जिन्ना की सोच की धज्जियां तो मुसलमानों ने साल 1942 में ही उड़ा दी थीं. जिन्ना की विचारधारा को मुसलमानों ने न सिर्फ नकारा, बल्कि उसे पंक्चर किया. बिहार और यूपी को छोड़कर शायद ही कोई हिन्दुस्तान से पाकिस्तान गया. मुसलमानों ने तो उसी वक्त मुंहतोड़ जवाब दे दिया था. यह बात हैदराबाद स्थित मौलाना आजाद विश्वविद्यालय के चांसलर जफर सरेशवाला ने आजतक की ओर से आयोजित पंचायत 'जिन्ना एक विलेन पर जंग क्यों' के पांचवें सत्र 'हिंदुस्तान में किसको चाहिए जिन्ना' पर बहस के दौरान कही.
पीएम मोदी के करीबी माने जाने वाले जफर सरेशवाला ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि आज हमारे मुल्क की एक पार्टी बार-बार सबको पाकिस्तान भेजने की बात करती है, उनके लिए बता दूं कि हमने जवाब दिया है. एएमयू के चांसलर और वाइस चांसलर को अब फ्रंट फुट पर आ जाना चाहिए और छात्रों को समझाना चाहिए. एक नुकसान पहले ही हो चुका है. 12 मई तक परीक्षाएं स्थगित हो गई हैं. जिन्ना की तस्वीर हो या न हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.
उन्होंने कहा कि अभी जो अलीगढ में हो रहा है, मैं समझता हूं, वहां के वाइस चांसलर और चांसलर को सामने आकर नेतृत्व करना चाहिए और बच्चों को सही राह दिखानी चाहिए. वहीं, राजनीतिक विश्लेषक सुधींद्र कुलकर्णी ने कहा कि आज हम हिंदू-मुस्लिम लड़ रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि देश के विभाजन के लिए जिन्ना से ज्यादा अंग्रेज दोषी हैं. उन्होंने कहा कि हमारी सभी की राय इस बात पर एक है कि भारत का विभाजन नहीं होना चाहिए था और खून-खराबा नहीं होना चाहिए था, लेकिन ऐसा हुआ.
उन्होंने कहा कि देश के विभाजन के लिए जिन्ना से ज्यादा अंग्रेज दोषी हैं. अंग्रेजों ने फूट डालो और शासन करो की नीति अपनाई थी. उन्होंने कहा कि आजादी तो जून 1948 में मिलने वाली थी, लेकिन वायसराय माउंटबेटन ने इसको अगस्त 1987 तक ही खींचा, जिसके कारण डर का माहौल पैदा हुआ. इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि जब साल 1979 में माउंटबेटन की मौत हुई, तो भारत सरकार ने सात दिन का शोक घोषित किया था और राष्ट्र ध्वज आधा झुकाया था. जबकि हकीकत यह है कि जिन्ना से ज्यादा ये अंग्रेज दोषी हैं, लेकिन आज हम हिंदू-मुसलमान में लड़ रहे हैं.
लेखक सुधींद्र कुलकर्णी ने कहा कि साल 2005 में लालकृष्ण आडवाणी के साथ मैं भी पाकिस्तान गया था. तब जिन्ना की मजार पर आडवाणी ने कहा कि साल 1930 तक हिंदू-मुसलिम एकता के जिन्ना हिमायती थे. दूसरी बात आडवाणी ने यह कही कि 11 अगस्त 1947 को जिन्ना ने पाकिस्तान की संविधान समिति में अपने भाषण में कहा कि पाकिस्तान मजहबी मुल्क नहीं होगा. इस्लामी मुल्क नहीं होगा. यहां हिन्दू-मुसलमान सब मिलकर बराबर रहेंगे.