वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि एयरस्ट्राइक के बाद पाकिस्तान काफी अलग-थलग हुआ है. पाकिस्तान दुनिया के सामने एक्सपोज हुआ है. पाकिस्तान के लिए यह आसान था कि एयरस्ट्राइक की मार खाए और उसे छुपा जाए, क्योंकि अगर वह दुनिया के सामने स्वीकार कर लेता तो उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती. आजतक द्वारा आयोजित विशेष 'सुरक्षा सभा' को संबोधित करते हुए जेटली ने यह बात कही.
उन्होंने कहा, 'पाकिस्तान के लिए एयरस्ट्राइक की इससे बड़ी कीमत क्या होगी कि चीन और टर्की जैसे देश तटस्थ हैं. इस्लामिक देशों का संगठन ओआईसी भी आपकी बात नहीं सुन रहा.' उन्होंने कहा, 'जब हमने स्ट्राइक किया तो हमने दुनिया को बताया नहीं, दुनिया को पहली सूचना सुबह 4.45 पर उनकी फौज ने दी. इसके दो कारण थे. ये स्पष्ट है कि वहां की सरकार को सेना चला रही है, पाकिस्तानी सेना ने जिन्होंने अपना औरा कुछ देशों में बनाया था कि पाकिस्तान की सीमा बहुत मजबूत है, लेकिन इन घटनाओं के सच से उनका औरा नष्ट हो जाता, अगर वे स्वीकार कर लेते कि सर्जिकल स्ट्राइक में भारतीय फौज ने उनके घर में घुसकर आतंकियों के ठिकाने नष्ट कर दिए. एयरस्ट्राइक में विदेशी विमान उनके घर में घुसकर कार्रवाई की और वे कुछ नहीं कर पाए तो उनका औरा क्या रहता.'
दुनिया में घिर जाता पाकिस्तान
उन्होंने कहा, 'अगर पाक स्वीकार कर लेता कि ये घटना हुई है तो इंटरनेशनल कम्युनिटी बहुत सवाल पूछती कि कहां हुआ? वहां क्या हो रहा था? जो मरे वे कौन थे? वे क्या जवाब देते? ये कोई जंगल के अंदर टेंट में चलने वाला कैम्प तो नहीं था. ये तो आर्मी, मिलिट्री जैसे इंस्टीट्यूशनल कैंप थे. सैटेलाइट के माध्यम से हमें सब पता था. वे दुनिया को क्या बताते कि हमारे यहां जैश के कम्प चल रहे थे और भारत की फौज आई और उसने एयर मिसाइल हमले से इसे नष्ट कर दिया. तो सबसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रतिबंध लगाता, उसके एफएटीएफ भी प्रतिबंध लगा देती. तो पाकिस्तान के लिए मार खाना और उसे छुपा जाना ज्यादा आसान था और यह स्वीकार कर लेते तो उसकी इन्हें बड़ी कीमत चुकानी पड़ती. भारत दुनिया का एक ताकतवर देश है. दूसरी तरफ, पाकिस्तान 13वीं बार आईएमएफ के पास गया है कि मेरी मदद करो.'
जेटली ने कहा, 'आज चीन के साथ आर्थिक, कूटनीतिक संबंध बढ़ रहे हैं. हम उससे सीमा विवाद निपटाने की भी कोशिश कर रहे हैं. बांग्लादेश में कभी आतंकवादियों को प्रश्रय मिलता था आज वह हमारा मित्र देश बन चुका है. मालदीव के साथ भी परिस्थिति बदली है. पाकिस्तान से हमारे संबंधों में यह महत्वपूर्ण मोड़ आया है. हालांकि, पाकिस्तान ने कभी यह स्वीकार नहीं किया कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है. कश्मीर पाकिस्तान का 1947 का एक अनफिनिश्ड एजेंडा है उन्होंने 1947, 1965, 1971 में और 1999 में कोशिश की, लेकिन जब परंपरागत जंग में पीछे रहे गए तो उन्होंने अपना तरीका बदला और इन गैर पारंपरिक तरीकों में से एक था सीमापार से आतंकवाद भेजना. जम्मू-कश्मीर देश के अन्य हिस्सों में आतंकवादियों से सीमा पार आतंकवादी घटनाएं कराना और कश्मीर में घरेलू मॉड्यूल को ट्रेंड करना उनकी रणनीति थी.'
उन्होंने कहा, 'लेकिन भारत की नीति अलग थी. भारत कूटनीति से उनको दुनिया में अलग-थलग करता रहा, ईमानदारी से उनसे बातचीत की कोशिश करते रहे. कई सरकारों ने की. इंदिरा जी ने 90 हजार युद्धबंदी लौटा दिए कि इससे एक नई शुरुआत होगी. लेकिन गिरगिट अपना स्वभाव नहीं बदलता. अभी जब नवाज शरीफ से बहुत बात हुई पीएम उनके पारिवारिक फंक्शन तक में गए तो उसके बाद उरी हो गया, इस बार पुलवामा हो गया.'