उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के भाई पर हाल फिलहाल में कई सवाल खड़े हुए है. सवाल उठ रहे है कि उत्तर प्रदेश में मायावती के राज के दौरान अचानक लक्ष्मी जी आनंद कुमार पर इतनी मेहरबान कैसे हो गई? आजतक ने आनंद कुमार और उनकी पत्नी विचित्र लता कि कंपनियों की छानबीन की. छानबीन के दौरान जो तथ्य सामने आए, वो चौंकाने वाले है.
आनंद कुमार देश भर में बहनजी के नाम से मशहूर मायावती के सगे भाई हैं. उत्तर प्रदेश में जब तक मायाराज रहा, तब तक इनका भी आनंद ही आनंद रहा. माया की सत्ता गई विवादों की माया ने आनंद कुमार को घेर लिया. करोड़ों के हेरफेर के आरोप लगे. सरकारी कागजात पर यकीन करें तो मायावती के मुख्यमंत्री रहते हुए आनंद कुमार की कंपनियों से करोड़ों रुपए का लेन देन हुआ. अब सवाल ये है कि मायावती के भाई की कंपनियां क्या काम करतीं हैं? ये पैसा कहां से आया?
इन सवालों का जबाव जानने के लिए आजतक ने उन कंपनियों की छानबीन की, जो आनंद कुमार और उनकी पत्नी के नाम से रजिस्टर्ड है. दिल्ली से लेकर मुंबई तक, सिलिगुड़ी से लेकर मसूरी तक... आजतक की टीम ने हर उस जगह पर जाकर पड़ताल की, जो सरकारी कागजों में कंपनियों के पते के तौर पर दर्ज है.
उन कंपनियों के नाम, जिनमें आनंद कुमार और उनकी पत्नी विचित्र लता की हिस्सेदारी है. ये कंपनियां हैं होटल लाइब्रेरी क्लब प्राइवेट लिमिटेड, रेवल्यूनेशरी रियलर्स प्राइवेट लिमिटेड, दीया रियलटार्स प्राइवेट लिमिटेड, शिवानंद रियल एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड, तमन्ना डेवल्पर्स प्राइवेट लिमिटेड, और डीएलए इन्फ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड.
...जब कंपनियों के दरवाजे पर पहुंची आजतक की टीम
पड़ताल कहती है कि सरकारी कागज़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में मायावती के शासन के दौरान आनंद कुमार की कंपनियों में अचानक करोड़ों अरबों रुपये आने शुरू हो गए. कंपनियां क्या काम करती है और इनके कमाई के साधन क्या है, ये जानना जरूरी था. जब आजतक ने इन कंपनियों के दरवाज़े पर जाकर देखा, तो आंखे खुली की खुली रह गई.
...जब मसूरी पहुंची आजतक की टीम
आजतक की टीम पहली कंपनी की पड़ताल के लिए उत्तराखंड के मसूरी पहुंची. सरकारी दस्तावेजों में कंपनी का पता लिखा था होटल लाइब्रेरी क्लब प्राइवेट लिमिटेड, लाइब्रेरी चौक, मसूरी, उत्तराखंड. लेकिन लाइब्रेरी चौक पर पहुंच कर सच सामने आया. मसूरी के इस इलाके में इस नाम से कोई कंपनी ही नहीं।
...मुंबई पहुंचने पर भी नतीजा वही
अब सवाल ये है कि जो कंपनी मौजूद ही नहीं उसमें तीन सालों में 400 करोड़ से ज्यादा की रकम कैसे आ गई. आनंद कुमार ने फर्जी कंपनियों का किस तरह से जाल फैला रखा है, इसे देखने के लिए आजतक की टीम मुंबई पहुंची. टीम रेवल्यूनेशरी रियलर्स प्राइवेट लिमिटेड के पते पर पहुंची. यहां भी कंपनियों का नामो निशान नहीं मिला.
आजतक की टीम मुंबई में ही दीया रियलटार्स के दफ्तर पर पहुंची. यहां भी कहानी वही रही. दिए गए पते पर से दफ्तर नदारत रहा.
दिए गए पतों पर से कंपनियां गायब
फर्जीवाड़े की यही कहानी सिलिगुड़ी में भी देखने को मिली. आजतक ने आनंद कुमार की कंपनियों को खंगाला तो कुछ और चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. सरकारी कागजों के मुताबिक आनंद कुमार की कंपनी तमन्ना डेवलपर्स में पैसा शिवानंद रियल एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी से भी आया. खास बात ये है कि शिवानंद रियल एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी भी किसी और की नहीं बल्कि आनंद कुमार और विचित्र लता की ही है. आजतक ने इन कंपनियों का भी रियलटी चैक करवाया. यहां भी दिए गए पतों पर से कंपनियां गायब मिलीं.
दिल्ली में भी कंपनी नदारद
आनंद कुमार की दिल्ली की कंपनी डीएलए इन्फ्रास्ट्रक्चर की पड़ताल करने आजतक की टीम जब नई दिल्ली के राजेन्द्र नगर में डीडीए हॉग मार्केट के 107 नंबर के दफ्तर पर पहुंची, तो नतीजा वही निकला.
सरकारी कागज़ों में आनंद कुमार और उनकी पत्नी ने अपने घर का पता नोएडा का दे रखा है. आजतक की टीम वहां भी पहुंची. यहां आनंद कुमार का घर तो है, लेकिन फिलहाल वो यहां रहते नहीं है. घर में अभी भी कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा है. मायावती के शासन के दौरान जिस तरह से आनंद कुमार और विचित्र लता की कंपनियों में करोड़ो अरबों रुपये का लेन देन हुए और कंपनियां नदारत है, उससे साफ है कि खेल कुछ और है.
खुलासा इतना ही नहीं है बल्कि मायावती के कार्यकाल में उनके भाई ने करोड़ों के वारे न्यारें किये. इन कंपनियों के कैसे ये सब हुआ इसकी भी आजतक ने पड़ताल की.
इन कंपनियों के कैसे हुआ ये सब?
मायावती के भाई आनंद कुमार के फर्जीवाड़े की बानगी आपने पढ़ी. अब पढ़िए कि कैसे कंपनी का अता पता न होने के बावजूद करोड़ों के वारे न्यारे किए गए. किस तरह नोएडा ऑथिरिटी में कलर्क के तौर पर नौकरी करने वाले आनंद कुमार करोड़ों की कंपनी के मालिक बन गए.
सबसे पहले बात करते हैं आनंद कुमार की सबसे पुरानी कंपनी होटल लाइब्रेरी क्लब प्राइवेट लिमिटेड की. इस कंपनी का रजिस्ट्रेशन 1987 में कराया गया, लेकिन कागजों के मुताबिक 2006 - 2007 तक इसमें किसी भी तरह का निवेश नहीं किया गया. 2008 से लेकर 2011 के बीच अचानक ही कंपनी में 413.99 करोड़ की रकम लगाई गई.
मुंबई से चलने वाली रेवल्यूशनरी रियल्टर्स प्राइवेट लिमिटेड के कागजों में भी करोड़ों का लेन देन साफ नजर आता है. 2008 से 2010 तक नुकसान में रहने वाली कंपनी पर अचानक ही 2011 में करोड़ों रुपए बरसने लगे. आनंद कुमार की किस्मत ऐसी पलटी कि एक कंपनी के शेयर कैपिटल में महज एक लाख रुपए के निवेश पर 60 करोड़ का लाभांश मिल गया.
आनंद की एक और कंपनी दीया रियलटार्स 2008 में महज 20 लाख रुपए की हैसियत रखती थी, 2011 में वो अचानक 74 करोड़ 31 लाख की हो गई. 2008 तक दिल्ली में काम करने वाली डीएलए इन्फ्रास्ट्रक्चर भी घाटे में चल रही थी, लेकिन 2009 में अचानक ही कंपनी को 3.33 करोड़ का मुनाफा हुआ और 2010 में कंपनी 2.26 करोड़ का मुनाफा दिखाने लगी. इन कंपनियों में करोड़ों अरबों के हेरफेर का खेल तो साफ नज़र आता है. जानकारों की माने तो जिस तरीके से इन कंपनियों में पैसे का लेन देन हुआ वो बैंकिंग सिस्टम में काले धन को खपाने का तरीका है.
रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज को दिए गए दस्तावेजों के मुताबिक आनंद की एक कंपनी को छोड़कर बाकी सभी कंपनियां 2007 में मायावती के तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद बनाई गईं.
अब सवाल यही है कि आनंद कुमार ने कैसे फर्जी कंपनी के नाम पर करोड़ों की संपत्ति बना ली? कागज पर कंपनी होते हुए भी कैसे इतने सालों तक करोड़ों का लेन देन होता रहा? मायावती के मुख्यमंत्री बनने के बाद आनंद कुमार ने कैसे नोएडा और ग्रेटर नोएडा में रियल इस्टेट कंपनियों की सीरीज शुरू कर दी? फर्जी पते पर चल रहीं कंपनियों के रजिस्ट्रेशन को बार बार कैसे नया किया गया?
आनंद कुमार की फर्जी कंपनियां फिलहाल जांच के दायरे में है. जांच के बाद ही पता चल पाएगा कि आनंद कुमार के इस खेल में मायावती के रसूख का कितना फायदा मिला?