.
सिर्फ हेलिकॉप्टर ही कर सकते हैं काम
18 हजार से लेकर 22 हजार फीट की ऊंचाई पर सिर्फ हेलिकॉप्टर काम कर सकता है. सबसे ऊंचाई तक जाने और सबसे ऊंचाई पर बने हेलिपैड पर लैंड करने वाले हेलिकॉप्टर का रिकॉर्ड इसी के नाम है. संघर्ष विराम से
पहले सीमा के नजदीक बनी चौकियों तक हेलिकॉप्टर ले जाने में काफी सावधानी बरतनी होती थी. चीतल हेलिकॉप्टर उन चौकियों पर सिर्फ 30 सेकेंड के लिए ही रुकता है. सियाचिन पर तैनात भारतीय सैनिकों के बारे में
कहा जाता है कि एक घायल सैनिक के लिए उन पहाड़ों में सबसे सुखद दृश्य होता है, चौकी की ओर बढ़ता चीता हेलिकॉप्टर. सैनिकों को दूसरी जगहों से लाकर जब सियाचिन पर तैनात किया जाता है तो उससे पहले
उन्हें इतने ठंडे मौसम के अनुरूप ढालने के लिए तैयार किया जाता है.
दुनिया का सबसे ऊंचा एटीसी
सियाचिन में रूस में बने एक खास ट्रक में एटीसी बनाया गया है. फ्लाइंग ऑफिसर अभिषेक ने बताया कि अपने आप में ये अनोखा एटीसी सियाचिन में हेलीकॉप्टर ऑपरेशन और दुर्घटना हर समय सक्रिय रहता है.
इसी साल 3 फरवरी को सियाचिन की सोनम पोस्ट पर एवलांच की वजह से सेना के 19 जवानों की मौत हो गयी थी. सियाचिन बैटल स्कूल के सीओ लेफ्टिनेंट कर्नल एस सेनगुप्ता के मुताबिक इस बड़े हादसे से सबक
लेते हुए सेना ने अपने जवानों की ट्रेनिंग में बदलाव किए जा रहे हैं. अगर कोई जवान बर्फ में दब जाए तो उसे ढूंढने के लिए जेवियर रडार और दूसरे कई आधुनिक उपकरण खरीदे गए हैं.