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आरुषि केस: इलाहाबाद HC ने ट्रायल कोर्ट को खूब सुनाया, कहा- जज फिल्म डायरेक्टर बन गए थे

जस्टिस मिश्रा ने अपनी सख्त टिप्पणी यहीं खत्म नहीं की. उन्होंने आगे कहा कि जज ने आरुषि मर्डर केस को गणित की किसी पहेली की तरह हल करने की कोशिश की. जैसे गणित के सवालों और पहलियों को हल करने के लिए पहले से ही किसी तथ्य को मान कर चलते हैं, वैसे ट्रायल जज ने भी पहले से कुछ तथ्यों को मानते हुए दूसरे निष्कर्ष निकाल लिए.

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आरुषि मर्डर केस
आरुषि मर्डर केस

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आरुषि-हेमराज मर्डर केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को आरुषि के माता-पिता राजेश और नूपुर तलवार को बरी कर दिया. इलाहाबाद हाईकोर्ट  फैसला सुनाने के साथ तलवार दंपत्ति को दोषी ठहराने के ट्रायल कोर्ट के फैसले पर बेहद सख्त टिप्पणी की.

जज ने कहा, ऐसा लगता है कि ट्रायल जज कानून द्वारा जज को सौंपी गई जिम्मेदारी से अनभिज्ञ थे और उन्होंने पूरे मामले को बड़े ही उथले तरीके से निपटा दिया. इसी टिप्पणी के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस अरविंद कुमार मिश्रा ने फैसला पढ़ना खत्म किया.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिन जज को सवालों के कठघरे में खड़ा किया, वह स्पेशल सीबीआई जज एस. लाल हैं. उन्होंने ही 2013 में राजेश तलवार और नुपुर तलवार को मामले में दोषी करार दिया था और तलवार दंपत्ति को उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट की दो जजों वाली डिविजन बेंच ने इस फैसले को पलटते हुए कहा कि सीबीआई मर्डर केस में राजेश और नुपुर के खिलाफ कोई भी प्रत्यक्ष सबूत उपलब्ध कराने और कोई गवाह पेश करने में भी नाकाम रही. सीबीआई इस सवाल से पर्दा उठाने में भी असफल रही कि आखिर अपराध किस मकसद से किया गया था.

हाईकोर्ट जस्टिस बालकृष्ण नारायण और अरविंद कुमार मिश्र ने फैसले में कहा कि राजेश और नुपुर को संदेश का लाभ मिलना चाहिए. संदेह के आधार पर तलवार दंपत्ति को बरी किया जाना चाहिए.

जज ने कहा, पढ़े-लिखे ट्रायल जज ने चीजों को अपने तरीके से देखा और अपने निष्कर्ष निकाले. कई सबूतों की ना तो पड़ताल की गई और ना ही साक्ष्यों को वेरिफाई करने की कोशिश की गई और एक एंगल पर काम कर सीधे दोषी मान लिया गया. तर्कों के आधार पर आधारित कहानी के उलट एक नई कहानी लिख दी गई

फिल्म डायरेक्टर की तरह हल किया केस

जस्टिस मिश्रा ने अपनी सख्त टिप्पणी यहीं खत्म नहीं की. उन्होंने आगे कहा कि जज ने आरुषि मर्डर केस को गणित की किसी पहेली की तरह हल करने की कोशिश की. जैसे गणित के सवालों और पहेलियों को हल करने के लिए पहले से ही किसी तथ्य को मान कर चलते हैं, वैसे ट्रायल जज ने भी पहले से कुछ तथ्यों को मानते हुए दूसरे निष्कर्ष निकाल लिए.

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उन्होंने कहा, यह आश्चर्य की बात है कि जज ने कल्पना कर ली कि नोएडा फ्लैट के अंदर और बाहर क्या हुआ होगा, जहां आरुषि और हेमराज मृत पाए गए थे. जज ने किसी फिल्म डायरेक्टर की तरह इधर-उधर बिखरे पड़े तथ्यों में तालमेल बिठाने की कोशिश की लेकिन इसका कोई आइडिया नहीं दिया कि असलियत में क्या हुआ.

जस्टिस मिश्रा ने सीबीआई जज के खिलाफ कड़े शब्द बोलने जारी रखे. उन्होंने आगे कहा कि निश्चित तौर पर केस की परिस्थितियों और गवाहों के मूल्यांकन से जुड़े तथ्यों की व्याख्या करने में इस तरह के अड़ियल नजरिए से बचा जाना चाहिए.

जस्टिस मिश्रा ने कहा कि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि ट्रायल जज ने कानून के मूल सिद्धांतों की अनदेखी की. वह केस की परिस्थितियों का विश्लेषण करने, साक्ष्यों एवं तथ्यों का सही मूल्यांकन करने में असफल रहे. उन्होंने कहा कि सीबीआई जज शायद मामले में अपनी भावनाएं जोड़ गए.  

जस्टिस मिश्रा ने कहा कि इससे किसी भी तरह से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ट्रायल जज ने, संभवत: अति उत्साहित होकर और अपने पूर्वाग्रहों के आधार पर मामले में आंशिक और संकीर्ण दृष्टिकोण अपनाया.  इस तरह से वह मामले को अपनी भावनाओं और मान्यताओं का रंग देते चले गए. जज ने मामले से जुड़े तथ्यों और गवाहों का तटस्थ मूल्यांकन करने के बजाए अपनी काल्पनिक उड़ान को मजबूत आकार देने की कोशिश की.

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आरुषि-हेमराज मर्डर केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को आरुषि के माता-पिता राजेश और नूपुर तलवार को बरी कर दिया है. ट्रायल कोर्ट ने उन्हें उम्रकैद की सजा दी थी. हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर सख्त टिप्पणी की और सबूतों के अभाव में तलवार दंपत्ति को बरी कर दिया.

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