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आज तक ने देखी धरती की नीली मौत

ग्‍लोबल वॉर्मिंग का खतरा धरती पर साफ तौर से मंडरा रहा है और तेजी से पिघल रहे हैं विशाल ग्‍लेशियर. इसी खतरे का मुआयना करने ग्रीनलैंड के हेलहाइम ग्लेशियर पहुंची आज तक की टीम.

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ग्‍लोबल वार्मिंग का खतरा धरती पर साफ तौर से मंडरा रहा है. धरती के छोर पर स्थित ग्रीन लैंड का हेलहाइम ग्‍लेश्यिर ग्‍लोबल वार्मिंग की वजह से तेजी से पिघल रहा है. पिघलती बर्फ की नदी अब हजारों हजार मील दूर मुंबई और सुंदरवन जैसे कई तटीय शहरों और टापुओं को निगलने जा रही है. इसी खतरे का मुआयना करने ग्रीनलैंड के हेलहाइम ग्लेशियर पहुंची आज तक की टीम.

नील नदी तैयार कर रही है तबाही का मंजर
ग्रीनलैंड के कुलसुक एयरपोर्ट के उत्तर में बसा है धरती का सबसे आखिरी गांव तासीलाक. आर्कटिक सागर के तट पर बसे इस अलसाए से गांव में ही आज तक की टीम की मुलाकात ग्रीनपीस सनराइज के वैज्ञानिकों से हुई. दुनिया पर मंडराते सबसे बड़े खतरे पर सालों से रिसर्च कर रही इस टीम ने आज तक को जो बताया वो आपके भी रोंगटे खड़े कर देगा. यहां एक ऐसा खतरा है जो बर्फीले रेगिस्तान की कोख में बेहद खामोशी से पल रहा है. जी हां, धरती के उस आखिरी छोर से हम जो कुछ देखकर लौटे हैं उसकी डरावनी गूंज अब भी हमारे जेहन में है. सफेद बर्फ के बीचों बीच बहती नीली नदी बेहद खूबसूरत दिखती है, लेकिन जब हमने हकीकत को जाना तो ऐसा लगा जैसे यह नदी आर्कटिक का सीना चीर कर बह रही है और तैयार कर रही हो धरती के लिए तबाही का नया रास्ता.

इंसान के दखल से पहुंचा पर्यावरण को खतरा
नील नदी को बर्फ की दुनिया में यानी उत्तरी ध्रुव पर होना नहीं चाहिये. यहां तो सिर्फ और सिर्फ बर्फ के पहाड़, चट्टान औऱ चादरें होनी चाहिये. जब तक ऐसा था तब तक दुनिया सुरक्षित थी, लेकिन जैसे-जैसे नील नदी बनती औऱ बढती गयी धरती पर खतरा बढने लगा. दरअसल, इसकी पैदाइश की वजह है दुनिया का बढता तापमान. हम इंसानों ने अपने खातिर पर्यावरण पर खतरा इतना बढ़ा दिया कि धरती का तापमान बढने लगा और वो गर्मी धरती के इस सिरे तक आ पहुंची. नतीजा यह हुआ कि ग्लेशियर तेजी से पिघलने लगे. आहिस्ता-आहिस्ता एक छोटी धारा निकली और फिर ये बड़ी होती गयी. आज वही छोटी धारा एक लंबी नदी बन गयी है. यह नदी अब यहां की बर्फ को ऊपर से खाती है, नीचे तक जाकर तोड़ती है और बर्फ के टुकड़ों को समंदर में धकेल-धकेल अपनी ताकत का खौफ पैदा करती है.

तेजी से पिघल रहे हैं ग्‍लेशियर
आर्कटिक पर आज तक की टीम ने एक हफ्ता बिताया और इस दौरान बर्फ की नीली-सफेद चादर के नीचे धरती की मौत को हमने पैदा होते देखा. उसे तेजी से बढते देखा है. लाखों सालों तक जमे रहने के बाद ग्लेशियर जिस तेजी से समंदर में विलीन हो रहे हैं वो वाकई डरा देने वाला है. सालाना करीब 8 किलोमीटर की रफ्तार से सरकने वाला ग्लेशियर अब ग्‍यारह किलोमीटर से भी ज्यादा की रफ्तार से समंदर में समा रहा है. यानी हर साल सामान्य से करोड़ों टन ज्यादा बर्फ समंदर के पानी में विलीन हो रही है. हर साल बर्फ का यह अंतहीन विस्तार सिकुड़ता जा रहा है. हर साल समंदर का स्तर बढ़ता जा रहा है.
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असल में हेलहाइम ग्लेशियर एक कन्वेयर बेल्ट की तरह काम करता है जो बर्फ के बडे-बड़े टुकड़ों को समंदर में लगातार डालता रहता है. ग्लेशियर के रूप में बर्फ का ये कन्वेयर बेल्ट सदियों से चलता आया है, लेकिन वैज्ञानिकों को खतरा इस बात से सता रहा है कि इस कन्वेयर बेल्ट की रफ्तार बेहद तेज हो गई. हजारों किलोमीटर तक फैला धरती का ये सुरक्षा कवच तेजी से सिकुड़ रहा है. हमें वैज्ञानिकों ने बताया कि ग्रीनलैंड की बर्फ की पट्टी लगातार छोटी होती जा रही है.

इंसानी सभ्‍यता के लिए बड़ा खतरा
सदियों से जमी बर्फ अगर पिघल जाए तो समंदर का जलस्तर सात मीटर बढ़ जाएगा और इंसानी सभ्यता का एक बड़ा हिस्सा समंदर में समा जाएगा. हेलहाइम ग्लेशियर पर ग्लेशियोलॉजिस्ट प्रोफेसर गोर्डन हैमिल्टन ने बताया कि बर्फ के पिघलने की रफ्तार हर साल औऱ तेज होती जा रही है. टाइम-लैप्स कैमरे और ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम से जुटाए गए आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि ग्रीनलैंड की यह विशाल बर्फपट्टी बेहद खतरनाक रफ्तार से समंदर में विलीन होती जा रही है और उसी रफ्तार से बढ़ रहा है मुंबई और सुंदरबन समेत दुनिया के कई बड़े शहरों के डूबने का खतरा.

डूब जाएगी मुंबई
आर्कटिक से निकलने वाले तबाही के सैलाब से भारत को भी ख़तरा कम नहीं है. पिघलते हुए ग्लेशियरों का पानी, आर्कटिक से निकल कर दुनिया के दो तिहाई हिस्से में फैले महासागरों में मिल रहा है, और महासागरों के जल-स्तर को बढ़ा रहा है. वो दिन दूर नहीं, जब हमारा सुंदरवन डेल्टा, पूरी तरह बंगाल की खाड़ी में समा जाएगा. किनारे पर बसे कई इलाकों को निगल जाएगा समंदर का पानी, और फिर यही बढ़ता हुआ पानी अरब सागर में भी सैलाब ले आएगा और हमारी मुंबई डूब जाएगी.

कहीं देर न हो जाए
अब यह नीली नदी वाकई खौफ बन चुकी है. अगर हम नहीं चेते और पर्यावरण की फीक्र नहीं की तो फिर इसकी शक्ल और खौफनाक होती जायेगी. यहां से बर्फ तेजी से पिघलती जायेगी, समंदर में पानी उठता जायेगा और धरती आहिस्ता-आहिस्ता डूबती जायेगी.

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