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आजतक का खुलासा, दिल्ली पुलिस की दरिंदगी, अवैध लॉकअप में बच्‍चों से दुष्‍कर्म

दिल्ली के विजय विहार इलाके में 26 मार्च 2013 को एक हार्डवेयर की दुकान में जब चोरी हुई तो पुलिस का कहर इलाके की दो गलियों में टूट पड़ा.

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ऑपरेशन कालकोठरी
ऑपरेशन कालकोठरी

दिल्ली में आतंकवादी बम रखकर गायब हो जाते हैं और पुलिस ढूंढती रह जाती है, दिल्ली की सड़कों पर दिल्ली की बेटियों के साथ हादसे होते रहते हैं और पुलिस बेसुध रहती है, दिल्ली में दिन दहाड़े बैंक लुट जाते हैं और पुलिस अंधेरे में तीर चलाती रह जाती है. लेकिन दिल्ली के विजय विहार इलाके में 26 मार्च 2013 को एक हार्डवेयर की दुकान में जब चोरी हुई तो पुलिस का कहर इलाके की दो गलियों में टूट पड़ा.

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इन दो गलियों में 12 साल से लेकर 18 साल के बच्चों पर पुलिस की ऐसी छापेमारी हुई कि पुलिस ने रातों-रात थोक के भाव बच्चों को जिप्सी में भरा और थाने ले पहुंची और आठ बदनसीब बच्चे पुलिस के हत्थे चढ़ गये.

इन बदनसीब बच्चों के पास से चोरी के एक रुपये की चीज भी बरामद नहीं हुई लेकिन बिना किसी सबूत के वर्दी वाले दरिंदों का कहर कई दिनों तक टूटता रहा. इन्हें थाने के हवालात में रखने की जगह पुलिस ने इन्हें गुपचुप ठिकानों पर रखा. इन ठिकानों पर इन्हें बंद कमरों में जंजीरों से बांधा गया और कई दिन तक इतनी बेरहमी से पिटाई हुई कि कुछ बच्चों ने खून की उल्टी कर दी और कुछ बच्चे मार खा-खा कर बेहोश हो गये.

यकीन करना मुश्किल है, लेकिन बच्चों ने आज तक को बताया कि थाने से कुछ दूरी पर डीडीए के अपार्टमेंट्स हैं और इसी अपार्टमेंट में एक फ्लैट है J-2/7 जिस पर थाने की पुलिस का अवैध कब्जा है और इस अवैध कब्जे वाले फ्लैट में पुलिस का प्राइवेट लॉकअप है. सारे जुर्मों के बही खाते इसी प्राइवेट लॉकअप में दर्ज किये जाते हैं जिसके नामो-निशान पुलिस की केस डायरी तक कभी नहीं पहुंचते.

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26 मार्च 2013 को पुलिस इन बदनसीब बच्चों को चोरी के संदेह में इसी प्राइवेट लॉकअप में लेकर आई. बच्चों ने बताया कि उनके हाथों में हथकड़ियां डाल दी गई और इन हथकड़ियों को जंजीर से बांधकर खिड़की में लगी लोहे की ग्रिल से बांधा गया. बच्चों के मुताबिक SHO सुनील कुमार के आदेश पर थाने के कुछ सिपाहियों ने इस प्राइवेट लॉकअप में इन्हें रात भर चोरी कबूल करने के लिये अमानवीय यातनायें दीं.

थाने के चक्कर में फंसे इन गरीब घर के बच्चों को उनके मां-बाप रात भर ढूंढते रहे लेकिन गुहार सुनने वाले कान पुलिस थाने में बंद हो चुके थे. 48 घंटे यातना के इस लॉकअप में बीत चुके थे. मोहल्ले में खलबली मची तो थाने में मुखबिर ने पुलिस को अलर्ट कर दिया. फिर रातों-रात डीडीए के अवैध कब्जे वाले फ्लैट में बने लॉकअप से इन बच्चों को उठाकर एक और ऐसे ही गैरकानूनी लॉकअप में डाल दिया गया. ये लॉकअप विजय विहार के डीडीए फ्लैट्स से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर बने एक बिल्डर फ्लैट में रखा गया.

न कोई गिरफ्तारी और न कोई हिरासत और जब हिरासत ही नहीं तो ज़मानत कैसी. दिल्ली पुलिस बच्चों के साथ दरिंदगी की एक ऐसी दास्तान लिखने पर आमादा थी जिसमें इस देश के कानून की हर पल में हत्या हो रही थी, हत्या हो रही थी इंसानियत की और हत्या हो रही थी भरोसे की.

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लाल क्वार्टर दिल्ली पुलिस का वो काला पानी है जिसकी ईंटें कानून की हत्या के ख़ून से लाल हैं. न कोई लिखा-पढ़ी और न कोई रिकॉर्ड, किसी को भी लाकर बंद कर दो, मारो-पीटो, भूखा रखो या मार डालो, कोई हिसाब नहीं.

जो भी यह जान जाएगा उसे यही लगेगा कि ये कहानी तालिबान की तो नहीं है, बिल्कुल नहीं. इन कहानियों के लेखक दिल्ली पुलिस के वो देवता हैं जिनकी दरिंदगी के भरोसे छोड़ देते हैं हम और आप अपनी हिफाज़त.

पता कैसे होता, जब कोई हिरासत होती, गिरफ्तारी होती या कम से कम केस डायरी में नाम होता लेकिन यहां तो दिल्ली पुलिस का अपना कानून है, अपना संविधान और दंड की अपनी संहिता. इस संहिता पर सवाल उठाने वालों के लिए लाल कोठियां बना रखी हैं कमिश्नर नीरज कुमार के शागिर्दों ने.

जब विजय विहार के इलाके में 9 घरों में मातम था, तब इलाके के थाने में ठहाके लग रहे थे. अपनी हैवानियत को अपनी हिम्मत समझने वाले पुलिस कमिश्नर के कारिंदे कुचलते जा रहे थे अपने बूटों के नीचे इस मुल्क का कानून.

विजय नगर के एसएचओ सुनील कुमार की जुबानी कलम से उस रात विजय नगर थाने में मासूम बच्चों की हथेलियों पर हैवानियत के बेशर्म किस्‍से लिखे गए थे, लेकिन इसके पहले की दामन पर कीचड़ उछलता इनका तबादला विजय नगर से नेब सराय हो गया. आज तक जब एसएचओ सुनील कुमार से मिलने नेब सराय पहुंचा तो इनकी अकड़ देखने लायक थी. न बदन पर वर्दी थी और न कंधों पर सितारे.

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सुनील कुमार के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं, ये दहशत सच के बेपर्दा हो जाने की थी. कौन मानेगा कि एसएचओ की इजाज़त के बगैर अवैध लॉकअप चल रहे थे, डीडीए के फ्लैटों से लेकर प्राइवेट बिल्डरों के फ्लैट तक. बड़े-बड़े गुंडे पानी भरें दिल्ली पुलिस की गुंडागर्दी के सामने. कब्‍जा करने के मामले में. गरीबों के रहने के लिए सरकार ने सस्ते घर बनाए थे उन्हें दिल्ली पुलिस ने उन्हीं ग़रीबों के बच्चों के लिए यातना शिविर बना दिया.

चार मंजिल की हवेली में दिल्ली पुलिस की हैवानियत का कारखाना चलता था. ग्राउंड फ्लोर पर ही लॉकअप जैसा गेट दहशत पैदा करता है. तीसरी मंजिल की बालकनी यातनाशिविर का बोध कराती है. न बिल्डर का पता और न मालिक का. ये मकान पुलिस के खूंखार चेहरे की दबी हुई दुकान है.

लाल कोठी के कब्जे के फ्लैट में आराम फरमाते दिल्ली पुलिस के कॉन्स्टेबल पर बच्चों ने मारपीट से लेकर दुष्कर्म तक के आरोप लगाए हैं. आज तक ने जब कॉन्स्टेबल राहुल को पकड़ा तो उसका चेहरा जर्द हो चुका था.

किससे पूछें और कैसे पूछें जब जवाबदेही की हत्या करके ही हैवानियत का पहला अक्षर लिखा था दिल्ली पुलिस ने. जब बात फैल गई, थाने में फोन आने लगे. बच्चों के मां-बाप दौड़ने लगे तो हड़कंप मचा. दो बच्चों को पेश किया गया. एक बच्चे को जुवेनाइल अदालत ने रिमांड होम भेज दिया और दूसरे को बरी कर दिया. अपनी खाल बचाने के लिए बाक़ी बच्चों को पुलिस ने जैसे बाहर से पकड़ा था वैसे ही बाहर छोड़ दिया.

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दिल्ली पुलिस ने दहशतगर्दी के इस खेल का आधार बनाया था एक हार्डवेयर की दुकान में चोरी को. मालिक ने एफआईआर लिखवाई थी लेकिन उसे खुद नहीं पता था कि वर्दी वाले गुंडे गली में खेलते हुए बच्चों पर ही टूट पड़ेंगे.

ये देश की राजधानी में हुआ है, बच्चों के साथ हुआ है और उस दिल्ली पुलिस ने किया है जो कंधे पर सितारे जड़ती है. हिफाजत के देवताओं को हैवान बनते देखकर डर लगता है, नफरत होती है और घिन्न आती है. हम जानते हैं कि नीरज कुमार की दिल्ली पुलिस फिर से जांच का जाल फेंकेगी लेकिन जिन बूटों ने बेगुनाह बच्चों के बचपन को रौंद डाला है, जांच की जालसाज़ी क्या उन बिलखते हुए जख्‍मों का बेलपत्र बन सकेगी?

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